"ब्राह्मण-ग्रन्थ": अवतरणों में अंतर

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'''ब्राह्मणग्रन्थ''' [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम और सर्वोच्च धर्मग्रन्थ [[वेदों]] का गद्य में व्याख्या वाला खण्ड है। ब्राह्मणग्रन्थ वैदिक वांग्मय का वरीयता के क्रममे दूसरा हिस्सा है जिसमें गद्य रूप में देवताओं की तथा यज्ञ की रहस्यमय व्याख्या की गयी है और मन्त्रों पर भाष्य भी दिया गया है। इनकी भाषा वैदिक [[संस्कृत]] है। हर वेद का एक या एक से अधिक ब्राह्मणग्रन्थ है (हर वेद की अपनी अलग-अलग शाखा है)।आज विभिन्न वेद सम्बद्ध ये ही ब्राह्मण उपलब्ध हैं :-
 
[[चित्र:Brahmana Granth.jpg|thumb|right|800px|ब्राह्मण ग्रंथों का एक उदाहरणउदाहरण। बाएं तैत्तिरीय संहिता; जिसमें मंत्र (मोटे अक्षरों में) और ब्राह्मण दोनो हैं, जबकि दाहिने भाग में ऐतरेय ब्राह्मण का एक अंशअंश। ]]
 
* [[ऋग्वेद]] :
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== सार ==
ब्राह्मण ग्रंथ यानि सत-ज्ञान ग्रंथ, वेदों के कई सूक्तों या मंत्रों का अर्थ करने मे सहायक रहे हैंहैं। वेदों में दैवताओं के सूक्त हैं जिनको वस्तु, व्यक्तिनाम या आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मानकर के कई व्याख्यान बनाए गए हैंहैं। ब्राह्मण ग्रंथ इन्ही में मदद करते हैंहैं।
जैसे -
 
# '''विद्वासों हि देवा''' - शतपथ ब्राह्मण के इस वचन का अर्थ है, विद्वान ही देवता होते हैंहैं।
# '''यज्ञः वै विष्णु''' - यज्ञ ही विष्णु हैहै।
# '''अश्वं वै वीर्यम, ''' - अश्व वीर्य, शौर्य या बल को कहते हैंहैं।
# '''राष्ट्रम् अश्वमेधः''' - [[तैत्तिरीय संहिता]] और [[शतपथ ब्राह्मण]] के इन वचनों का अर्थ है - लोगों को एक करना ही अशवमेध हैहै।
# '''अग्नि वाक, इंद्रः मनः, बृहस्पति चक्षु ..''' ([[गोपथ ब्राह्मण]])। - अग्नि वाणी, इंद्र मन, बृहस्पति आँख, विष्णु कान हैंहैं।
 
इसके अतिरिकत भी कई वेद-विषयक शब्दों का जीवन में क्या अर्थ लेना चाहिए इसका उद्धरण ब्राह्मण ग्रंथों में मिलता हैहै। कई ब्राह्मण ग्रंथों में ही उपनिषद भी समाहित हैंहैं।
 
== सन्दर्भ ==