"धन्वन्तरि": अवतरणों में अंतर

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{{Hdeity infobox <!--Wikipedia:WikiProject Hindu mythology-->
#पुनर्प्रेषित [[धन्वंतरी]]
| image = Godofayurveda.jpg
| caption = आयुर्वेद के देव
| name = धन्वन्तरी
| tamil_script = தவன்தரீ
| affiliation = [[हिन्दू]] [[देवता]], [[विष्णु]] के [[अवतार]]
| god_of = [[आयुर्वेद]] चिकित्सा
| abode =
| mantra = ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:<br />अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय<br />त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप <br />श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः॥
<ref name="ॐ">[http://www.salagram.net/Dhanvantari.html ॐ धन्वंतरये नमः]</ref><ref name="इंडिया">[http://www.iloveindia.com/spirituality/mantras/dhanvanthri-mantra.html धन्वंतरी मंत्र], आई लव इंडिया</ref><ref name="मंत्राज़">[http://hubpages.com/hub/Lord-Dhanwantari-Healing-Mantras-Gayatri मंत्राज़ ऑफ लॉर्ड धन्वंतरी, द सेलेस्टियल हीलर एण्ड फ़िज़ीशियन]</ref>
| weapon = [[शंख]], [[चक्र]], <br />[[अमृत]]-[[कलश]] और [[औषधि]]
| consort =
| mount = [[कमल]]
}}
'''धन्वंतरी''' को [[हिन्दू धर्म]] में देवताओं के वैद्य माना जाता है। ये एक महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] समझे जाते हैं। इनका [[पृथ्वी]] लोक में अवतरण [[समुद्र मंथन]] के समय हुआ था। [[शरद पूर्णिमा]] को [[चंद्रमा]], [[कार्तिक]] [[द्वादशी]] को कामधेनु गाय, [[त्रयोदशी]] को धन्वंतरी<ref>[http://uditbhargavajaipur.blogspot.com/2010/03/4_26.html विष्णु पुराण-४]। २६ मार्च २०१०। भार्गव</ref>, [[चतुर्दशी]] को [[काली]] माता और अमावस्या को भगवती [[लक्ष्मी]] जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये [[दीपावली]] के दो दिन पूर्व [[धनतेरस]] को भगवान धन्वंतरी का जन्म [[धनतेरस]] के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने [[आयुर्वेद]] का भी प्रादुर्भाव किया था।<ref name="">[http://express.ashram.org/?tag=hmedabad दीपावली – पूजन का शास्त्रोक्त विधान]। आश्रम.ऑर्ग। २८ अक्टूबर २००८</ref> इन्‍हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में [[शंख]] और [[चक्र]] धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत [[कलश]] लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु [[पीतल]] माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।<ref>[http://hindi.webdunia.com/religion/astrology/article/0810/24/1081024022_1.htm धनतेरस पर सोना नहीं पीतल खरीदें]। वेब दुनिया</ref> इन्‍हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य '''आरोग्य का देवता''' कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में [[दिवोदास]] हुए जिन्होंने '[[शल्य चिकित्सा]]' का विश्व का पहला विद्यालय [[काशी]] में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य [[सुश्रुत]] बनाये गए थे।<ref name="वैभव">[http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/kbhu_v02.htm काशी की विभूतियाँ]। वाराणसी वैभव</ref> सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही [[सुश्रुत संहिता]] लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन ([[शल्य चिकित्सक]]) थे। [[दीपावली]] के अवसर पर [[कार्तिक]] [[त्रयोदशी]]-[[धनतेरस]] को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।
 
== ==
[[आयुर्वेद]] के संबंध में सुश्रुत का मत है कि ब्रह्माजी ने पहली बार एक लाख श्लोक के, आयुर्वेद का प्रकाशन किया था जिसमें एक सहस्र अध्याय थे। उनसे प्रजापति ने पढ़ा तदुपरांत उनसे अश्विनी कुमारों ने पढ़ा और उन से इन्द्र ने पढ़ा। इन्द्रदेव से धन्वंतरि ने पढ़ा और उन्हें सुन कर सुश्रुत मुनि ने आयुर्वेद की रचना की।<ref name="वैभव"/> भावप्रकाश के अनुसार आत्रेय प्रमुख मुनियों ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त कर उसे अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों को दिया।
:::विध्याताथर्व सर्वस्वमायुर्वेदं प्रकाशयन्।
:::स्वनाम्ना संहितां चक्रे लक्ष श्लोकमयीमृजुम्।।<ref>भावप्रकाश</ref>
 
इसके उपरान्त अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों के तन्त्रों को संकलित तथा प्रतिसंस्कृत कर चरक द्वरा '[[चरक संहिता]]' के निर्माण का भी आख्यान है। वेद के संहिता तथा ब्राह्मण भाग में धन्वंतरि का कहीं नामोल्लेख भी नहीं है। [[महाभारत]] तथा [[पुराणों]] में विष्णु के अंश के रूप में उनका उल्लेख प्राप्त होता है। उनका प्रादुर्भाव समुद्रमंथन के बाद निर्गत कलश से अण्ड के रूप मे हुआ। समुद्र के निकलने के बाद उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग निश्चित कर दें। इस पर विष्णु ने कहा कि ''यज्ञ का विभाग तो देवताओं में पहले ही हो चुका है अत: यह अब संभव नहीं है। देवों के बाद आने के कारण तुम (देव) ईश्वर नहीं हो। अत: तुम्हें अगले जन्म में सिद्धियाँ प्राप्त होंगी और तुम लोक में प्रसिद्ध होगे। तुम्हें उसी शरीर से देवत्व प्राप्त होगा और द्विजातिगण तुम्हारी सभी तरह से पूजा करेंगे। तुम आयुर्वेद का अष्टांग विभाजन भी करोगे। द्वितीय [[द्वापर युग]] में तुम पुन: जन्म लोगे इसमें कोई सन्देह नहीं है।''<ref name="वैभव"/> इस वर के अनुसार पुत्रकाम काशिराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न हो कर अब्ज भगवान ने उसके पुत्र के रूप में जन्म लिया और धन्वंतरि नाम धारण किया। धन्व [[काशी]] नगरी के संस्थापक काश के पुत्र थे।
 
वे सभी रोगों के निवराण में निष्णात थे। उन्होंने भरद्वाज से आयुर्वेद ग्रहण कर उसे अष्टांग में विभक्त कर अपने शिष्यों में बाँट दिया। धन्वंतरि की परम्परा इस प्रकार है -
::'''काश-दीर्घतपा-धन्व-धन्वंतरि-केतुमान्-भीमरथ (भीमसेन)-दिवोदास-प्रतर्दन-वत्स-अलर्क।'''
 
यह वंश-परम्परा हरिवंश पुराण के आख्यान के अनुसार है।<ref>हरिवंश पुराण (पर्व १ अ २९)</ref> विष्णुपुराण में यह थोड़ी भिन्न है-
::'''काश-काशेय-राष्ट्र-दीर्घतपा-धन्वंतरि-केतुमान्-भीरथ-दिवोदास।'''
 
== महिमा ==
वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ। जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था वहाँ धन्वंतरि को अमृत कलश मिला, क्योंकि विष्णु संसार की रक्षा करते हैं अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि को विष्णु का अंश माना गया।<ref name="वैभव"/> विषविद्या के संबंध में कश्यप और तक्षक का जो संवाद महाभारत में आया है, वैसा ही धन्वंतरि और नागदेवी मनसा का ब्रह्मवैवर्त पुराण<ref>ब्रह्मवैवर्त पुराण (३.५१)</ref> में आया है। उन्हें गरुड़ का शिष्य कहा गया है -
 
::सर्ववेदेषु निष्णातो मन्त्रतन्त्र विशारद:।
::शिष्यो हि वैनतेयस्य शंकरोस्योपशिष्यक:।।<ref>ब्रह्मवैवर्त पुराण३.५१</ref>
 
== मंत्र ==
[[चित्र:Statue of Dhanvantari.jpg|thumb|200px|तक्षकेश्वर मंदिर में धन्वन्तरी की मूर्ति]]
भगवाण धन्वंतरी की साधना के लिये एक साधारण मंत्र है:
:::'''ॐ धन्वंतरये नमः॥'''<ref name="ॐ"/>
इसके अलावा उनका एक और मंत्र भी है:
::'''ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:'''
::'''अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय'''
::'''त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप'''
::'''श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥'''<ref name="ॐ"/><ref name="इंडिया"/><ref name="मंत्राज़"/>
::'''ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व आमय'''
::'''विनाशनाय त्रिलोक नाथाय श्री महाविष्णुवे नम: ||'''
;अर्थात
::परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सर्वभय नाशक हैं, सररोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी को नमन है।
=== धन्वंतरी स्तोत्रम ===
 
प्रचलि धन्वंतरी स्तोत्र इस प्रकार से है।
::::'''ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।'''
::::'''सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥'''
::::'''कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।'''
::::'''वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥'''<ref name="ॐ"/>
 
== सन्दर्भ ==
{{Reflist|2}}
<!-- {{टिप्पणीसूची}} -->२०३ २०० ११३ १०५
 
==इन्हें भी देखें==
*[[धन तेरस]] - भगवान धन्वतरि की जयन्ती
*[[भैषज्यगुरु]]
*[[अश्विनीकुमार]]
*[[समुद्र मंथन]]
*[[चरक]]
 
==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://hindi.webdunia.com/आयुर्वेद-जनक-भगवान/आयुर्वेद-के-जनक-भगवान-धन्वंतरि-1101103051_1.htm आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि]
* [http://in.jagran.yahoo.com/news/opinion/general/6_3_8396743.html धन्वंतरि का अमृत]
* [http://dhanvantari.nols.com/ धन्‍वन्‍तरि]
* [http://www.slideshare.net/drdbbajpai/-133622/ आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वन्तरि] (स्लाइड प्रदर्शन)
* [http://www.sanatansociety.org/hindu_gods_and_goddesses/dhanwantari.htm धन्‍वन्‍तरि]
* [http://www.vedabase.net/sb/9/17/4/en1 भागवत पुराण में धन्वंतरी]
* [http://www.salagram.net/dhan.wav धन्वंतरी स्तोत्र का ऑडियो सुनें]
* [http://www.ignca.nic.in/coilnet/kbhu_v02.htm काशी की विभूतियाँ : श्री धन्वंतरि]
 
{{हिन्दू देवी देवता}}
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[[श्रेणी:हिन्दू देवता]]
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