"मेड़न दास मन्दिर, अटवाधाम": अवतरणों में अंतर
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कहा जाता है प्राचीन काल में जब साधु संत भंडारे की व्यवस्था करते थे तब सभी साधु संतों को निमंत्रित किया जाता था, उन्हे खाना खिलाने के बाद उन्हे वस्त्र, जल पीने के लिए कमंडल, और कुछ भिक्षा भी दी जाती थी, एक बार की बात है की जगजीवन साहब बाबा (प्राचीन काल के बहुत प्रसिद्ध साधु) ने कोटवाधाम में एक विशालकाय भंडारे का आयोजन किया था जिसमे मेड़नदास बाबा नहीं पंहुच पाये थे, भंडारे में खाने के लिए सभी साधुवों को बुलाया गया सभी लोगों ने अपने अपने आसान ग्रहण किए और भोजन प्राप्त करने बैठे तो उन्होने कहा की अगर मेड़नदास होते तो अचार की व्यवस्था हो जाती, और तभी उनके पीछे से आवाज आई की गुरुजी अचार लीजिये , तो जगजीवन साहब ने कहा तुम्हें कैसे पता चला की हमने अचार की मांग की है , तो मेड़न दास ने कहा की मैं भगवान का जाप कर रहा था तभी मुझे ये एहसास हुआ की मेरे गुरु यानि आपने हमे अचार लाने के लिए याद किया है और मैं हाजिर हो गया , तभी जगजीवन साहब प्रसन्न हुये और कहा की “जो ना जाये कोटवा वो चला जाए अटवा”। और तभी से मेड़न दास बाबा की मान्यता और बढ़ गयी, और धीरे धीरे अटवाधाम की महत्ता बाराबंकी जिले से बाहर होते हुये पूरे प्रदेश में पंहुच गयी ।
लेखक- हरिओम वर्मा
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