"भारतीय रंगमंच": अवतरणों में अंतर

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== भारत के आदिकालीन रंगमंच ==
भारत मे जब रंगमंच की बात होती है तो ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में स्तिथ रामगढ़ के पहाड़ पर महाकवि कालीदास जी द्वारा निर्मित एक प्राचीनतम नाट्यशाला मौजूद है।रामगढ़ सरगुजा जिले के उदयपुर क्षेत्र में है,यह अम्बिकापुर-रायपुर हाइवे पर स्तिथ है। मान्यताओं के अनुसार कवि कालिदास जी ने अपने महाकाव्य मेघदूतम की रचना भी रामगढ़ के पहाड़ पर ही कि। इस आधार पर यह भी कहा जाता है कि अम्बिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्तिथ महाकवि कालिदास जी द्वारा निर्मित नाट्यशाला भारत का सबसे पहला नाट्यशाला है।
[[सीतावंगा की गुफा]] के देखने से पुराने नाट्यमंडपों के स्वरूप का कुछ अनुमान हो जाता है। यह गुफा १३.८ मीटर लंबी तथा ७.२ मीटर चौड़ी है। भीतर प्रवेश करने के लिए बाईं ओर से सीढ़ियाँ हैं, जिनसे कदाचित अभिनेता प्रवेश करते थे। भीतरी भाग में रंगमंच की व्यवस्था है। यह २.३ मीटर चौड़ी तीन सीढ़ियों (चबूतरों) से बना है, जो एक दूसरे से ७५ सेंमी. ऊँची हैं। चबूतरों के समने दो छेद हैं, जिनमें शायद बाँस या लकड़ी के खंभे लगाकर पर्दें लगाए जाया करते थे। दर्शकों के लिए जो स्थान है, वह ग्रीक ऐंफीथिएटर की भाँति सीढ़ीनुमा है। यहाँ ५० व्यक्ति बैठ सकते हैं। यह आदिकालीन रंगमंच का स्वरूप भी ऊपर वर्णित विकसित स्वरूप से मेल खाता है। भरत नाट्यशास्त्र से भी हमें नाट्यमंडप के प्राचीन स्वरूप का संकेत मिलता है। आदिवासियों के मंडप गुफारूपी (शैलगुहाकारी) हुआ करते थे, किंतु आर्य लोग अपनी आश्रम सभ्यता के अनुरूप अस्थायी तंबूनुमा नाट्यमंडपों से ही काम चलाया करते थे।