"समीर (गीतकार)": अवतरणों में अंतर
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<big>'''समीर रिषी''' (''Sameer Rishi)'' एक युवा कवि और लेेखक हैं । इनकी कविता "[[पुकार]]" सर्वप्रथम सन् 2017 में राष्ट्रकवि [[रामधारी सिंह 'दिनकर']] के पृष्ठ पर प्रकाशित हुई और इंटरनेट के माध्यम से देशभर में चर्चित हो गई। यह कविता [[वीर रस]] से ओतप्रोत थी जिसे देशभर में हिंदी कविता के पाठकों से भरपूर सराहना प्राप्त हुई।</big>
'''जन्म ''एवं शिक्षा :'''''
<big>9 दिसम्बर सन् 1994 को जन्में '''''समीर रिषी''''' की प्रारंभिक शिक्षा [[उन्नाव जिला]] से हुई इसके पश्चात स्नातक की शिक्षा बी. ए. [[मानवशास्त्र]] और [[हिंदी साहित्य]] के साथ सन् 2012 से 2015 तक [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] कैंपस से हुई एवं स्नाकोत्तर की शिक्षा [[मानवशास्त्र]] विषय के साथ सन् 2015 से 2017 तक भी [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] कैम्पस से हुई।</big>
'''लेखन कार्य :'''
<big>लिखने में इनकी दिलचस्पी कॉलेज के दिनों से ही थी जब इन्होंने अपना एक अपूर्ण उपन्यास "[[द ड्वार्फ लैंड]]" लिखा था जो कि एक '''''फंतासी-फिक्शन''''' उपन्यास था। इसके अलावा भी समय - समय पर ये राष्ट्रीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में अपने लेखन से अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते रहे हैं। इनकी प्रचलित कविता "[[पुकार]]" जो वीर-रस से ओतप्रोत है एवं देश के युवाओं तथा निराश व्यक्ति को संघर्ष के लिए आह्वान है । यह कविता इस प्रकार है-</big>
सुन पथिक! तू चल ज़रा
क्या है तू यूँ सोंचता
ये राह तुझको ढूंढ़ती-
वो शूल तुझको पूंछता,
मार्ग है प्रशस्त जब तो
चाल से क्या डर भला!
तोड़ सारी बंदिशें-
वक़्त अब भी न टला...
धर स्वरुप विकराल तू
तो काल की बिसात क्या?
जीत की हों चाहतें-
तो हार की औकात क्या।
सोंच मत तू क्या हुआ
सोंच मत जो था बुरा,
वो लोग गिड़गिड़ाएंगे-
देख वो शिखर रहा...
उठ पथिक तू चल ज़रा
है कृष्ण! तुझको पूछता,
है कौरवों से तू घिरा-
वो 'पार्थ' तुझमें ढूंढ़ता।
ये राह ही कुरुक्षेत्र अब
यही तो चक्रव्यूह है,
है वीर अभिमन्यु! तू-
बहा दे रक़्त अब ज़रा...
कर्म कर तू कर्म कर
गीता की ये पुकार है,
हर क्षण है संग्राम अब
ये शत्रुओं की हार है...
चल पथिक तू चल पथिक!
'वो' मूक ही हो जाएंगे-
थे रोड़े तेरे राह के जो,
स्व-अग्नि में जल जाएंगे।
सुन पथिक! तू उठ पथिक!
अब चल भी दे तू यूँ ज़रा...
[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]
[[श्रेणी:फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता]]
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