"मुत्तुस्वामी दीक्षित": अवतरणों में अंतर

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'''मुत्तुस्वामी दीक्षितर्''' या '''मुत्तुस्वामी दीक्षित''' (1775-1835) [[दक्षिण भारत]] के महान् कवि व रचनाकार थे। वे [[कर्नाटक संगीत]] के तीन प्रमुख व लोकप्रिय हस्तियों में से एक हैं। उन्होने ५००500 से अधिक संगीत रचनाएँ की। कर्नाटक संगीत की गोष्ठियों में उनकी रचनाऐं बहुतायत में गायी व बजायी जातीं हैं।
 
वे रामस्वामी दीक्षित के पुत्र थे। उनके दादा का नाम गोविन्द दीक्षितर् था। उनका जन्म [[तिरुवारूर]] या तिरुवरूर् या तिरुवैय्यारु (जो अब [[तमिलनाडु]] में है) में हुआ था। मुत्तुस्वामि का जन्म मन्मथ वर्ष (ये भी तमिल पंचांग अनुसार), तमिल पंचांग अनुसार पंगुनि मास (हिन्दु पंचांग अनुसार फाल्गुन मास; यद्यपि वास्तविकता तो यह है उनके जन्म का महिना अगर हिन्दु पंचांग के अनुसार देखा जाए तो भिन्न होगा, हिन्दू व दक्षिण भारतीय पंचांगों में कुछ भिन्नता अवश्य होती है), [[कृत्तिका नक्षत्र ]](तमिल पंचांग अनुसार) में हुआ था। मुत्तुस्वामी का नाम वैद्येश्वरन मन्दिर में स्थित सेल्वमुत्तु कुमारस्वामी के नाम पर रखा था। ऐसी मान्यता है कि मुत्तुस्वामी का जन्म उनके माता और पिता के भगवान् वैद्येश्वरन (या वैद्येश) की प्रार्थना करने से हुआ था। मुत्तुस्वामी के दो छोटे भाई, बालुस्वामी और चिन्नस्वामी थे, और उनकी बहन का नाम बालाम्बाल था। मुत्तुस्वामी के पिता रामस्वामी दीक्षित ने ही [[राग हंसध्वनि]] का उद्भव किया था। मुत्तुस्वामी ने बचपन से ही धर्म, साहित्य, [[अलंकार]] और [[मन्त्र]] ज्ञान की शिक्षा आरम्भ की और उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता से संगीतली सीखा था।थी।
 
मुत्तुस्वामी के किशोरावस्था में ही, उनके पिता ने उसेउन्हें चिदंबरनथ योगी नामक एक भिक्षु के साथ तीर्थयात्रा पर [[शास्त्रीय संगीत|संगीत]] और [[दार्शनिक]] ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेज दिया था। इस तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने उत्तर भारत के कई स्थानों का दौरा किया और धर्म और संगीत पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त किया जो उनकी कई रचनाओं में परिलक्षित होती है।थी। काशी ([[वाराणसी]]) में अपने प्रवास के दौरान, उनके गुरु चिदंबरनाथ योगी ने मुत्तुस्वामी को एक अद्वितीय [[वीणा]] प्रदान की और उसके शीघ्र बाद ही उनका निधन हो गया। चिदंबरनाथ योगी की समाधि अब भी वाराणसी के [[हनुमान घाट]] क्षेत्र में श्रीचक्र लिंगेश्वर मंदिर में देखा जा सकता है।
 
== जन्म और शिक्षा ==
मुत्तुस्वामी दीक्षित का जन्म तमिलनाडु के तिरूवरूर (तमिलनाडु राज्य में) में [[ब्राह्मण तमिल|तमिल ब्राह्मण]] दंपति, रामस्वामी दीक्षित (रागा हम्सधवानी के शोधकर्ता) और सुब्बम्मा के यहाँ, सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था।<ref>{{cite book|url=https://books.google.com.my/books?id=t6-uWK5e9a4C&pg=PA12&lpg=PA12#v=onepage&q&f=false कर्नाटक संगीत का इतिहास</ref><ref>http://music.indobase.com/classical-singers/muthuswami-dikshitar.html शास्त्रीय संगीतकार</ref><ref>http://www.veethi.com/india-people/sri_muthuswami_dikshitar-profile-2502-24.htm श्री मुत्तुस्वामी दीक्षित</ref>|title=
भारत के पवित्र गीत, खंड 2||last=सुब्रमण्यम |first=वी.के.||publisher=अभिनव पब्लिकेशन, नई दिल्ली}}</ref><ref>{{cite web|url=http://music.indobase.com/classical-singers/muthuswami-dikshitar.html|title=श्री मुत्तुस्वामी दीक्षित की जीवनी|publisher=वीथी.कॉम|date=07, जनवरी 2017}} </ref>
ब्राह्मण शिक्षा परम्परा को मन में रखकर, मुत्तु स्वामि ने संस्कृत भाषा, वेद और अन्य मुख्य धार्मिक ग्रन्थों को सीखा व उनका गहन अध्ययन किया। उनको प्रारम्भिक शिक्षा उनके पिता से मिली थी। कुछ समय बाद मुत्तु स्वामिमुत्तुस्वामी संगीत सीखने हेतु महान् सन्त चिदम्बरनाथ योगी के साथ बनारस या वाराणसी गए और वहां 5 साल तक सीखने व अध्ययन का वह दौर चलता रहा। गुरु ने उन्हें मन्त्रोपदेश दिया व उनको हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सिखाया।की शिक्षा दी। गुरु के देहान्त के बाद मुत्तु स्वामिमुत्तुस्वामी दक्षिण भारत को लौटे। जब तब वह चिदम्बरनाथ योगी के साथ रहे , उन्होंने उत्तर भारत में काफी भ्रमण किया व काफी कुछ सीखने को मिला। अध्ययन व पठन-पाठन के दौरान उनके गुरु ने उन्हें एक विशेष वीणा भी दी थी। मुत्तु स्वामि के गुरु चिदम्बरनाथ योगी की समाधि के दर्शन आज भी श्री चक्र लिंगेश्वर मन्दिर, हनुमान घाट, वाराणसी में किया जा सकता है।
 
==संगीत==
पौराणिक कथा के अनुसार, मुत्तुस्वामी के गुरु ने उन्हें [[तिरुट्टनी]] (चेन्नई के पास एक मंदिर का शहर) की यात्रा करने के लिए कहा। वहाँवहां, जब वे ध्यान मुद्रा में बैठे थे, तभी एक बूढ़ा आदमी उनके पास आया और मुंह खोलने के लिए कहा। बूढ़े आदमी उसकेउनके मुंह में शक्कर की मिठाई रखा औररख गायब हो गया। जैसे ही उन्होंने अपना मुंह खोला, उसे [[कार्तिकेय|मुरुगन]] देवता का दृष्टांत हुआ, और उसके बाद ही मुत्तुस्वामी ने अपनी पहली रचना "श्री नाथादी गुरूगुहो" को राग मेयामलवागोला में गाया।
 
इस गीत ने भगवान (और/या गुरु) को संस्कृत में पहली विभक्ति में संबोधित किया, बाद में दीक्षित ने भगवान के सभी आठ [[अवतार|अवतारों]] पर कृतियों की रचना की। ये ज्यादातर संप्रदाय/अनुग्रहवादी रूप में मुरुगन की स्तुति करने वाले उपधाराओं में थे।
 
फिर मुत्तुस्वामी तीर्थाटन के निकल गये और [[कांची]], [[तिरुवन्नमलई]], [[चिदंबरम मंदिर|चिदंबरम]], [[तिरुपति]] और [[कालाहस्ती मंदिर|कालहस्ती]], [[श्रीरंगम]] के मंदिरों की यात्रा और वहाँ कृतियों की रचना की और [[तिरुवारूर]] लौट आये।<ref>{{cite news| url=http://www.hindu.com/ms/2007/12/01/stories/2007120150180600.htm | location=चेन्नई, भारत | work= द हिन्दू | title=गाना, चलचित्र और बौद्धिक | date=1, दिसम्बर 2007}}</ref>
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तिरुवरूर लौटने पर, उन्होंने तिरुवरूर मंदिर परिसर में हर देवता के ऊपर कृति की रचना की, जिसमें त्यागराज (भगवान शिव का एक अंश), पीठासीन देवता, नीलोत्लांबल, उनकी पत्नी और देवी कमलांबल (उसी मंदिर परिसर में स्थित [[तांत्रिक]] महत्व की एक स्वतंत्र देवी) आदी शामिल थे। ऐसा तब हुआ जब उन्होंने प्रसिद्ध [[कमलम्बा नववर्ण कृति]] बनायीं, जोकि श्रीचक्र देवता पर अनुकरणीय साहित्य से भरा हुआ था। ये नववर्णन संस्कृत भाषा के सभी आठ अवधारणाओं में थे और प्रत्येक वर्ष गुरुगुह जयंती पर गाया जाता है। उन्होंने नौ ग्रहों की प्रशंसा में [[नवग्रह कृति]] का निर्माण कर अपने कौशल का प्रदर्शित करना जारी रखा। [[साहित्य]] के गीत, [[मंत्र]] और [[ज्योतिष|ज्योतिष शास्त्रों]] के गहरे ज्ञान को दर्शाते है। नीलोत्लांबल कृति, उनकी रचनाओं का एक और उत्कृष्ट संग्रह है जिसने नारायणगौल, पुरवागौल और चाआगौल जैसे मरते हुए रागों को पुनर्जीवित किया।
 
== रचनात्मक कार्य ==
मुत्तु स्वामि ने कई तीर्थों व मन्दिरों का भ्रमण किया व देवी - देवताओं के दर्शन किए। उन्होंने भगवान मुरुगन या मुरुगा या कार्त्तिकेय, जो तिरुत्तणी के अधिपति हैं का सैर भी किया था और कई गीत उनकी प्रशंसा में रच डाले। तिरुत्तणी मे उन्होंने पहली कृति, "श्री नाथादि गुरुगुहो जयति" को रचा। यह गीत मायामालवगौलम् राग व आदि ताल में रचा गया है। उसके बाद उन्होंने सारे प्रसिद्ध मन्दिरों का सैर किया। भारत, सिय्लोन ( Ceylon ) और नेपाल के कई मन्दिरों में भी तीर्थाटन किया। उन्होंने वहां सभी मन्दिरों में स्थित अधिष्ठिता देवी व देवताओं की प्रशंसा में कई कृतियां रची। मुत्तु स्वामि दीक्षितर ने ३००० से भी अधिक ऐसे गीतों की रचना की , जो देव-प्रशंसा पर आधारित थी या किसी नेक भावना पर आधारित थीं। उन्होंने कई कृतियां रची जैसे नवग्रह कृति, कमलाम्बा नवावरणम् कृति, अभयाम्बा नवावरणम् कृति , शिव नवावरणम् कृति, पंचलिंग स्थल कृति, मणिपर्वल कृति आदि-आदि। मुत्तु स्वामि ने अपनी सभी रचनाओं में भाव , राग व ताल आदि का विशेष उल्लेखन किया है। मुत्तु स्वामि दीक्षितर् को उनके हस्ताक्षर ( pen name ) 'गुरुगुह' के नाम से भी जाना जाता है। उसकि सारी रचनऐं चौक् काल मे रची गई है। उनकि कृति "बालगोपल" में वह वैणिक गायक नाम से प्रसिद्ध हैं।
==शिष्य==
[[तंजौर]] के चार नृतक गुरु भाइयों चिन्नया, पोन्नेय, वडिवलु और शिवानंदम ने मुथुस्वामी दीक्षित से संपर्क किया, और उनसे संगीत सीखने की इच्छा व्यक्त की और उनसे तंजौर में उनके साथ आने के लिए आग्रह किया। वहाँ, दीक्षित ने उन्हें वेंकट वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा वितरित 72 मेला परंपरा की शिक्षा प्रदान की। छात्रों ने अपने गुरु को महिमा करते हुए नवरत्न माला नामक नौ गीतों की एक
संग्रह बनाकर उन्हैं समर्पित किया। ये चार शिष्यों को तंजौर चौकड़ी के रूप में जाना जाता है और उन्हैं [[भरतनाट्यम]] के लिए मुख्य संगीतकार के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनके शिष्यों में, पोनन्या (जिसे पोंन्या पिल्लई भी कहा जाता है) और चिनन्या (जिसे चिन्न्याय पिल्लई भी कहा जाता है) ने [[तिरुवनंतपुरम]] (त्रिवेन्द्रम, केरल) के श्री स्वाती तिरुनाल के राज-दरबार कलाकारों के रूप में भी काम किया।
 
युवा उम्र में, दीक्षित को फोर्ट सेंट जॉर्ज में पश्चिमी बैंड के संगीत से अवगत कराया गया था। बाद के चरण में, दीक्षित ने कुछ चालीस गीतों को कई (अधिकतर पश्चिमी लोक) धुनों में बनाया, जैसे कि संकरभाराना। यह काय अब नोत्तुस्वरा साहित्य (नोत्तुस्वारा = "नोट्स" स्वर) के रूप में जाना जाता है। इन रचनाओं में [[केल्टी भाषाएँ|सेल्टिक]] और बैरोक शैलियों का प्रभाव काफी स्पष्ट है (उदाहरण के लिए, वाउलेज़-वाउ नर्तक<ref>http://archives.chennaionline.com/columns/ethnomusic/durga16.asp</ref> की धुन पर शक्ति सहिंता गणपति,<ref>{{YouTube|N6bsfLBzshU}}</ref> वरसीव बालम)। एक गलत धारणा है कि ये सीपी ब्राउन, कुड्डप्पा के कलेक्टर के आज्ञा पर लिखे गए थे। यह संभव नहीं है क्योंकि दोनों कभी नहीं मिले। मुत्तुस्वामी दीक्षित ने 1799 तक मद्रास छोड़ दिया था।<ref>एनसीपीए द्वारा प्रकाशित राघवन के मोनोग्राफ.</ref> ब्राउन, 1817 में [[मद्रास]] आये, 1820 में उन्होंने [[तेलुगु]] सीखी और उसी वर्ष कुड्डप्पा में चले गए।
 
== मृत्यु ==
सन् १८३५ 1835, दीपावली की अद्भुत , दिव्य व पावन वेला थी , मुत्तु स्वामिपर दीक्षितर्मुत्तुस्वामी ने हरप्रत्येक रोजदिन की तरह जैसा पूजा-प्रार्थना किया वकिया। तत्पश्चात उन्होंने अपने विद्यार्थियों को "मीनाक्षी मे मुदम् देहि" गीत गाने के लिए कहा था।कहा। यह गीत पूर्वी कल्याणी राग मे रचा गया था। वे आगे भी कई गीत गाते रहे , जैसे ही उन्होंने "मीन लोचनि पाश मोचनि" गानगाना शुरु किया तभी मुत्तु स्वामिमुत्तुस्वामी ने अपने हाथों को उठाते हुए "शिवे पाहि" ( इसका अर्थ हे भगवान ! माफ़मुझे क्षमा करना मुझे ! ) कहकर दिवंगत हो गए। उनकी समाधि एट्टैय्यापुरम ( यह महाकवि सुब्रह्मण्यम[[सुब्रह्मण्य भारतिभारती]] का जन्म स्थल भी है ) मेमें है। यह स्थल कोइल्पट्टीकोविलपट्टी और टुटीकोरिन के पास स्थित है।<ref>सुरेश नारायणन, "कर्नाटक संगीत" (2012), भाग-1, पृ. 18, सुवर्णगम प्रकाशन</ref>
 
==संगीत रचनाएं==
मुत्तु स्वामिमुत्तुस्वामी ने कई तीर्थों व मन्दिरों का भ्रमण किया और देवी - देवताओं के दर्शन किए। उन्होंने भगवान मुरुगन या मुरुगा या कार्त्तिकेय[[कार्तिकेय]], जो तिरुत्तणी के अधिपतिअराध्य देव हैं काके सैरदर्शन भी किया थाकिये और कई गीत उनकी प्रशंसा में कई गीत रच डाले। तिरुत्तणी मेमें ही उन्होंने अपनी पहली कृति, "श्री नाथादि गुरुगुहो जयति" को रचा। यह गीत मायामालवगौलम् राग व आदि ताल में रचा गया है।था। उसके बाद उन्होंने सारेकई प्रसिद्ध मन्दिरों का सैर किया। भारत, सिय्लोन ( Ceylon ) और नेपाल के कई मन्दिरों में भी तीर्थाटन किया। उन्होंनेमाना वहांजाता सभीहै मन्दिरोंकि मेंदीक्षितर् स्थितने अधिष्ठिता देवी व देवताओं की प्रशंसा में कई कृतियां रची। मुत्तु स्वामि दीक्षितर नेलगभग ३०००3000 से भी अधिक ऐसे गीतों की रचना की , जोजोकि देव-प्रशंसा पर आधारित थी या किसी नेक भावना पर आधारित थीं। इनमें उन्होंनेसे कई कृतियांरचनायें रचीअब जैसेनष्ट हो चुकी हैं। उनके द्वारा रचित कृतियों में नवग्रह कृति, कमलाम्बा नवावरणम् कृति, अभयाम्बा नवावरणम् कृति , शिव नवावरणम् कृति, पंचलिंग स्थल कृति, मणिपर्वल कृति आदि-आदि। मुत्तुसम्मलित हैं। स्वामिमुत्तुस्वामी ने अपनी सभी रचनाओं में [[भाव ]], [[राग]][[ताल]] आदि का विशेष उल्लेखन किया है। मुत्तु स्वामिमुत्तुस्वामी दीक्षितर् को उनके हस्ताक्षरउपनाम ( pen name ) '"गुरुगुह'" के नाम से भी जाना जाता है। उसकि सारी रचनऐंरचनायें चौक् काल मे रची गई है। उनकि कृति "बालगोपलबालगोपाल" में वहवे वैणिक गायक नाम से प्रसिद्ध हैं।हुए।
उनकी लगभग 450 से 500 रचनाएं है, जिनमें से अधिकांश आज के संगीतकारों द्वारा [[शास्त्रीय संगीत]] समारोह में गाया जाता है। उनकी रचनाएं अधिकांशत: संस्कृत के कृति रूप में हैं, अर्थात्, संगीतमय कविता के रूप में है। मुत्तुस्वामी दीक्षित ने अपने जीवन भर कई पवित्र तीर्थों की यात्रा की और उन्होंने देवताओं और मंदिरों पर कृतियाँ रची। दीक्षित को देवताओं के लिये सबसे विस्तृत श्रृंखला का रचियता माना जाता है।
 
उनकी लगभग 450 से 500 रचनाएं आज भी काफी लोकप्रिय है, जिनमें से अधिकांश आज के संगीतकारों द्वारा [[शास्त्रीय संगीत]] समारोह में गाया जाता है। उनकी रचनाएं अधिकांशत: संस्कृत के कृति रूप में हैं, अर्थात्, संगीतमय कविता के रूप में है। मुत्तुस्वामी दीक्षित ने अपने जीवन भर कई पवित्र तीर्थों की यात्रा की और उन्होंने देवताओं और मंदिरों पर कृतियाँ रची। दीक्षित को देवताओं के लिये सबसे विस्तृत श्रृंखला का रचियता माना जाता है।
 
उनकी प्रत्येक रचना अद्वितीय और प्रतिभाशाली ढंग से प्रस्तुत की गई है। रचनाएं गहराई और माधुर्य की आत्मा के लिए जाने जाते हैं- कुछ रागों के लेकर उनकी परिकल्पना अभी भी उनकी संरचनाओं पर मान्य हैं। उनके संस्कृत के गीतों में मंदिर देवता की प्रशंसा कि गई हैं, लेकिन अद्वैत दर्शन और बहुदेववादी पूजा के बीच निहित संबंधों को दूर करते हुए, मुथुस्वामी ने अपने गीतों में अद्वैत विचारों का मूल दिया है। उनके गीतों में मंदिर के इतिहास और उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत जानकारी दि गई है, जिसके कारण ही आज इन पुराने तीर्थों में कई परंपराओं को बनाए रखा गया है। उनकी रचनाओं में एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषताएं, गीतों की लाइनों में कुशल छंद पाई जाती हैं।