"साहित्य दर्पण": अवतरणों में अंतर
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==साहित्यदर्पण में महाकाव्य का विवेचन==
विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण में [[महाकाव्य]] का विशद और
: ''सर्गबन्धो महाकाव्यं तत्रैको नायकः सुरः॥
: ''सद्वंशः क्षत्रियो वापि धीरोदात्तगुणान्वितः॥
: ''एकवंशभवा भूपाः कुलजा बहवोऽपि वा॥
: ''
: ''
: ''इतिहासोद्भवं वृत्तमन्यद् वा सज्जनाश्रयम्॥
: ''चत्वारस्तस्य वर्गाः स्युस्तेष्वेकं च फलं भवेत्॥
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: ''संभोगविप्रलम्भौ च मुनिस्वर्गपुराध्वराः॥
: ''रणप्रयाणो यज्ञम न्त्रपुत्रोदयादयः॥
: ''वर्णनीया यथायोगं
: ''कर्वेवृत्तस्य वा नाम्ना नायकस्यान्यतरस्य वा।
: ''नामास्य सर्गोपादेयकथया सर्गनाम तु॥<ref>साहित्य दर्पण, 6/315-325</ref>
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*2 . इसका नायक कोई देवता अथवा धीरोदात्त गुणों से युक्त कोई उच्च कुलोत्पन्न क्षत्रिय होना चाहिए। एक ही वंश में उत्पन्न अनेक राजा भी इसके नायक हो सकते हैं।
*3 . इसमें
*4 . इसमें नाटक की सारी सन्धियाँ (मुख, प्रतिमुख, गर्भ, विमर्श, उपसंहृति) को स्थान दिया जाता है।
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*9 . इसमें सर्गों की संख्या आठ से अधिक होनी चाहिए और उन सर्गों का आकार बहुत छोटा नहीं होना चाहिए। प्रायः प्रत्येक सर्ग में एक ही छन्द का प्रयोग होना चाहिए और सर्ग के अन्त में छन्द परिवर्तन उचित है। कहीं-कहीं सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग भी हो सकता है। प्रत्येक सर्ग के अन्त में आगे आने वाली कथा की सूचना होनी चाहिए।
*10 . इसमें संध्या, सूर्य, चन्द्र, रात्रि, प्रदोष, अंधकार, दिन, प्रातः काल, मध्याह्न, मृगया (शिकार), ऋतु, वन, समुद्र, मुनि, स्वर्ग, नगर, यज्ञ, युद्ध, यात्रा, विवाह, मन्त्र, पुत्र और अभ्युदय आदि का यथावसर
*11 . महाकाव्य का नामकरण कवि, कथावस्तु, नायक अथवा किसी अन्य चरित्र के नाम पर होना चाहिए और सर्गों का नाम सर्गगत कथा के आधार पर होना चाहिए।
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