आज हिन्दी में लिंग यानि लिङ्गलिंग शब्द का अर्थ [[नर]] [[शिश्न]] से लगाया जाता है लेकिन मूल संस्कृत में इसका अर्थ ''चिह्न'', ''प्रतीक'' अथवा ''लक्षण'' (यानि पहचान) के अर्थ में है। [[कणाद]] मुनि कृत [[वैशेषिक]] दर्शन ग्रंथ में यह शब्द कई बार आता है।
लिंग सहलग्नता का अर्थ है, लैंगिक क्रोमोसोमों में पाए जानेवाले जीनों के अनुसार लिंगों में विभिन्नता। इन जीनों पर जो गुण या विशेषक (traits) निर्भर करते हैं, उन्हें लिंग सहलग्नता कहते हैं। इन गुणों या विशेषकों की पारेषण विधि को लिंग सहलग्न वंशागति कहते हैं, जैसे पुरुष में एक्स वाई (XY) तथा स्त्री में एक्स एक्स (XX) क्रोमोसोम होते हैं। कोई पुरुष यदि किसी आनुवंशिक दोष से दूषित है, तो केवल उसके पुत्र ही उस दोष को वंशगति में ग्रहण कर सकते हैं, पुत्रियाँ नहीं। सर्वप्रथम डॉङ्कास्टरडॉंकास्टर (Doncaster) ने सन् 1908 में इस विषय पर प्रकाश डाला था। उन्होंने एक शलभ अब्रैक्सैस लैक्टिकलर (Abraxas lacticolor) की मादा का अब्रैक्सस ग्रॉस्सुलैरियाटा (Abraxas grossulariata) के नर से संयोग कराया। परिणामस्वरूप प्रथम पीढ़ी में सभी शलभ ग्रॉस्सुलैरियाटा वर्ग के कीट पाए गए। दूसरी पीढ़ी में ग्रॉस्सुलैरियाटा तथा लैक्टिकलर के अनुपात 3:1 थे, किंतु सभी लैक्टिकलर मादा निकले। इससे पता चला कि इस प्राणी में नर एक प्रकार के युग्मक (gametes) उत्पन्न करता है, किंतु मादा दो प्रकार के। अत: नर समयुग्मजी (homozygous) तथा मादा विषमयुग्मजी (Heterozygous) होती है। ब्रैवेल (Brambell) कहते हैं कि एक्स (X) क्रोमोसोम में कुछ अन्य प्रकार के आनुवंशिक कारक तथा जीन होते हैं। यदि यह सिद्धांत ठीक है, तो समयुग्मजी माता पिता के विशेषक (traits) उनके विषमयुग्मजी संतानों में चले जाएँगे। इस सिद्धांत को लिंग सहलग्नता (Sex linkage) कहा जाता है, जैसे फलमक्खी ड्रॉसोफिला (Drosophila) की मादा में दो एक्स (X) तथा नर में एक्स वाई (XY) क्रोमोसोम पाए जाते हैं। इसके एक्स (X) क्रोमोसोमों में लाल आँखों के जीन होंगे, या श्वेत आँखों के। लाल आँख वाले जीनों को प्रभावी (dominant) तथा श्वेत को अप्रभावी (recessive) कहते हैं। अत: जब श्वेत तथा लाल आँखों वाली मक्खियों का संयुग्मन होता है, तब लाल आँखों वाली संतान अधिक होती है। लिंग सहलग्नी रोगों में हीमोफिलिया (haemophilia) तथा रंगांधता (colour blindness) प्रमुख रोग माने जाते हैं।