"पुष्पक विमान": अवतरणों में अंतर

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विमान निर्माण, उसके प्रकार एवं संचालन का संपूर्ण विवरण महर्षि [[भारद्वाज]] विरचित [[वैमानिक शास्त्र]] में मिलता है। यह ग्रंथ उनके मूल प्रमुख ग्रंथ यंत्र-सर्वेश्वम् का एक भाग है। इसके अतिरक्त भारद्वाज ने अंशु-बोधिनी नामक ग्रंथ भी लिखा है, जिसमें [[ब्रह्मांड विज्ञान]] का ही वर्णन है। उस समय के इसी ज्ञान से निर्मित व परिचालित होने वाले विमान, ब्रह्माण्ड के विभिन्न ग्रहों में विचरण किया करते थे। इस वैमानिक-शास्त्र में आठ अध्याय, एक सौ अधिकरण, पांच सौ सूत्र (सिद्धांत) और तीन हजार श्लोक हैं। यह ग्रंथ वैदिक [[संस्कृत]] भाषा में लिखा है।
 
इस विमान में जो तकनीक प्रयोग हुई है, उसके पीछे आध्यात्मिक विज्ञान ही है। ग्रन्थों के अनुसार आज में किसी भी पदार्थ को जड़ माना जाता है, किन्तु प्राचीन काल में सिद्धिप्राप्त लोगों के पास इन्हीं पदार्थों में चेतना उत्पन्न करने की क्षमता उपलब्ध थी, जिसके प्रयोग से ही वे विमान की भांति परिस्थितियों के अनुरूप ढलने वाले यंत्र का निर्माण कर पाते थे। वर्तमान काल में विज्ञान के पास ऐसे तकनीकी उत्कृष्ट समाधान उपलब्ध नहीं है, तभी ये बातें काल्पनिक एवं अतिश्योक्तिअतिशयोक्ति लगती हैं। उस काल में विज्ञान में पदार्थ की चेतना को जागृत करने की क्षमता संभवतः रही होगी जिसके प्रभाव से ही यह विमान स्व-संवेदना से क्रियाशील होकर आवश्यकता के अनुसार आकार परिवर्तित कर लेता था। पदार्थ की चेतना को जागृत करने जैसी विद्याओं के अन्य प्रमाण भी [[रामायण]] एवं विभिन्न हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्राप्त होते हैं। पुष्पक विमान में यह भी विशेषता थी कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था, जिसने विमान संचालन मंत्र सिद्ध किया हो।<ref name="बदलाव"/>
 
== विमानक्षेत्र ==