"सीतामढ़ी": अवतरणों में अंतर

→‎साहित्य में सीतामढ़ी: प्रचार सामग्री
पंक्ति 213:
== साहित्य में सीतामढ़ी ==
[[चित्र:Ramdharisinghdinkar.gif|thumb|left| रामधारी सिंह `दिनकर']]
[[चित्र:Ravindra prabhat(2).jpg|thumb|right| रवीन्द्र प्रभात]]
 
'''यदि साहित्यिक दृष्टि से आँका जाये''' तो यह स्पष्ट विदित होगा कि सीतामढ़ी जिला ने अनेक विलक्षण प्रतिभा पुत्रों को अवतरित किया है। यह वही पावन भूमि है जहां से राष्ट्रकवि [[रामधारी सिंह `दिनकर']] का द्वंद्वगीत गुंजा था तथा बिहार के पंत नाम से चर्चित आचार्य जय किशोर नारायण सिंह ने अपनी सर्जन धर्मिता को धार दी। हिन्दी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान सांवलिया बिहारी लाल वर्मा ने "विश्व धर्म दर्शन" देकर धर्म-संस्कृति के शोधार्थियों के लिए प्रकाश का द्वार खोल दिया था। गाँव-गंवई भाषा में जनता के स्तर की कवितायें लिखकर नाज़िर अकवरावादी को चुनौती देने वाले आशु कवि बाबा नरसिंह दास का नाम यहाँ आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है। इसके अलावा [[रामवृक्ष बेनीपुरी]] के जीवन का वहुमूल्य समय यहीं व्यतीत हुआ था। साहित्य मर्मज्ञ लक्षमी नारायण श्रीवास्तव, डॉ रामाशीष ठाकुर, डॉ विशेश्वर नाथ बसु, राम नन्दन सिंह, पंडित बेणी माधव मिश्र, मुनि लाल साहू, सीता राम सिंह, रंगलाल परशुरामपुरिया, हनुमान गोएन्दका, राम अवतार स्वर्ङकर, पंडित उपेन्द्रनाथ मिश्र मंजुल, पंडित जगदीश शरण हितेन्द्र, ऋषिकेश, राकेश रेणु, राकेश कुमार झा, बसंत आर्य, राम चन्द्र बिद्रोही, माधवेन्द्र वर्मा, उमा शंकर लोहिया, गीतेश, इस्लाम परवेज़, बदरुल हसन बद्र, डॉ मोबिनूल हक दिलकश आदि सीतामढ़ी की साहित्यिक गतिविधियों में समय-समय पर जीवंतता लाने में सक्रिय रहे हैं।
Line 220 ⟶ 219:
 
अपने सीतामढ़ी प्रवास में कुछ साहित्यकारों ने यहाँ की साहित्यिक गतिविधियों में प्राण फूंकने का कार्य किया था, जिनमें सर्व श्री पांडे आशुतोष, तिलक धारी साह, ईश्वर चन्द्र सिन्हा, श्री राम दुबे, अदालत सिंह अकेला, डॉ हरेकृष्ण प्रसाद गुप्त अग्रहरी,[[हृदयेश्वर]] आदि। यहाँ की दो वहुचर्चित साहित्यिक प्रतिभाओं क्रमश: [[आशा प्रभात]] और [[रवीन्द्र प्रभात]] ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस शहर का नाम रोशन किया है।<ref>आज, राष्ट्रीय हिंदी दैनिक, पटना संस्करण,14.11.1994, पृष्ठ संख्या :9, आलेख शीर्षक : साहित्य में सीतामढ़ी, लेखक: रवीन्द्र प्रभात</ref>
 
'''[[रवीन्द्र प्रभात]]'''<ref>[राष्ट्रीय सहारा, हिंदी दैनिक, नयी दिल्ली, पृष्ठ संख्या -1 (उमंग),26 सितंबर 1994, शीर्षक : एक गौरवशाली अतीत ]</ref> अंतर्जाल पर सक्रिय लेखकों में अग्रणी और चर्चित हैं। इनका जन्म सीतामढ़ी के रून्नी सैदपुर थाना अंतर्गत महिंदवारा के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण [[परिवार]] में हुआ। इनका मूल नाम रवीन्द्र कुमार चौबे है। रवीन्द्र प्रभात<ref>[http://www.parikalpna.com/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%B2/a-short-introduction-of-ravindra-prabhat/ A Short Introduction of Ravindra Prabhat]</ref> हिन्दी के लोकप्रिय कवि, कथाकार और मुख्य ब्लॉग विश्लेषक हैं। ये पिछले लगभग दो दशक से [[हिन्दी]] में निरंतर लेखन कर रहे हैं। इनके अब तक 3 उपन्यास, एक काव्य संग्रह, दो गजल संग्रह, दो संपादित पुस्तक और एक ब्लॉगिंग का इतिहास प्रकाशित है।<ref>[मौन के स्वर, संपादक : श्री राम दूबे, प्रकाशन वर्ष: 1994, पृष्ठ संख्या : 58, प्रकाशक : काव्य संगम प्रकाशन, इन्दिरा नगर, सीतामढ़ी-843302]</ref> हिन्दी के उन्नयन हेतु कई देशों की यात्रा कर चुके और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके रवीन्द्र प्रभात को "ब्लॉग श्री" और "ब्लॉग भूषण" अलंकरण के साथ-साथ संवाद सम्मान-2009, सृजनश्री सम्मान-2011, हिन्दी साहित्यश्री सम्मान-2011, बाबा नागार्जुन जन्मशती कथा सम्मान-2012, प्रबलेस चिट्ठाकारिता शिखर सम्मान-2012 आदि से सम्मानित किया जा चुका है।<ref>[लीगेसी इंडिया, मासिक के अक्‍टूबर 2012 अंक के ब्‍लॉगरी स्‍तंभ में प्रकाशित समाचार]</ref>[[धरती पकड़ निर्दलीय]] भारतीय राजनीति पर आधारित इनका सर्वाधिक चर्चित उपन्यास है, जो हिन्दी में है। उल्लेखनीय है कि इस उपन्यास का एक साथ विश्व की पाँच भाषाओं क्रमश: अँग्रेजी, रूसी, जर्मन, फ्रांसीसी और उड़िया भाषाओं में प्रस्तावित है।
 
शहर के कोट बाजार निवासी '''[[आशा प्रभात]]''' ने [[हिंदी]] व [[उर्दू]] रचनाओं का एक अनोखा बागवान सजाया है। इनकी पहली कृति 'दरीचे' नामक काव्य संग्रह के रूप में वर्ष 1990 में प्रकाशित हुयी। उसके बाद 'धुंध में उगा पेड़' नामक उपन्यास प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास हिंदी व उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हो कर कामयाबी की राह आसान कर दी। 'मै और वह' नामक आशा प्रभात का उपन्यास अब तेलगू भाषा में अनुवादित होने जा रहा है।<ref>http://www.jagran.com/bihar/sitamarhi-8432354.html</ref>