"देवीभागवत पुराण": अवतरणों में अंतर

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== श्रवण विधि ==
देवी भागवत पुराण के अनुसार आगत मुनियों को यह कथा सुनाते हुए सूतजी बोले-श्रद्वालु ऋषियों ! कथा श्रवण के लिए श्रद्धालु जनों को शुभ मुहूर्त निकलवाने के लिए किसी ज्योतिर्विद् से सलाह लेनी चाहिए या फिर नवरात्रों में ही यह कथा-श्रवण उपयुक्त है। इस अनुष्ठान की सूचना विवाह के समान ही अपने सभी बंधु-बांधवों, सगे-संबंधियों, परिचितों, ब्राह्मण, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों एवं स्त्रियों को भी आमंत्रित करना चाहिए। जो जितना अधिक समय श्रवण में दे सके, उतना अवश्य दे। सभी आगंतुकों का स्वागत सत्कार आयोजन का धर्म है। कथा-स्थल को गोबर से लीपकर एक मंडप और उसके ऊपर एक गुंबद के आकार का चंदोवा लटकाकर इसके ऊपर देवी चित्र युक्त ध्वजा फहरा देनी चाहिए। कथा सुनाने के लिए सदाचारी, कर्मकांडी, निर्लोभी कुशल उपदेशक को ही नियुक्त करना चाहिए। प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर कलश की स्थापना करनी चाहिए। गणेश, नवग्रह, योगिनी, मातृका, क्षेत्रपाल, बटुक, तुलसी विष्णु तथा शंकर आदि की पूजा करके भगवती दुर्गा की आराधना करनी चाहिए। देवी की षोडशोपचार पूजा-अर्चना करके देवी भागवत ग्रंथ की पूजा करनी चाहिए तथा देवी यज्ञ निर्विघ्न समाप्त होने की अभ्यर्थना करनी चाहिए। प्रदक्षिणा और नमस्कार करते हुए देवी की स्तुति प्रारंभ करनी चाहिए। तत्पश्चात् ध्यानावस्थित होकर देवी कथा श्रवण करनी चाहिए। कथा के श्रवणकाल में श्रोता अथवा वक्ता को क्षौर कर्म नहीं करवाना चाहिए। भूमि पर शयन ब्रह्मचर्य का पालन सादा भोजन संयम शुद्ध आचरण सत्य भाषण, तथा अहिंसा का व्रत लेना चाहिए। तामस पदार्थ यथा-प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि का भक्षण भी वर्जित है। स्त्री-प्रसंग का बलपूर्वक त्याग करना चाहिए। नवाह्न यज्ञ की समाप्ति पर नवें दिन अनुष्ठान का उद्यापन करना चाहिए। उस दिन वक्ता तथा भागवत पुराण दोनों की पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण तथा कुमारिकाओं को भोजन एवं दक्षिणा देकर तृप्त करना चाहिए। गायत्री मंत्र से होम करके स्वर्ण मंजूषा पर अधिष्ठित भागवत पुराण वक्ता ब्राह्मण को दान में देते हुए दक्षिणादि से संतुष्ट करते हुए उसे विदा करना चाहिए। पूर्वोक्त विधि-विधान से निष्काम भाव से पारायण करने वाला श्रोता श्रद्धालु मोक्षपद को और सकाम भाव से पारायण करने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त करता है। कथा-श्रवण के समय किसी भी प्रकार का वार्तालाप, ध्यानभग्नता, आसन बदलने, ऊंघने या अश्रद्धा से बड़ी भारी हानि हो सकती है अत: ऐसा नहीं करना चाहिए। सूतजी महाराज ने कहा-अठारह पुराणों में देवी भागवत् पुराण उसी प्रकार सर्वोत्तम है, जिस प्रकार नदियों में गंगा, देवों में शंकर, काव्यों में रामायण, प्रकाश स्रोतों में सूर्य, शीतलता और आह्लाद में चंद्रमा, क्षमाशीलों में पृथ्वी, गंभीरता में सागर और मंत्रों में गायत्री आदि श्रेष्ठ हैं। यह पुराण श्रवण सब प्रकार के कष्टों का निवारण करके आत्मकल्याण करता है। अत: इसका पारायण सभी के लिए श्रेष्ठ एवं वरेण्य है।
देवी भागवत पुराण के अनुसार आगत मुनियों को यह कथा सुनाते हुए सूतजी बोले-श्रद्वालु ऋषियों ! कथा श्रवण के लिए श्रद्धालु जनों को शुभ मुहूर्त निकलवाने के लिए किसी ज्योतिर्विद्
 
सलाह लेनी चाहिए या फिर नवरात्रों में ही यह कथा-श्रवण उपयुक्त है। इस अनुष्ठान की सूचना विवाह के समान ही अपने सभी बंधु-बांधवों, सगे-संबंधियों, परिचितों, ब्राह्मण, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों एवं स्त्रियों को भी आमंत्रित करना चाहिए। जो जितना अधिक समय श्रवण में दे सके, उतना अवश्य दे। सभी आगंतुकों का स्वागत सत्कार आयोजन का धर्म है। कथा-स्थल को गोबर से लीपकर एक मंडप और उसके ऊपर एक गुंबद के आकार का चंदोवा लटकाकर इसके ऊपर देवी चित्र युक्त ध्वजा फहरा देनी चाहिए। कथा सुनाने के लिए सदाचारी, कर्मकांडी, निर्लोभी कुशल उपदेशक को ही नियुक्त करना चाहिए। प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर कलश की स्थापना करनी चाहिए। गणेश, नवग्रह, योगिनी, मातृका, क्षेत्रपाल, बटुक, तुलसी विष्णु तथा शंकर आदि की पूजा करके भगवती दुर्गा की आराधना करनी चाहिए। देवी की षोडशोपचार पूजा-अर्चना करके देवी भागवत ग्रंथ की पूजा करनी चाहिए तथा देवी यज्ञ निर्विघ्न समाप्त होने की अभ्यर्थना करनी चाहिए। प्रदक्षिणा और नमस्कार करते हुए देवी की स्तुति प्रारंभ करनी चाहिए। तत्पश्चात् ध्यानावस्थित होकर देवी कथा श्रवण करनी चाहिए। कथा के श्रवणकाल में श्रोता अथवा वक्ता को क्षौर कर्म नहीं करवाना चाहिए। भूमि पर शयन ब्रह्मचर्य का पालन सादा भोजन संयम शुद्ध आचरण सत्य भाषण, तथा अहिंसा का व्रत लेना चाहिए। तामस पदार्थ यथा-प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि का भक्षण भी वर्जित है। स्त्री-प्रसंग का बलपूर्वक त्याग करना चाहिए। नवाह्न यज्ञ की समाप्ति पर नवें दिन अनुष्ठान का उद्यापन करना चाहिए। उस दिन वक्ता तथा भागवत पुराण दोनों की पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण तथा कुमारिकाओं को भोजन एवं दक्षिणा देकर तृप्त करना चाहिए। गायत्री मंत्र से होम करके स्वर्ण मंजूषा पर अधिष्ठित भागवत पुराण वक्ता ब्राह्मण को दान में देते हुए दक्षिणादि से संतुष्ट करते हुए उसे विदा करना चाहिए। पूर्वोक्त विधि-विधान से निष्काम भाव से पारायण करने वाला श्रोता श्रद्धालु मोक्षपद को और सकाम भाव से पारायण करने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त करता है। कथा-श्रवण के समय किसी भी प्रकार का वार्तालाप, ध्यानभग्नता, आसन बदलने, ऊंघने या अश्रद्धा से बड़ी भारी हानि हो सकती है अत: ऐसा नहीं करना चाहिए। सूतजी महाराज ने कहा-अठारह पुराणों में देवी भागवत् पुराण उसी प्रकार सर्वोत्तम है, जिस प्रकार नदियों में गंगा, देवों में शंकर, काव्यों में रामायण, प्रकाश स्रोतों में सूर्य, शीतलता और आह्लाद में चंद्रमा, क्षमाशीलों में पृथ्वी, गंभीरता में सागर और मंत्रों में गायत्री आदि श्रेष्ठ हैं। यह पुराण श्रवण सब प्रकार के कष्टों का निवारण करके आत्मकल्याण करता है। अत: इसका पारायण सभी के लिए श्रेष्ठ एवं वरेण्य है।
 
== इन्हें भी देखें ==