"भवभूति": अवतरणों में अंतर
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अपने बारे में संस्कृत कवियों का मौन एक परम्परा बन चुका है, पर भवभूति ने इस परम्परागत मौन को तोड़ा है और अपने तीनों नाटकों की प्रस्तावना में अपना परिचय प्रस्तुत किया है। ‘महावीरचरित’ का यह उल्लेख—
: ''अस्ति दक्षिणापथे पद्मपुर नाम नगरम्। तत्र केचित्तैत्तिरीयाः काश्यपाश्चरणगुरवः पंक्तिपावनाः
:''(अनुवाद : ‘दक्षिणापथ में पद्मपुर नाम का नगर है। वहाँ कुछ ब्राह्मज्ञानी ब्राह्मण रहते हैं, जो तैत्तिरीय शाखा से जुड़े हैं, कश्यपगोत्री हैं, अपनी शाखा में श्रेष्ठ, पंक्तिपावन, पंचाग्नि के उपासक, व्रती, सोमयाज्ञिक हैं एवं उदुम्बर उपाधि धारण करते हैं। इसी वंश में वाजपेय यज्ञ करनेवाले प्रसिद्ध महाकवि हुए। उसी परम्परा में पाँचवें भवभूति हैं जो स्वनामधन्य भट्टगोपाल के पौत्र हैं और पवित्र कीर्ति वाले नीलकण्ठ के पुत्र हैं। इनकी माता का नाम जातुकर्णी है और ये श्रीकण्ठ पदवी प्राप्त, पद, वाक्य और प्रमाण के ज्ञाता हैं।)
’श्रीकण्ठ
:''श्रीकण्ठपदं
इस व्याख्या के अनुसार 'श्रीकण्ठ', भवभूति का नाम था, क्योंकि
जगद्धर ‘मालती माधव’ की टीका में ‘ नाम्ना श्रीकण्ठः; प्रसिद्धया भवभूतिरित्यर्थः’ तथा त्रिपुरारि ने भी इसी नाटक की टीका में ‘भवभूतिरित व्यवहारे तस्येदं नामान्तरम्’ कहकर इसी मत का प्रतिपादन किया है कि श्रीकण्ठ का नाम था और भवभूति प्रसिद्धि तथा व्यवहार का नाम था।
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