"आमेर दुर्ग": अवतरणों में अंतर
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इस प्रांगण में बनी दूसरी इमारत जय मन्दिर के सामने है और इसे सुख निवास या '''सुख महल''' नाम से जाना जाता है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार [[चंदन]] की लकड़ी से बना है और इसमें जालीदार संगमर्मर का कार्य है। नलिकाओं (''पाइपों'') द्वारा लाया गया जल यहां एक खुली नाली द्वारा बहता रहता था, जिसके कारण भवन का वातावरण शीतल बना रहता था ठीक वातानुकूलित-वायु वाले आधुनिक भवनों की ही तरह। इन नालियों के बाद यह जल उद्यान की क्यारियों में जाता है। इस महल का एक विशेष आकर्षण है '''डोली महल''', जिसका आकार एक डोली की भांति है, जिनमें तब राजपूत महिलाएँ कहीं भी आना जाना किया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पहले एक भूल-भूलैया भी बनी है, जहाँ महाराजा अपनी रानियों और पटरानियों के संग हंसी-ठिठोली करते व आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे। राजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं और जब वे युद्ध से लौटकर आते थे तो सभी रानियों में सबसे पहले उनसे मिलने की होड़ लगा करती थी। ऐसे में राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में घुस जाया करते थे व इधर-उधर घूमते थे और जो रानी उन्हें सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता था।<ref name="अभिव्यक्ति" />
;जादूई पुष्प
;[[चित्र:Amber 035.jpg|अंगूठाकार|131x131पिक्सेल|आमेर दुर्ग के स्तंभों में संगमर्मर में उकेरा हुआ जादूई पुष्प जिसमें सात विशिष्ट एवं अनोखे डिजाइन हैं।]]
यहां के शीष महल के स्तंभों में से एक के आधार पर नक्काशी किया गया जादूई पुष्प यहां का विशेष आकर्षण है। यह स्तंभाधार एक तितली के जोड़े को दिखाता है जिसमें पुष्प में सात विशिष्ट एवं अनोखे डिज़ाइन हैं और इनमें मछली की पूंछ, कमल,
;मान सिंह प्रथम का महल
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;सिंह द्वार
सिंह द्वार विशिष्ट द्वार है जो कभी संतरियों द्वारा सुरक्षित रहा करता था। इस द्वार से महल परिसर के निजी भवनों का प्रवेश मिलता है और इसकी सुरक्षा एवं सशक्त होने के कारण ही इसे सिंह द्वार कहा जाता था। सवाई जय सिंह (१६९९-१७४३ ई०) के काल में बना यह द्वार भित्ति चित्रों से अलंकृत है और इसका डिज़ाइन भी कुछ टेढा-मेढा है जिसके कारण किसी आक्रमण की स्थिति में आक्रमणकारियों को यहां सीधा प्रवेश नहीं मिल पाता।
===चतुर्थ प्रांगण ===
चौथे प्रांगण में राजपरिवार की महिलायें (जनाना) निवास करती थीं। इनके अलावा रानियों की दासियाँ तथा यदि हों तो राजा की उपस्त्रियाँ (अर्थात रखैल) भी यहीं निवास किया करती थीं। इस प्रभाग में बहुत से निवास कक्ष हैं जिनमें प्रत्येक में एक-एक रानी रहती थीं, एवं राजा अपनी रुचि अनुसार प्रतिदिन किसी एक के यहाँ आते थे, किन्तु अन्य रानियों को इसकी भनक तक नहीं लगती थी कि राजा कब और किसके यहाँ पधारे हैं। सभी कक्ष एक ही गलियारे में खुलते थे।<ref name="BrownThomas2008"/>
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