"तुकोजी होल्कर": अवतरणों में अंतर

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== अवनति के पथ पर ==
सन् 1780 में तुकोजी महादजी से अलग हो गया। उसके बाद महादजी ने राजनीतिक क्षेत्र में भारी उन्नति प्राप्त की तथा तुकोजी का स्थान काफी नीचा हो गया। वस्तुतः तुकोजी में दूरदर्शिता का अभाव था।<ref>तवारीख-ए-शिन्देशाही, नीलेश ईश्वरचन्द्र करकरे, ग्वालियर, संस्करण-2017, पृष्ठ-293.</ref> वह अपने अधीनस्थ व्यक्तियों एवं सचिवों के हाथ की कठपुतली की तरह था। विशेषतः उसके सचिव नारोशंकर का उस पर अनर्गल प्रभाव था। इन्हीं कारणों से अहिल्याबाई का मुख्य कार्यवाहक होने के बावजूद स्वयं अहिल्याबाई उस पर अधिक विश्वास नहीं करती थी।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-209.</ref> लालसोट के संघर्ष के बाद 1787 में महादजी द्वारा सहायता भेजे जाने के अनुरोध पर नाना फडणवीस ने पुणे से अली बहादुर तथा तुकोजी होलकर को भेजा था; परंतु एक तो इन दोनों ने पहुँचने में अत्यधिक समय लगाया और फिर पहुँचकर भी महादजी से वैमनस्य उत्पन्न कर लिया। तुकोजी जीते गये प्रांतों में हिस्सा चाह रहा था और स्वभावतः महादजी का कहना था कि यदि पैसाहिस्सा चाहिए तो पहले विजय हेतु व्यय किये गये धन को चुकाने में भी चुकानाहिस्सा देना चाहिए।<ref>तवारीख-ए-शिन्देशाही, नीलेश ईश्वरचन्द्र करकरे, ग्वालियर, संस्करण-2017, पृष्ठ-353.</ref> राजपूत संघ द्वारा उत्पन्न महादजी के कष्टों को दूर करने के स्थान पर तुकोजी ने उनके शत्रुओं का पक्ष लिया तथा महादजी के प्रयत्नों को निर्बल बनाने में योगदान दिया। वस्तुतः तुकोजी मदिरा-व्यसनी सैनिक मात्र था। प्रशासन के कार्यों में मुख्यतः वह अपने षड्यंत्रकारी सचिव नारों गणेश के हाथों का खिलौना बनकर ही रह गया था। अहिल्याबाई तथा तुकोजी जो प्रायः समवयस्क थे कभी समान मतवाले होकर नहीं रह पाये। अहिल्याबाई ने तुकोजी को पदच्युत करने का भी प्रयत्न किया परंतु उनके परिवार में कोई अन्य व्यक्ति ऐसा था भी नहीं जो कि सेना का नियंत्रण संभाल सकता। अतः कोष पर अहिल्याबाई की पकड़ बनी रही और सैनिक अभियानों में तुकोजी होलकर को भुखमरी की स्थिति तक का सामना करना पड़ा।
 
तुकोजी होलकर के चार पुत्र थे, परंतु ये सभी मदिरा-व्यसनी और नीच प्रकृति के थे। मदिरापान करके उन्मुक्त होकर चिल्लाते हुए ये एक दूसरे के गले पकड़ लेते थे। सन् 1791 में महादजी ने अपना उत्तर भारतीय कार्य सफलतापूर्वक संपन्न कर लिया तथा सफलता एवं वैभव के शिखर पर आसीन होकर दक्षिण लौटे। होल्कर के उपभोग के लिए कोई वास्तविक सत्ता या कार्यक्षेत्र रह नहीं गया था। इससे तुकोजी होलकर के साथ अहिल्याबाई भी काफी निराश हुई तथा महादजी के प्रति ये दोनों ईर्ष्या-ग्रस्त हो गये।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-218.</ref>