"रासायनिक आबंध": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Electron dot.svg|अंगूठाकार|यह '''लेविस डॉट चित्र''' है जो कि रासायनिक आबंध दर्शाने में मददगार है]]
किसी [[अणु]] में दो या दो से अधिक [[परमाणु]] जिस [[बल]] के द्वारा एक दूसरे से बंधे होते हैं उसे '''रासायनिक आबन्ध''' (केमिकल बॉण्ड) कहते हैं। ये आबन्ध रासायनिक संयोग के बाद बनते हैं तथा परमाणु अपने से सबसे पास वाली [[निष्क्रिय गैस]] का [[इलेक्ट्रान विन्यास]] प्राप्त कर लेते हैं।
दूसरे शब्दों में, रासायनिक आबन्ध वह परिघटना है जिसमें दो या दो से अधिक अणु या परमाणु एक दूसरे से आकर्षित होकर और जुड़कर एक नया अणु या आयन बनाते हैं (एक विशेष प्रकार के बन्धन '[[धात्विक बन्धन]]' में यह प्रक्रिया भिन्न होती है)। यह प्रक्रिया सूक्ष्म स्तर पर होती है, लेकिन इसके परिणाम का स्थूल रूप में अवलोकन किया जा सकता है, क्योंकि यही प्रक्रिया अनेकानेक अणुओं और परमाणुओं के साथ होती है। गैस में ये नये अणु स्वतन्त्र रूप से मौजू़द रहते हैं, [[द्रव]] में अणु या आयन ढीले तौर पर जुडे रहते हैं और [[ठोस]] में ये एक [[आवर्ती]] (दुहराव वाले) ढाँचे में एक दूसरे से स्थिरता से जुडे रहते हैं।
== प्रकार ==
सामान्यतः रासायनिक आबन्ध
1. '''आयनिक बन्ध'''- यह बन्ध आयनों के मध्य आकर्षण से बनता है।
2. '''सहसयोंजक आबन्ध''' - इलेक्ट्रॉन के समान साझा से बनता है।
3. '''उपसहसयोंजक आबन्ध''' - इलेक्ट्रॉन के असमान साझेदारी से बनता है।
'''संयोजकता आबंध सिद्धान्त''':
सन 1927 में हिटलर तथा लंदन ने विपरीत इलेक्ट्रान चक्रणों के युग्मन तथा उदासीनीकरण पर आधारित सिद्धांत बनाया । हिटलर तथा लंदन के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक युग्म बंध तभी बनता है जब भाग लेने वाले इलेक्ट्रॉनों का चक्रण विपरीत दिशाओं में हो। इस प्रकार वे आबंध बनाकर अपने चक्रण का उदासीनीकरण कर लेते हैं जिससे उनकी [[ऊर्जा]] में कमी आ जाती है जो बंध को स्थायित्व प्रदान करती है ।
आधुनिक काल में रासायनिक आबंधों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है-
=== [[अंतर्परमाणु बल|शक्तिमान]] ===
==== [[सहसंयोजी आबन्ध]] ====
;'''[[सिग्मा आबन्ध]]''':
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