"मैणा-मवालस्यूं-१, चौबटाखाल तहसील": अवतरणों में अंतर

जानकारी जोड़ी Harish Thapliyal
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1830 से पूर्व लोगों का जीवनस्तर आज की तुलना में बद से भी बदतर था तब न tv थे न रेडिओ कार बस मोटर साइकल रेल हवाई जहाज कुछ नही थे एक साधारण सी चीज माचिस भी नहीँ थी मिट्टी तेल भी नहीँ था न स्टील के बर्तन थे न अल्मूनियम के बर्तन न कपड़े धोने का साबुन था न नहाने का ! यंहा तक की आज वाली सुई भी नहीँ थी वालों पर कंघी करने की जरूरत भी नही होती थी हर घर मै मंदरी और दन बहूउपयोगी होती थी ये खेती के काम के साथ घर में सोने के काम आती थी लोगों के पास तब रजाई गद्दे भी नही होते थे ठंड से बचने के लिये घरो की ऊँचाई अधिकतम 7फुट होती थी और गोर भी उसी चारदीवारी में होते थे जिसमें मनुष्य होते थे महिलाएँ मोतियों की माला और चाँदी के गहने पहनती थी बेटियों की शादी में माँ बाप उसके शृंगार का सामान रखने के लिये बांस की बनी कंडी देती थी जो बाद में एक रिवाज़ बनकर दूँण कंडी हो गया
उस जमाने में स्कूल तो नही थे लेकिन तब के लोग साक्षर थे फौज में भरती होंने वालों कॊ फौज में शिक्षा दी जाती थी और जो गाँव में थे उनको गुरूकुल में शिक्षा दी जाती थी गाँवों में पहले के महादेव मंदिर गुरूकुल के रुप में इसतेमाल होते थे और इसीलिए सन्यासी लोग गुरू शिष्य की परम्परा निभाते चले आ रहे है 1860 के बाद अंग्रेजों ने इंडियाएजुकेशन act निकाला जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने इन गुरुकुलों कॊ बंद करने का हुक्म दिया
उस समय के गाँव की बसावट की शुरूवात श्रीनगर की तरफ़ से गढ़वाल के अन्य भागों की तरफ़ हुई ! मैणा गाँव में सबसे पहले बसने वाले मणु राम जी के पूर्वज राज़ पुरोहित रह चुके थे इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा रोज़गार और व्यापार पूर्व पीढियों से चलता हुआ आ रहा था ! ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है की तिब्बत के व्यापारी जल मार्गों से श्रीनगर तक सामान की आपूर्ति करते थे और उधर चीन में तिब्बती खच्चरों से सामान लाते थे समुद्री सीपियों की माला शंख मसाले गर्म कपड़े नमक और गुड़ इत्यादि ये लोग गढ़वाल में लाते थे और यंहा से ठेकेदार लोग मैदानों तक व्यापार करते थे
 
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