"सामवेद संहिता": अवतरणों में अंतर

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===नामाकरण ===
सामवेद को उदगीथों का रस कहा गया है, [[छान्दोग्य उपनिषद]] मेंमें। अथर्ववेद के चौदहवें कांड, [[ऐतरेय ब्राह्मण]] (८-२७) और [[बृहदारण्यक उपनिषद]] (जो शुक्ल यजुर्वेद का उपनिषद् है, ६.४.२७), में सामवेद और ऋग्वेद को पति-पत्नी के जोड़े के रूप में दिखाया गया है -
 
'''अमो अहम अस्मि सात्वम् सामहमस्मि ऋक त्वम् , द्यौरहंपृथ्वीत्वं, ताविह संभवाह प्रजयामावहैप्रजयामावहै। '''
 
अर्थात ('''अमो अहम अस्मि सात्वम् ''') मैं -पति - अम हूं, सा तुम हो, ('''द्यौरहंपृथ्वीत्वं''') मैं द्यौ (द्युलोक) हूं तुम पृथ्वी होहो। ('''ताविह संभवाह प्रजयामावहै''') हम साथ बढ़े और प्रजावाले होंहों। ।।
 
 
जिस प्रकार से ऋग्वेद के मंत्रों को ''ऋचा'' कहते हैं और यजुर्वेद के मंत्रों को ''यजूँषि'' कहते हैं उसी प्रकार सामवेद के मंत्रों को ''सामानि'' कहते हैंहैं। ऋगवेद में साम या सामानि का वर्णन २१ स्थलों पर आता है (जैसे ५.४४.१४, १.६२.२, २.२३.१७, ९.९७.२२)
 
== विषय==
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===संगीत स्वर===
 
नारदीय शिक्षा ग्रंथ में सामवेद की गायन पद्धति का वर्णन मिलता है, जिसको आधुनिक हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत में स्वरों के क्रम में ''सा-रे-गा-मा-पा-धा-नि-सा'' के नाम से जाना जाता हैहै।
#षडज् - सा
#ऋषभ - रे