"चाणक्य": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
चद्रगुप्त के साथ चाणक्य [[ब्राह्मण]] की मैत्री की कथा इस प्रकार है-
 
[[पाटलिपुत्र]] के राजा नंद या महानंद के यहाँ कोई [[यज्ञ]] था। उसमें चाणक्य [[ब्राह्मण]] भी गए और भोजन के समय एक प्रधान आसन पर जा बैठे। महाराजशूद्र नंदराजा धनानन्द ब्राह्मण विरोधी था। शूद्र राजा धनानन्द ने इनकाचाणक्य कालाब्राह्मण रंगको देखअपमानित इन्हेंकरते आसनहुए काला आसान पर से उठवा दिया। इसपर क्रुद्ध होकर इन्होंनेचाणक्य यह प्रतिज्ञा की कि जबतक मैं नंदों का नाश न कर लूँगा तबतक अपनी शिखा (ब्राह्मण की चुटिया)बाँधूँगा।बांधूंगा। उन्हीं दिनों राजकुमारचाणक्य चंद्रगुप्त राज्यमौर्य से निकालेमिलते गएहै, चंद्रगुप्त मौर्य की हष्ट पुष्ट शरीर और घुड़सवारी की योग्यता देखकर चाणक्य पहचान गया कि चंद्रगुप्त मौर्य में राजा बनने की काबिलियत थे।है। चद्रगुप्त ने चाणक्य से मेल किया और दोनोंफिर आदमियों[[चाणक्य नेनीति]] मिलकरसे म्लेच्छचंद्रगुप्त राजामौर्य म्लेच्छा पर्वतक की सेना लेकर पाटलिपुत्र पर चढ़ाई की और नंदों को युद्ध में परास्त करके मार डाला।
 
नंदों के नाश के संबंध में कई प्रकार की कथाएँ हैं। कहीं लिखा है कि चाणक्य ने [[शकटार]] के यहाँ निर्माल्य भेजा जिसे छूते ही महानंद और उसके पुत्र मर गए। कहीं [[विषकन्या]] भेजने की कथा लिखी है। मुद्राराक्षस नाटक के देखेने से जाना जाता है कि नंदों का नाश करने पर भी महानंद के मंत्री [[राक्षस]] के कौशल और नीति के कारण चंद्रगुप्त को [[मगध]] का सिंहासन प्राप्त करने में बड़ी बड़ी कठिनाइयाँ पडीं। अंत में चाणक्य ने अपने नीतिबल से राक्षसक्षत्रिय को प्रसन्न किया और चंद्रगुप्त का मंत्री बनाया। बौद्ध ग्रंथो में भी इसी प्रकार की कथा है, केवल 'महानंद' के स्थान पर 'धननंद' है
 
== जीवन-चरित ==