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! निधन:
| [[21 अगस्त]], [[2006]]
वेबसाइट , http://ustadbismillahkhan.com/
संस्था : Ustad Bismillah Khan Educational Society (UBKES)
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! bgcolor="#efefef" colspan="2" | संगीतज्ञ, शहनाई वादक
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! जन्मस्थान:
| [[डुमराँव]], [[बिहार]]
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== प्रारम्भिक जीवन ==
बिस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगम्बर खाँ और मिट्ठन बाई के यहाँ बिहार के डुमराँव के ठठेरी बाजार के एक किराए के मकान में हुआ था। उस रोज भोर में उनके बचपनपिता कापैगम्बर नामबख्श क़मरुद्दीनराज था।दरबार वेमें अपनेशहनाई माता-पिताबजाने के लिए घर से निकलने की दूसरीतैयारी सन्तानही थे।:कर रहे थे चूँकिकि उनके बड़ेकानों भाईमें काएक नामबच्चे शमशुद्दीनकी थाकिलकारियां अत:सुनाई उनकेपड़ी। दादाअनायास रसूलसुखद बख्शएहसास नेके कहा-"बिस्मिल्लाह!"साथ जिसकाउनके मतलबमुहं थासे "अच्छीबिस्मिल्लाह शुरुआत!शब्द याही श्रीगणेश"निकला। अत:उन्होंने घरअल्लाह वालोंके नेप्रति यहीआभार नामव्यक्त रखकिया। दिया।हालांकि औरउनका आगेबचपन चलकरका वेनाम "बिस्मिल्लाकमरुद्दीन खाँ"था। लेकिन वह बिस्मिल्लाह के नाम से मशहूरजाने हुए।गए जिसका शाब्दिक अर्थ है , श्री गणेश। वे अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे। |उनके खानदान के लोग दरवारी राग बजाने में माहिर थे जो बिहार की [[भोजपुर|भोजपुर रियासत]] में अपने संगीत का हुनर दिखाने के लिये अक्सर जाया करते थे। उनके पिता बिहार की डुमराँव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरवार में शहनाई बजाया करते थे। बिस्मिल्लाह खान के परदादा हुसैन बख्श खान, दादा रसूल बख्श, चाचा गाजी बख्श खान और पिता पैगंबर बख्श खान शहनाई वादक थे। 6 साल की उम्र में बिस्मिल्ला खाँ अपने पिता के साथ [[बनारस]] आ गये। वहाँ उन्होंने अपने चाचामामा अली बख्श 'विलायती' से शहनाई बजाना सीखा। उनके उस्ताद चाचामामा 'विलायती' [[विश्वनाथ मन्दिर]] में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे।
 
== पारिवारिक जीवन ==
उस्ताद का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन ख़ानम के साथ हुआ जो उनके मामू सादिक अली की दूसरी बेटी थी। उनसे उन्हें 9 संताने हुई। वे हमेशा एक बेहतर पति साबित हुए। वे अपनी बेगम से बेहद प्यार करते थे। लेकिन शहनाई को भी अपनी दूसरी बेगम कहते थे। 66 लोगों का परिवार था जिसका वे भरण पोषण करते थे और अपने घर को कई बार बिस्मिल्लाह होटल भी कहते थे। लगातार 30-35 सालो तक साधना, छह घंटे का रोज रियाज उनकी दिनचर्या में शामिल था। अलीबख्श मामू के निधन के बाद खां साहब ने अकेले ही 60 साल तक इस साज को बुलंदियों तक पहुंचाया ।
 
== सांझी संस्कृति के प्रतीक ==
यद्यपि बिस्मिल्ला खाँ [[शिया इस्लाम|शिया]] मुसलमान थे फिर भी वे अन्य हिन्दुस्तानी संगीतकारों की भाँति धार्मिक रीति रिवाजों के प्रबल पक्षधर थे । बाबा विश्वनाथ की नगरी के बिस्मिल्लाह खां एक अजीब किंतु अनुकरणीय अर्थ में धार्मिक थे। वे [[काशी]] के बाबा विश्वनाथ मन्दिर में जाकर तो शहनाई बजाते ही थे इसके अलावा वे [[गंगा]] किनारे बैठकर घण्टों रियाज भी किया करते थे। वह पांच बार के नमाजी थे, हमेशा त्यौहारों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे, पर रमजान के दौरान व्रत करते थे। बनारस छोडऩे के ख्याल से ही इस कारण व्यथित होते थे कि गंगाजी और काशी विश्वनाथ से दूर नहीं रह सकते थे। वे जात पात को नहीं मानते थे। उनके लिए संगीत ही उनका धर्म था। वे सही मायने में हमारी साझी संस्कृति के सशक्त प्रतीक थे।
 
== धार्मिक विश्वास ==
यद्यपि बिस्मिल्ला खाँ [[शिया इस्लाम|शिया]] मुसलमान थे फिर भी वे अन्य हिन्दुस्तानी संगीतकारों की भाँति धार्मिक रीति रिवाजों के प्रबल पक्षधर थे और [[हिन्दू]] देवी-देवता में कोई फ़र्IFFUBK1>{{cite web
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}}</ref> वे [[काशी]] के बाबा विश्वनाथ मन्दिर में जाकर तो शहनाई बजाते ही थे इसके अलावा वे [[गंगा]] किनारे बैठकर घण्टों रियाज भी किया करते थे। उनकी अपनी मान्यता थी कि उनके ऐसा करने से गंगा मइया प्रसन्न होती हैं।<ref name=BBCUBK1>{{cite news
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== सन्दर्भ ==
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[[श्रेणी:भारतीय मुस्लिम]]
[[श्रेणी:बिहार के लोग]]
 
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