"गौतम बुद्ध": अवतरणों में अंतर

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=== महाभिनिष्क्रमण ===
[[चित्र:Fasting buddha at lahore museum.jpg|left|thumb|250px|तपस्या से क्षीण हुआ बुद्ध का शरीर (लाहौर संग्रहालय)]]
सुंदर पत्नी [[यशोधरा]], दुधमुँहे राहुल और कपिलवस्तु जैसे राज्य का मोह छोड़कर सिद्धार्थ तपस्या के लिए चल पड़ा।पड़े। वह [[राजगृह]] पहुँचा।पहुँचे। वहाँ उसने भिक्षा माँगी। सिद्धार्थ घूमते-घूमते आलार कालाम और उद्दक रामपुत्र के पास पहुँचा।पहुँचे। उनसे उसने योग-साधना सीखी। समाधि लगाना सीखा। पर उससे उसे संतोष नहीं हुआ। वह उरुवेला पहुँचापहुँचे और वहाँ पर तरह-तरह से तपस्या करने लगा।लगे।
 
सिद्धार्थ ने पहले तो केवल तिल-चावल खाकर [[तपस्या]] शुरू की, बाद में कोई भी आहार लेना बंद कर दिया। शरीर सूखकर काँटा हो गया। छः साल बीत गए तपस्या करते हुए। सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई।
शांति हेतु बुद्ध का मध्यम मार्ग : एक दिन कुछ स्त्रियाँ किसी नगर से लौटती हुई वहाँ से निकलीं, जहाँ सिद्धार्थ तपस्या कर रहा था।थे। उनका एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो। ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएँ।’ बात सिद्धार्थ को जँच गई। वह मान गयागये कि नियमित आहार-विहार से ही [[योग]] सिद्ध होता है। अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिए [[मध्यम मार्ग]] ही ठीक होता है ओर इसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है।
 
=== ज्ञान की प्राप्ति ===