"दहेज प्रथा": अवतरणों में अंतर

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== सन्दर्भ ==
{{टिप्पणीसूची}}CHAPPU (MAGARDAHI MOB -8936003500 )
 
'''प्रश्न :- बेरोजगारी की समस्या पर निबंध |'''
 
'''''उत्तर :-'' बेरोजगारी का अर्थ :-''' बेरोजगारी उस सिथति को दर्शाती है जिसमें श्रमिककामगार कार्य करने के लिये योग्य तथा तत्पर है लेकिन उसे रोजगार नहीं मिलता है। दूसरे शब्दों में, बेरोजगारी वह सिथति है जहाँ व्यकित कार्य करने के लिये योग्य तथा तत्पर होते हुए भी वह काम पाने में असफल रहता है, जो उसे आम या आजीविका प्रदान करता है।
 
बेरोजगारी देश के सम्मुख एक प्रमुख समस्या है जो प्रगति के मार्ग को तेजी से अवरुद्‌ध करती है । यहाँ पर बेरोजगार युवक-युवतियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है । स्वतंत्रता के पचास वर्षों बाद भी सभी को रोजगार देने के अपने लक्ष्य से हम मीलों दूर हैं ।
 
लिए चुनौती बन रही है । हमारे देश में बेरोजगारी के अनेक कारण हैं । अशिक्षित बेरोजगार के साथ शिक्षित बेरोजगारों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है । देश के 90% किसान अपूर्ण या अर्द्ध बेरोजगार हैं जिनके लिए वर्ष भर कार्य नहीं होता है । वे केवल फसलों के समय ही व्यस्त रहते हैं ।
 
शेष समय में उनके करने के लिए खास कार्य नहीं होता है । यदि हम बेरोजगारी के कारणों का अवलोकन करें तो हम पाएँगे कि इसका सबसे बड़ा कारण देश की निरंतर बढ़ती जनसंख्या है । हमारे संसाधनों की तुलना में जनसंख्या वृद्‌धि की गति कहीं अधिक है जिसके फलस्वरूप देश का संतुलन बिगड़ता जा रहा है ।
 
इसका दूसरा प्रमुख कारण हमारी शिक्षा-व्यवस्था है । वर्षो से हमारी शिक्षा पद्‌धति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है । हमारी वर्तमान शिक्षा पद्‌धति का आधार प्रायोगिक नहीं है । यही कारण है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भी हमें नौकरी नहीं मिल पाती है ।
 
बेरोजगारी का तीसरा प्रमुख कारण हमारे लघु उद्‌योगों का नष्ट होना अथवा उनकी महत्ता का कम होना है । इसके फलस्वरूप देश के लाखों लोग अपने पैतृक व्यवसाय से विमुख होकर रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं ।
 
आज आवश्यकता इस बात की है कि बेरोजगारी के मूलभूत कारणों की खोज के पश्चात् इसके निदान हेतु कुछ सार्थक उपाय किए जाएँ । इसके लिए सर्वप्रथम हमें अपने छात्र-छात्राओं तथा युवक-युवतियों की मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा ।
 
यह तभी प्रभावी हो सकता है जब हम अपनी शिक्षा पद्‌धति में सकारात्मक परिवर्तन लाएँ । उन्हें आवश्यक व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करें जिससे वे शिक्षा का समुचित प्रयोग कर सकें । विद्‌यालयों में तकनीकी एवं कार्य पर आधारित शिक्षा दें जिससे उनकी शिक्षा का प्रयोग उद्‌योगों व फैक्ट्रियों में हो सके और वे आसानी से नौकरी पा सकें ।
 
इस दिशा में सरकार निरंतर कार्य कर रही है । अपनी पंचवर्षीय व अन्य योजनाओं के माध्यम से लघु उद्‌योग के विकास के लिए वह निरंतर प्रयासरत है ।
 
सभी सरकारी एवं गैर सरकारी विद्‌यालयों में तकनीकी तथा व्यवसायिक शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है । बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रण में लेने हेतु विभिन्न परिवार कल्याण योजनाओं को लागू किया गया है । सभी बड़े शहरों में रोजगार कार्यालय खोले गए हैं जिनके माध्यम से युवाओं को रोजगार की सुविधा प्रदान की जाती है ।
 
परंतु विभिन्न सरकारों ने यह स्वीकार किया है कि रोजगार कार्यालयों के माध्यम से बहुत थोड़ी संख्या में ही बेराजगारों को खपाया जा सकता है क्योंकि सभी स्थानों पर जितने बेकार हैं उसकी तुलना में रिक्तियों की संख्या न्यून है । इस कारण बहुत से लोग असंगठित क्षेत्र में अत्यंत कम पारिश्रमिक पर कार्य करने के लिए विवश हैं ।
 
वर्तमान में सरकार इस बात पर अधिक बल दे रही है कि देश के सभी युवक स्वावलंबी बनें । वे केवल सरकारी सेवाओं पर ही आश्रित न रहें अपितु उपयुक्त तकनीकी अथवा व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण कर स्वरोजगार हेतु प्रयास करें ।
 
नवयुवकों को उद्‌यम लगाने हेतु सरकार उन्हें कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान कर रही है तथा उन्हें उचित प्रशिक्षण देने में भी सहयोग कर रही है । हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि बदलते परिपेक्ष्य में हमारे देश के नवयुवक कसौटी पर खरे उतरेंगे और देश में फैली बेरोजगारी जैसी समस्या से दूर रहने में सफल होंगे ।
 
बेरोजगारी की समस्या का आरोप सामान्यतया शिक्षित मध्यम श्रेणी की बेरोजगारी को सामने रखकर लगाया जाता है; किंनु यह एकांगी दृष्टिकोण है ।
 
चाहे फावड़ा चलाकर रोजी-रोटी कमानेवाले मजदूर हों, चाहे वर्षा, शीत, ग्रीष्म में अपने शरीर और सुख का होम करनेवाले कृषक, चाहे मशीनों के संपर्क में स्वयं यंत्र बने फैक्टरी के कर्मचारी हों या अनवरत बौद्धिक श्रम करनेवाले अपने स्वास्थ के शत्रु स्नातक हों, यदि वे अपनी आशाओं को पूरा नहीं कर पाते, अपने आश्रितों-कुटुंबियों का भरण-पोषण नहीं कर पाते ।
 
इस प्रकार बेरोजगारी के शिकार पढ़े-लिखे, निरक्षर-साक्षर सभी वर्ग के व्यक्ति हो सकते हैं। सुविधा के लिए हम इन्हें दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं- १. पढ़े-लिखे बेरोजगार, २. शारीरिक श्रम करनेवाले अशिक्षित व्यक्ति- मजदूर, किसान आदि ।
 
भारत में बेरोजगारी की समस्या लंबे समय से चली आ रही है; किंतु वर्तमान समय में इसने विकराल रूप धारण कर लिया है । द्वितीय महायुद्ध के पूर्व भी बेरोजगारी की समस्या थी । महायुद्ध के समय अधिकांश व्यक्तियों को उनके अनुरूप काम मिल गया । सबको पेट भर खाना मिलने लगा; किंतु युद्ध की समाप्ति के पश्चात् बेकारी की समस्या दोगुनी हो गई ।
 
देश में वस्तुओं और नौकरियों का अभाव होते हुए भी बड़ी मात्रा में श्रमिक-शक्ति शून्य पड़ी है । एक ओर तो देश में सभी प्रकार के उत्पादन की कमी है तथा दूसरी ओर मानव-संसाधन अब तक अप्रयुक्त खड़े हैं । स्पष्टतया पूँजी और साहस की कमी ही बेरोजगारी का प्रमुख कारण है । उत्तरी भारत में किसानों को वर्ष में सात महीने बेकार रहना पड़ता है । भूमिहीन श्रमिकों की दशा और भी दयनीय है । इनकी संख्या कुल ग्रामीण जनता का २० प्रतिशत है ।
 
==== बेरोजनारिा के कारण ====
'''१.''' जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि ।
 
'''२.''' ग्रामीण और कुटीर उद्योगों का जनसंख्या के अनुपात में न बढ़ना ।
 
'''३.''' कृषि के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में रोजगार की सुविधाओं का अभाव ।
 
'''४.''' पड़ोसी देशों से बड़ी संख्या में बेरोजगारों की घुसपैठ ।
 
==== समस्या का निराकरण ====
'''१.''' जनसंख्या नियंत्रण की विशेष आवश्यकना है, क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में हमारे रोजगार बौने साबित होते हैं ।
 
'''२.''' कुटीर उद्योग एवं ग्रामीण उद्योगों का तेजी से विकास है ।
 
'''३.''' देश में शीघ्रातिशीघ्र औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षण पर विशेष जोर दिया जाए ।
 
'''४.''' देश मैं यातायात और लोकहितकारी सेवाओं के विकास पर ध्यान दिया जाए । सड़कें, रेल और हवाई सेवाओं आदि को दुरुस्त किया जाना चहिए ।
 
'''५.''' कृषि रोजगार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । लाखों हेक्टेयर भूमि ऊसर अथवा बेकार पड़ी है, जिसे वैज्ञानिक रीति से उर्वर बनाकर सहकारी खेती के द्वारा बेरोजगारी को कम किया जा सकता है । खेती के साथ-साथ सहायक उद्योग भी चलाए जा सकते हैं; जैसे- सुअर पालन, मुरगी पालन, मधुमक्खी पालन, रेशम कीट पालन, दुग्ध उद्योग या अन्य प्रकार के कुटीर उद्योग चलाना ।
 
'''६.''' गाँवों में स्वरोजगार को बढ़ावा देकर गाँवों से शहरों की ओर होनेवाले पलायन को रोका जा सकता है ।
 
'''७.''' शिक्षा को रोजगारपरक बनाया जाए, तकनीकी प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था की जाए ।
 
इन सबके अलावा विश्वविद्यालयों से निकलनेवाले स्नातकों को जब तक रोजगार नहीं मिलता तब तक सरकार की ओर से बेरोजगारी भत्ता दिया जाना चाहिए ।
 
प्राचीन काल में भारत आर्थिक दृष्टि से पूर्णत: सम्पन्न था । तभी तो यह ‘ सोने की चिड़िया ‘ के नाम से विख्यात था । किन्तु, आज भारत आर्थिक दृष्टि से विकासशील देशों की श्रेणी में है । आज यहाँ कुपोषण और बेरोजगारी है । आज हमारे देश में जो अव्यवस्था व्याप्त है, उसकी जड़ में बेरोजगारी की समस्या विकराल है । लूट-खसोट, छीना-झपटी, चोरी-डकैती, हड़ताल आदि कुव्यवस्थाएँ इसी समस्या के दुष्परिणाम हैं । बेरोजगारी का अभिप्राय है – काम करने योग्य इच्छुक व्यक्ति को कोई काम न मिलना । भारत में बेरोजगारी के अनेक रूप हैं । बेरोजगारी में एक वर्ग तो उन लोगों का है, जो अशिक्षित या अर्द्धशिक्षित हैं और रोजी-रोटी की तलाश में भटक रहे हैं । दूसरा वर्ग उन बेरोजगारों का है जो शिक्षित हैं, जिसके पास काम तो है, पर उस काम से उसे जो कुछ प्राप्त होता है, वह उसकी आजीविका के लिए पर्याप्त नहीं है । बेरोजगारी की इस समस्या से शहर और गाँव दोनों आक्रांत हैं ।देश के विकास और कल्याण के लिए 1951 – 52 में पंचवर्षीय योजनाओं को आरंभ किया गया था । योजना आरंभ करने के अवसर पर आचार्य विनोबा भावे ने कहा था किसी भी राष्ट्रीय योजना की पहली शर्त सबको रोजगार देना है । यदि योजना से सबको रोजगार नहीं मिलता, तो यह एकपक्षीय होगा, राष्ट्रीय नहीं । आचार्य भावे की आशंका सत्य सिद्ध हुई । प्रथम पंचवर्षीय योजनाकाल से ही बेरोजगारी घटने के स्थान पर निरंतर बढ़ती चली गयी । आज बेरोजगारी की समस्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी है ।
 
हमारे देश में बेरोजगारी की इस भीषण समस्या के अनेक कारण हैं । उन कारणों में लॉर्ड मैकॉले की दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति, जनसंख्या की अतिशय वृद्धि, बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना के कारण कुटीर उद्योगों का ह्रास आदि प्रमुख हैं । आधुनिक शिक्षा प्रणाली में रोजगारोन्मुख शिक्षा व्यवस्था का सर्वथा अभाव है । इस कारण आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों के सम्मुख भटकाव के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह गया है । बेरोजगारी की विकराल समस्या के समाधान के लिए कुछ राहें तो खोजनी ही पड़ेगी । इस समस्या के समाधान के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए ।
 
भारत में बेरोजगारी की समस्या का हल आसान नहीं है, फिर भी प्रत्येक समस्या का समाधान तो है ही । इस समस्या के समाधान के लिए मनोभावना में परिवर्तन लाना आवश्यक है । मनोभावना में परिवर्तन का तात्पर्य है – किसी कार्य को छोटा नहीं समझना ।
 
इसके लिए सरकारी अथवा नौकरियों की ललक छोड्‌कर उन धंधों को अपनाना चाहिए, जिनमें श्रम की आवश्यकता होती है । इस अर्थ में घरेलू उद्योग- धंधों को पुनर्जीवित करना तथा उन्हें विकसित करना आवश्यक है । शिक्षा नीति में परिवर्तन लाकर इसे रोजगारोम्मुखी बनाने की भी आवश्यकता है । केवल डिग्री ले लेना ही महत्त्वपूर्ण नहीं, अधिक महत्त्वपूर्ण है योग्यता और कार्यकुशलता प्राप्त करना ।
 
युवा वर्ग की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होनी चाहिए कि वह शिक्षा प्राप्त कर स्वावलंबी बनने का प्रयास करे । सरकार को भी चाहिए कि योजनाओं में रोजगार को विशेष प्रश्रय दिया जाए । भारत सरकार इस दिशा में विशेष प्रयत्नशील है । परन्तु सरकार की तमाम नीतियाँ एवं कार्यान्वयण नाकाफी ही साबित हुए हैं । मतलब साफ है कि सरकार की नीतियों में कहीं न कहीं कोई व्यावहारिक कठिनाई अवश्य है । अत: सरकार को चाहिए कि वह इसके निराकरण हेतु एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाए और समस्या को और अधिक बढ़ने न दे ।
 
भारत में बेरोजगारी की दर 9 प्रतिशत से भी ऊपर है और इस समय देश में हर 3 स्नातकों में एक व्यक्ति बेरोजगार है। देश में काम करने वाले लोगों की संख्या लगभग 75 करोड़ के करीब है जो वर्ष 2020 तक बढ़ कर 100 करोड़ तक पहुंच जाएगी। देश के कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर लगातार कम होते जा रहे हैं और इस क्षेत्र में केवल 50 प्रतिशत ही रोजगार के अवसर बचे हैं जो पहले के मुकाबले बहुत कम हैं। इसलिए औद्योगिक उत्पादकता को बढ़ाने के लिए मुख्य तौर पर स्किल डिवैल्पमैंट की अत्यधिक आवश्यकता है। वर्तमान सरकार इस पर काफी जोर लगा रही है। देश में वर्ष 2022 तक 50 करोड़ लोगों को स्किल डिवैल्पमैंट के अन्तर्गत लाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत में बेरोजगारी या रोजगारी की स्पष्ट स्थिति जानने के लिए भरोसेमंद सूचक (इंडैक्स) नहीं है और केवल नैशनल सैम्पल सर्वे पर ही आधारित रहना पड़ता है। भरोसेमंद डाटा बेस के लिए देश मे जर्मनी मॉडल काफी सहायक सिद्ध हो सकता है।
 
औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने में कानून बहुत बड़ी बाधा है। हमें इस पर जल्दी ही प्रभावी कार्रवाई करनी चाहिए। भारत सरकार संसार के दूसरे उद्यमियों को भारत में अपना उत्पादन करने के लिए प्रेरित कर रही है, परन्तु यह तभी संभव होगा यदि हम अपने श्रम कानूनों को दूसरे देशों की तरह यथार्थ में लचकीले बनाएं।
 
यह एक जानामाना तथ्य है कि देश के औद्योगिक उत्पादन में छोटे तथा मध्यम उद्योगों का बहुत बड़ा योगदान है परन्तु कानूनों के भार के नीचे आकर ये उद्योग पनप नहीं पा रहे हैं। देश में 6.3 करोड़ छोटे तथा मझोले उद्योग हैं और उनमें से केवल 7500 औद्योगिक इकाइयां ही उन्नत होकर कम्पनी का रूप ले सकी हैं जिनकी पूंजी 10 करोड़ से ज्यादा है। ऐसे उद्योग जिनमें 50 से ज्यादा कारीगर काम कर रहे हैं वे सभी उद्योग कुल औद्योगिक उत्पादन का 85 प्रतिशत भाग तैयार कर रहे हैं। ऐसी इकाइयों पर श्रम तथा दूसरे कानूनों का भारी बोझ है। आज उद्योगों में आपसी प्रतिस्पर्धा (कम्पीटिशन) बढ़ती  ही जा रही है और इसके लिए टैक्नोलॉजी का उपयोग बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि कोई इकाई अपनी उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता आधुनिक मशीनरी लगाकर बढ़ाना चाहती है तो स्वाभाविक तौर पर उस इकाई को ऐसा करने के लिए परिश्रम कम करना पड़ेगा परन्तु इसके लिए श्रम कानून बाधा है। इसलिए देश में ऐसा करने के लिए औद्योगिक इकाइयों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए।
 
बदलते हुए युग के अनुसार हमें अपने लेबर कानूनों को तेजी से संसार के दूसरे देशों के कानूनों के समान करना होगा। हमने अभी तक इंटरनैशनल लेबर आर्गेनाइजेशन (आई.एल.ओ.) की बहुत-सी कन्वैंशनों में पारित मसौदों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जबकि दक्षिण एशिया के कई देश इन पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
 
देश में श्रमिकों संबंधी लगभग 44 केन्द्रीय कानून हैं और उनमें से 27 कानून केवल श्रमिक की परिभाषा के लिए ही हैं। उदाहरण के तौर पर एयरलाइन के पायलटों को अभी तक ट्रेड यूनियन एक्ट में वर्कर के तौर पर शामिल किया जाता है, परन्तु पेमैंट ऑफ वेजिस एक्ट के अन्तर्गत उनको वर्कर के तौर पर शामिल नहीं किया गया है।
 
इम्प्लाइज प्रॉवीडैंट फंड (ई.पी. एफ.) स्कीम तथा ई.एस.आई. स्कीम आज के आधुनिक युग में उद्योगपतियों तथा लेबर के लिए एक बड़ी बाधा है। ई.पी.एफ.ओ. के पास इस समय 125 बिलियन डालर की सम्पदा है, जिसको संभालने में इस संस्था को काफी कठिनाई आ रही है। इम्प्लाइज प्रॉवीडैंट फंड आर्गेनाइजेशन (ई.पी.एफ.ओ.) के अन्तर्गत 8 करोड़ वर्कर रजिस्टर्ड हैं और वर्ष 2012 में इस संस्था का स्थान विश्व में नौवें नम्बर पर था। ई.पी.एफ.ओ. के प्रमुख के.के. जालान के अनुसार संस्था के पास इस समय कोई भरोसे लायक डाटा बेस नहीं है, जिसके अनुसार इस संस्था का संचालन ठीक ढंग से चलाया जा सके। ई.पी.एफ.ओ. के पैंशन फंड में वर्ष 2012-13 में 1.6 बिलियन डालर का घाटा दिखाई दे रहा है।
 
दूसरी ओर देश में मोदी सरकार ने पिछले बजट में ई.पी.एफ. स्कीम के अन्तर्गत कम से कम पैंशन बढ़ाकर 1000 रुपए कर दी है। पहले यह बहुत कम होती थी। इस पैंशन के भुगतान के लिए ई.पी.एफ.ओ. को फंड की भारी कमी महसूस होने पर, सरकार ने दूसरे कई विकल्पों पर विचार किया परन्तु अंत में ई.पी.एफ. की सीमा को 6500 रुपए से बढ़ा कर 15000 रुपए कर दिया गया है। इससे देश के एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के उद्योगों को विशेषकर तथा दूसरों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा  है।
 
इतनी ज्यादा वृद्धि एक ही बार में करना बहुत अनुचित है। यह वृद्धि 1952 में जब ई.पी.एफ. स्कीम लागू हुई थी, उसके बाद की आठवीं है। इससे पहले वर्ष 2001 में ई.पी.एफ. की सीमा 5000 से बढ़ाकर 6500 रुपए की गई थी। आज लोगों के रहन-सहन और महंगाई के कारण वर्कर ई.पी.एफ. स्कीम म अपना योगदान जमा करवाने से कतराते हैं हालांकि कम्पनी मालिकों में भी इतनी वृद्धि सहने की क्षमता नहीं है, परन्तु कानून से बंधे होने के कारण अब इस बढ़ौतरी को लागू करना पड़ेगा जोकि औद्योगिक उन्नति में एक बहुत बड़ी बाधा है।
 
बेरोजगारी, मंहगाई और भ्रष्टाचार हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या हैं। बेरोजगारी का घटाटोप एक वैश्विक परिदृश्य हो गया है। ‘संयुक्त राष्ट्र’ ने कहा है कि इस वर्ष विश्व में बेरोजगारों की संख्या 20 करोड़ 10 लाख को पार कर चुकी है जो कि पिछले साल की तुलना में 34 लाख अधिक है। संयुक्त राष्ट्र की अनुषंगायी  इकाई इन्टरनेशल लेबर आर्गनाइजेशन (आईएलओ) ने जेनेवा में जारी अपनी रिपोर्ट में चिंता जाहिर की है जिस तरह से दुनियाभर में रोजगार के अवसर घट रहे हैं यह बेहद घातक हो सकती है।
 
आईएलओ ने वर्ल्ड एम्प्लायमेंट एंड सोशल आउटलुक-2017 में चेतावनी दी है कि छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों में स्थिरता है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो साल में विश्वस्तर पर बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 में अभी तक 20 करोड़ दस लाख लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है, जो वर्ष 2016 में मुकाबले 34 लाख ज्यादा है। ये सभी लोग लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों में कार्यरत थे।
 
उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2003 से वर्ष 2008 तक छोटे उद्योगों में रोजगार सृजन की दर बड़े उद्योगों की वृद्धि दर से अधिक रही। वैश्विक स्तर पर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में छोटे उद्योग 52 प्रतिशत, तीव्र विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 34 प्रतिशत और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में 41 प्रतिशत रोजगार के अवसरों का सृजन करते हैं। इसलिए, ‘आईएलओ’ के उप महानिदेशक डेबोरा ग्रीन फील्ड ने कहा कि लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों में रोजगार सृजन में स्थिरता की स्थिति को समाप्त करने के लिए नीतियों में बदलाव करना होगा। छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाने और नए उद्यमियों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2003 में 2016 तक छोटे उद्योगों में पूर्णकालिक कर्मचारियों की संख्या दोगुनी हो गई। इस क्षेत्र में रोजगार पाने वाले लोगों का प्रतिशत भी 31 से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया।
 
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के अनुसार सन् 2017-18 में भारत में रोजगार की स्थिति बेहतर होने के आसार नहीं हैं। साल 2016 में बेरोजगारों की संख्याा लगभग 178 लाख थी, जिसके 2018 में 180 लाख से भी बढ़ जाने की आशंका है।  आज भारत की युवा ऊर्जा चरम पर है और भारत विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश माना जा रहा है। इसी युवा शक्ति में भारत की ऊर्जा अंतर्निहित है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं, जबकि देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है। यह स्थिति वर्ष 2045 तक बनी रहेगी। अपनी बड़ी युवाा आबादी के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था नई ऊंचाई पर जा सकती है। लेकिन इस ओर भी ध्यान देना होगा कि आज देश की आबादी का बड़ा हिस्सा बेरोजगारी से जूझ रहा है। श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश की बेरोजगारी दर 2015-16 में पांच प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पांच साल का उच्च स्तर है। महिलाओं के मामले में बेरोजगारी दर उल्लेखनीय रूप से 8.7 प्रतिशत के उच्च स्तर पर जबकि पुरूषों के संदर्भ में यह 4.3 प्रतिशत है। पढ़े-लिखे युवा भी बेरोजगारी से अछूते नहीं रहे हैं। इनमें 25 फीसदी 20 से 24 वर्ष के हैं, तो 17 फीसदी 25 से 29 वर्ष के युवा हैं। हमें युवा शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का संतुलित उपयोग विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में करना होगा। ज्ञातव्य है कि 2013-14 में चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने युवाओं को प्रति वर्ष एक करोड़ रोजगार के अवसर देने का वादा किया था। सरकार ने अपने कार्यालय के तीन साल पूरे कर लिए हैं और इस बात पर सभी एकमत हैं कि चुनाव में किया गया यह वादा पूरा नहीं किया जा सका है।
 
बजाए इस बात के कि तीन सालों में तीन करोड़ नए रोजगार के अवसर उत्पन्न किए जाते, संयुक्त राष्टÑ श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 और 2018 के बीच भारत में बेरोजगारी बढ़ सकती है और रोजगार के नए अवसर सृजित होने में बाधा आ सकती है। यही नहीं इस रिपोर्ट में वर्ष 2017 के दौरान बेरोजगारी बढ़ने तथा सामाजिक असमानता की स्थिति के और बिगड़ने की आशंका जताई गई थी। रिपोर्ट में यह अनुमान भी लगाया गया था कि विगत के 1.77 करोड़ बेरोजगारों की तुलना में 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ और उसके अगले साल यानि 2018 में 1.18 करोड़ हो सकती है। सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड ने नोटबंदी की वजह से रोजगार पर क्या असर पड़ा विषय पर सर्वे किया था। अपने सर्वे में उसने पाया कि नोटबंदी की वजह से करीब 15 लाख लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी और इसका असर करीब 60 लाख लोगों पर पड़ा। उनके मुंह से निवाला छिन गया।
 
एक सर्वे के अनुसार 22 से 25 साल की उम्र के 65 प्रतिशत और 26 से 30 उम्र के 60 प्रतिशत युवाओं में डिप्रेशन के लक्षण हैं। नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस के नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 में यह बात सामने आई है। इसके अनुसार 18 से 29 साल उम्र वर्ग के 7.5 प्रतिशत युवा मानसिक रोग से ग्रस्त हैं। बेरोजगारी, युवाओं में अवसाद का जनक है। बेरोजगारी का यह आलम निश्चित रूप से देश की चिंता का विषय है। यह स्थितियां हताशा पैदा करने वाली हैं। बेरोजगारी की यह भयावह वास्तविकता वस्तुत: एक चेतावनी है हमारे देश, हमारे समाज के लिए। हताशा की स्थिति नकारात्मक ताकतों को बढ़ावा देने की जमीन तैयार करती है, इसलिए इस खतरे को समझना और उससे उबरने की कोशिशों को तेज करना जरूरी है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का सपना तभी सच होगा, जब हर हाथ को काम मिलेगा, जब कोई बेकार नहीं रहेगा।
 
परन्तु, देश का हुक्मरान चाहता है कि सपने में रोटी खाने से भूख की समस्या का निदान हो। ज्ञातव्य है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ‘इंडिया 2020’ नाम अपनी कृति में भारत के महान राष्ट्र बनने में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित की है। पर महत्वपूर्ण यह है कि कोई भी राष्ट्र अपनी युवा पूंजी का भविष्य के लिए निवेश किस रूप में करता है। हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व देश के युवा बेरोजगारों की भीड़ को बोझ मानकर उसे भारत की कमजोरी बताता है या उसे कुशल मानव संसाधन के रूप में विकसित करके एक स्वाभिमानी, सुखी, समृद्ध और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में भागीदार बनाता है, यह हमारे राजनीतिक नेतृत्व की राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकारों की समझ पर निर्भर करता है। साथ ही, युवा पीढ़ी अपने सपनों को किस तरह सकारात्मक रूप में ढालती है, यह भी बेहद महत्वपूर्ण है। आंखों में उम्मीद के सपने, नई उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने का साहस रखने वाला युवा कहा जाता है।
 
==== प्रस्तावना: ====
भारत की गरीबी का एक मुख्य कारण देश में फैली बेरोजगारी है । यह देश की एक बड़ी समस्या है, जो शहरो और गांवो में समान रूप से व्याप्त है । यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है, जो आधुनिक युग की देन है । हमारे देश में इसने बड़ा गम्भीर रूप धारण कर लिया है । इसके कारण देश में शान्ति और व्यवस्था को खतरा पैदा हो गया है । अत: इस समस्या के तत्काल निदान की आवश्यकता है ।
 
==== भारत में बेरोजगारी के कारण: ====
इस गम्भीर समस्या के अनेक कारण हैं । बड़े पैमाने पर मशीनों का अंधाधुंध प्रयोग बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है । इनके कारण मनुष्य के श्रम की आवश्यकता बहुत कम हो गई है । इसके अलावा हमारी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है । जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात से उत्पादन के कामी तथा रोजगार के अवसरों में कम वृद्धि होती है । इसलिए बेरोजगारी लगातार बढती ही जाती है ।
 
भारत में व्याप्त अशिक्षा भी बेरोजगारी का मुख्य कारण है । आज के मशीनी युग में शिक्षित और कुशल तथा प्रशिक्षित व्यक्तियो की आवश्यकता पडती है । इसके अलावा, हमारी शिक्षा प्रणाली भी दोषपूर्ण है । हम अपनी शिक्षा व्यवस्था में साक्षरता को ही विशेष महत्त्व देते हैं । व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा की अवहेलना होती है । तकनीकी शिक्षा का जो भी प्रबन्ध है, उसमे सैद्धांतिक पहलू पर अधिक जोर दिया जाता है और व्यावहारिक पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता ।
 
यही कारण है कि हमारे इंजीनियर तक मशीनो पर काम करने से कतराते हैं । साधारण रूप से उच्च शिक्षा प्राप्त करके हम केवल नौकरी करने लायक बन पाते हैं । शिक्षा में श्रम को कोई महत्त्व नही दिया जाता । अत: शिक्षित व्यक्ति शारीरिक मेहनत के काम करने से कतराते हैं ।
 
सभी व्यक्ति सफेदपोशी की नौकरियो के पीछे भागते हैं । ऐसा काम इतने अधिक नहीं होते । जिनमें सभी शिक्षित व्यक्ति लग सके । इसीलिए क्लर्को की छोटी नौकरी तक के लिए भारी प्रतियोगिता होती है । रोजगार कार्यालयों में शिक्षित बेरोजगारों की लम्बी-लम्बी कतारे देखी जा सकती हैं । इनके रजिस्टरों में परजीकृत बेरोजगारी की सज्जा निरन्तर बढ़ती जा रही है ।
 
==== बेरोजगारी दूर करने के उपाय: ====
बेरोजगारी दूर करने के दीर्घगामी उपाय के रूप में हमें जनसख्या वृद्धि पर अकुश लगाना पड़ेगा । तात्कालिक उपाय के रूप में लोगों को निजी व्यवसायो में लगने के प्रशिक्षण की व्यवस्था करके उन्हे धन उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि नौकरियो की तलाश कम हो सके ।
 
गांवो में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए कुटीर उद्योग-धंधों को बढ़ावा देना चाहिए । इसके लिए पर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाओ की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा समय पर कच्चा माल उपलका कराया जाना चाहिए ।
 
सरकार को उचित मूल्य पर तैयार माल खरीदने की गांरटी देनी चाहिए । यह काम सहकारी सस्थाओं के द्वारा आसानी से कराया जा सकता है । बेरोजगारी दूर करने के दीर्घगामी उपाय के रूप में हमे अपनी शिक्षा-व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करना पड़ेगा । हमें तकनीशियनों और हाथ का काम करने वालों की आवश्यकता है न कि क्लर्को की ।
 
अत: हाई स्कूल तक सामान्य साक्षरता के बाद हमें व्यावसायिक शिक्षा का व्यापक प्रबन्ध करना चाहिए । व्यावसायिक शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि शिक्षा पूरी करने कै बात नवयुवक झ पने हाथ से कॉम करने का आत्म -विश्वास संजो सकें पस्‌पैर नौकरियों रही तलाश कें धकाए अपन छोटा-मोटा काम शुरू कर राके सकें ।
 
==== उपसंहार: ====
हमें निराश नहीं होना चाहिए । हमारी शिक्षा-व्यवस्था सुधार किए जा रहै है । अपने कामम-धंधो को शुरू करने के औत्नेए रियाटाती व्याप्ने दरों पर धन उपलब्ध कराया जा रहा है । इन सब उपायों का परिणाम कुछ वर्षा में सामने आ जायेंगे । आवश्यकता इस बात की है कि हम आत्मविश्वाद्‌न और दृढ़ता के साथ सहयोग करें और मिल-जुल कर इस समस्या को हल करे ।
 
हम सभी जानते हैं कि भारत एक राष्ट्र के रूप में बेरोजगारी की समस्या से निपट रहा है और हमारी सरकार अपने देश के लोगों को रोजगार देने के लिए कुछ प्रभावी उपाय लागू करने की कोशिश कर रही है। देश के युवा नौकरी के अवसरों की कमी की वजह से परेशान है। चूंकि यह हम सभी के लिए यह एक उचित मुद्दा है इसलिए जनता को समय समय पर इससे अवगत कराने के लिए हर किसी को इस मुद्दे को सार्वजनिक रूप से स्कूल, कॉलेजों आदि में संबोधित करना पड़ता है। इसलिए कई बार बेरोजगारी पर एक संक्षिप्त भाषण तैयार करने की आवश्यकता पड़ती है और अगर आप अपने शिक्षकों को प्रभावित करने या अपने दर्शकों पर अच्छी छाप छोड़ने के लिए तैयार हैं तो आप बेरोजगारी पर हमारे दोनों छोटे और लंबे भाषणों का उल्लेख कर सकते हैं और बिना किसी परेशानी के अपना काम पूरा कर सकते हैं।चूंकि मंदी का खतरा हमारे सिर के ऊपर मंडरा रहा है इसलिए हमारे लिए इसके बारे में बात करना और भी जरूरी हो गया है। हम सभी जानते हैं कि काम की कमी और हमारे संगठन की घटती वित्तीय स्थिति के कारण हमारे सह-कर्मचारी हटाए जा रहे हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जिसे अत्यंत धैर्य और सरलता के साथ संभाला जाना चाहिए।
 
हमारे साथ ऐसा कभी भी हो सकता जब एक दिन कार्यालय में काम करते समय हमारे प्रबंधक महोदय हमें अचानक कहें "क्षमा करें, लेकिन यह आपका आज कार्यालय में अंतिम दिन है"। अब आप सभी ने यह विचार करना शुरू कर दिया होगा कि आप क्या करेंगे, आप पैसे कैसे कमाएंगे और किस तरह अपने परिवार को चलाएंगे? तो चलिए हम इस स्थिति का निपुणता और चतुराई से सामना करते हैं। इससे पहले हम वार्तालाप या चर्चा शुरू करें कृप्या मुझे बेरोजगारी पर एक संक्षिप्त भाषण देने की अनुमति दें ताकि आप वास्तविकता जान सकें और इसके बाद जनता की स्थिति के साथ अपनी परिस्थितियों का मूल्यांकन कर सकें। मुझ पर विश्वास करिए यह आपको इस गंभीर स्थिति का बहादुरी से सामना करने के लिए बहुत प्रोत्साहन देगा।
 
मुख्य रूप से बेरोजगारी के तीन रूप होते हैं - श्रमिक वर्ग जो अशिक्षित हैं, शिक्षित लोग बिना किसी तकनीकी ज्ञान के और अंत में तकनीकी लोग जैसे इंजीनियर हैं। आइए हम उनके बारे में एक-एक करके पता करें।
 
मजदूर वर्ग के साथ स्थिति ऐसी है कि उन्हें रोज़गार के अवसरों की तलाश करनी पड़ती है क्योंकि वे दैनिक आधार पर पैसा कमाते हैं इसलिए वे किसी खास जगह पर काम करके नियमित रूप से रोजगार पाने में सक्षम होते हैं। इस अनिश्चित स्थिति में कभी-कभी उन्हें रोजगार मिल जाता है और कभी नहीं मिलता लेकिन बेरोज़गारी की हालत में भी वे जीवनयापन करने की कोशिश करते हैं भले ही उनकी रोटी, कपडा और मकान की बुनियादी आवश्यकताएं पूरी ना हो पाएं। शहर के मजदूरों की स्थिति भी काफी हद तक ग्रामीण मज़दूरों के समान है क्योंकि उन्हें समय समय पर किसी घर,खेत में काम मिल जाता है जो उन्हें जीवनयापन करने में मदद करता है।
 
जैसा आप जानते हैं कि साक्षर लोगों की आबादी दिन-ब-दिन बढ़ रही है सरकार उन्हें कार्यस्थलों पर समायोजित करने में असमर्थ हो रही है। हमारे शिक्षित युवा पहले ही उनको दिए जाने वाले असंगत वेतन से असंतुष्ट है तथा बेरोजगारी का खतरा उन्हें और भी निराश करता है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें बहुत कम पैसों में गुज़ारा करना पड़ रहा है। चूंकि उनके पास कोई व्यावहारिक अनुभव या तकनीकी विशेषज्ञता नहीं होता इसलिए वे केवल क्लर्क स्तर की नौकरियों की तलाश में रहते हैं जो साक्षर लोगों की बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
 
जिनके पास तकनीकी योग्यता होती है उन्हें और भी निराशा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें अपनी शैक्षणिक योग्यता के बराबर अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती। चूंकि तकनीकी विशेषज्ञता प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है इसलिए भी वे बेरोजगारी के जाल में फंस गए हैं। यह बात अच्छी है कि अधिक से अधिक लोग शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और उच्च शिक्षा के लिए भी जा रहे हैं लेकिन दुख की बात है कि सरकार उन्हें अच्छे रोजगार के अवसर प्रदान करने में नाकाम रही है। इसलिए हमारे युवाओं में बढ़ता क्रोध और निराशा इन दिनों स्पष्ट हो गया है।
 
लेकिन हमें अपनी निराशा बढ़ाने के बजाए इस स्थिति से निपटने के बारे में सोचना चाहिए, स्व-रोजगार के अवसर पैदा करने और उस दिशा में अपनी ऊर्जा को गति देने से सकारात्मक नतीज़े हासिल हो सकते हैं। इस तरह बेरोजगारी की गंभीर समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।मेरे लिए यह वाकई एक दुर्लभ अवसर है जहाँ मुझे अपने सभी कर्मचारियों के साथ एक छत के नीचे बातचीत करने का अवसर मिला है। आज यहाँ ऐसा कुछ खास नहीं है कि आप सब इक्कठे हो परन्तु कंपनी के निदेशक के रूप में मुझे एहसास हुआ कि मेरे और कर्मचारियों के बीच समय समय पर संवाद होते रहने चाहिए। दूसरा यदि आप में से कोई किसी चिंतन मुद्दे पर बातचीत करना चाहता है तो कृप्या किसी तरह की घबराहट मन में ना पालें। प्रबंधन समिति निश्चित रूप से इसे हल करने का प्रयास करेगा या संगठन में आवश्यक बदलाव लाएगा।
 
बढ़ती मंदी की वजह से मैं हर किसी से अनुरोध करता हूं कि काम में एक-दूसरे का साथ दें और हमारी कंपनी की भलाई के लिए सर्वसम्मति से काम कार्य करें। वास्तव में हमें खुद को भाग्यशाली मानना ​​चाहिए कि हमारे पास नौकरी है और अच्छी विकास संभावनाएं हैं। अच्छी शैक्षिक पृष्ठभूमि के बावजूद उन लोगों को देखिए जिनके पास काम नहीं हैं या बेरोजगार हैं।
 
क्या आप जानते हैं कि जिन लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है उनकी संख्या हमारे देश में दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं? विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा मुख्य रूप से आर्थिक मंदी और व्यावसायिक गतिविधियों में सुस्त विस्तार के कारण है जिससे रोजगार उत्पन्न होने के अवसर ना के बराबर हैं।
 
आदर्श रूप से सरकार को कौशल आधारित प्रशिक्षण गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के लिए अपने विकास उपायों में तेजी लानी होगी ताकि काम की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया जा सके और आवश्यक योग्यता दी जा सके। यह बेरोजगारी के दीर्घकालिक मुद्दे को हल करने में भी मदद कर सकता है।
 
यद्यपि ऐसे भी लोग हैं जो खुद बेरोजगार रहना पसंद करते हैं और काम करने को तैयार नहीं है। ऐसे लोगों को बेरोजगार नहीं कहा जा सकता। बेरोजगारी वह होती है जब कोई व्यक्ति काम करना चाहता है लेकिन एक योग्य नौकरी पाने में सक्षम नहीं होता। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारा देश बेरोजगारी के इस गंभीर मुद्दे से जूझ रहा है। दुर्भाग्य से कई इंजीनियर, डॉक्टर, स्नातक या स्नातकोत्तर पद या तो बेरोजगार हैं या अर्द्ध बेरोजगार हैं। बढ़ती बेरोजगारी के कारण राष्ट्र केवल अपने मानव संसाधन को बर्बाद कर रहा है या उसके लाभों का पूरी तरह से उपयोग करने में सक्षम नहीं है।
 
भारत में बेरोजगारी की दर 2011 से बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती है। उस समय यह 3.5 प्रतिशत थी। धीरे-धीरे वर्ष 2012 में यह 3.6% तक बढ़ गई और वर्ष 2013 में यह आंकड़ा 3.7% तक पहुँच गया। तब से बेरोज़गारी की प्रतिशत में किसी भी तरह की गिरावट नहीं देखी गई है। वास्तव में यह भी देखा गया है कि शिक्षा के हर चरण में विशेष रूप से उच्च स्तर पर महिला बेरोजगारी की दर हमेशा पुरुष बेरोजगारी दर से ज्यादा है।
 
हमारी सरकार को सबसे पहले जो सबसे महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए वह है सख्त आबादी नियंत्रण उपायों को लागू करना और लोगों को छोटे परिवार रखने की सलाह देना। इसके बाद भारतीय शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता में सुधार के लिए कुछ सरल उपाय किए जाने चाहिए। हमारी शिक्षा प्रणाली को कौशल विकसित करने या सैद्धांतिक ज्ञान को सीमित करने के बजाय व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
 
इसके बाद छोटे पैमाने पर कुटीर उद्योगों को स्थापित करने की रोजगार की नई संभावनाएं बनानी चाहिए। जब लोग स्वयंरोजगार होंगे तो वे नौकरियों की तलाश नहीं करेंगे बल्कि अपने व्यवसाय में खुद दूसरों को रोज़गार देंगे।
 
हमारे देश में बेरोज़गारी के कई अन्य कारण है जैसे कि शिक्षा प्रणाली जो केवल सख़्त ज्ञान पर केंद्रित रहकर बहुत कम व्यावहारिक ज्ञान पर ध्यान देती है। इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली को डिग्री उन्मुख प्रणाली कहा जाता है लेकिन हमें वास्तव में उस प्रणाली की आवश्यकता है जो कैरियर उन्मुख है। अगर किसी व्यक्ति ने स्कूल और कॉलेजों में कई साल लगाए हैं और परन्तु अभी भी वह नौकरी के लिए तैयार नहीं है तो उन वर्षों और अध्ययन का नतीजा क्या है। हमारी शिक्षा प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता है। कुछ व्यावसायिक अध्ययन हो सकते हैं जो केवल छात्रों के कौशल को बढ़ाने में मदद करेंगे। एक और कारण लोगों की सोच भी हो सकती है। हर कोई व्यक्ति सरकारी काम करना चाहता है परन्तु यह असंभव है। छात्रों को अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। मुख्य रूप से माता-पिता या शिक्षक छात्र के दिमाग में डर पैदा कर देते हैं कि व्यापार या स्वयं-रोजगार में विफलता निश्चित है। यह भी नौकरियों की कमी के कारणों में से एक है क्योंकि अगर कोई व्यक्ति व्यवसाय शुरू करता है तो वह कई नौकरी चाहने वालों को रोजगार प्रदान कर सकता है।
 
भारत में नौकरी के अवसर की कमी के मुख्य कारणों में से एक इसकी जनसंख्या भी है। हम हजारों लोगों को देखते हैं जो एक पद के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। भारत दुनिया भर में दूसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। सरकारी क्षेत्र में लाखों लोगों को नौकरी देना काफी मुश्किल है। छात्रों के हित को प्रोत्साहित करने और उन्हें सही मार्ग दिखाने की आवश्यकता है जिसके माध्यम से वे इस समस्या को हराने में सक्षम हो सके। एक शिक्षक के रूप में मैं आपको एक कैरियर विकल्प के रूप में अपनी रुचि का चयन करने की सलाह देना चाहूंगा।
 
रोजगार व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकता है। ईश्वर ने हमें मस्तिष्क¸ हाथ¸ पांव दिमाग की अनेक शक्तियां¸ ह्रदय और भावना प्रदान की है जिससे कि उनका पूर्ण सदुपयोग किया जा सके और मनुष्य आत्म-सिद्धि प्राप्त कर सके। शायद हमारे जीवन का ही लक्ष्य हो किन्तु यदि हमारे पास करने को कोई काम ही नहीं है यदि ऊपर वर्णित शक्तियों का प्रयोग करने के लिए हमारे पास अवसर ही नहीं है तो बहुत सी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं।
 
'''प्रथम -''' हम अपनी शारीरिक और मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते।
 
'''द्वितीय -''' कार्य की अनुपस्थिति में हमें शरारत करना आएगा।
 
'''तृतीय -''' उपयुक्त रोजगार अवसरों के अभाव में हम अपना नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास भी करने में समर्थ नहीं होंगे।
 
इस प्रकार ऐसे समाज में जिसमें रोजगार की समस्या जटिल है उसमें निराशा अपराध और अविकसित व्यक्तित्व होंगे।
 
भारत लगभग इसी प्रकार की परिस्थिति से गुजर रहा है। यहां बेरोजगारी की समस्या बड़ी जटिल हो गई है। हमारे रोजगार कार्यालयों में करोड़ों लोग पंजीकृत हैं जिनको काम दिया जाना है। इनके अतिरिक्त ऐसे भी व्यक्ति हैं और उनकी संख्या भी लाखों में है जोकि अपने को रोजगार कार्यालय में पंजीकृत नहीं करा पाते।
 
भारत में बेरोजगारी की समस्या के कई कारण हैं। पहला कारण है तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या। सरकार¸ जिस अनुपात में जनसंख्या बढ़ती है उस अनुपात में नौकरियों का सृजन नहीं कर पाती। द्वितीय हमारी दूषित शिक्षा व्यवस्था ने समस्या को उलझा दिया है जबकि लाखों की तादाद में लोग रोजगार की तलाश कर रहे हैं वही बहुत से उद्योग प्रतिष्ठान और संस्थाएं ऐसी हैं जहां पर उपयुक्त कार्य करने वालों की बहुत कमी है। हम रोजगार परक शिक्षा को प्रारंभ नहीं कर पाए हैं और ना उद्योग के साथ शिक्षा का तालमेल ही बैठा पाए हैं। बेरोजगारी का एक अन्य कारण अपर्याप्त औद्योगीकरण और कुटीर उद्योग धंधों की प्रगति है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों के निहित स्वार्थों के कारण कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता। हमारे बेरोजगार युवकों का सफेदपोश नौकरी के लिए प्रेम भी बेरोजगारी का एक अन्य कारण है। हमारे नौजवान नियमित्त नौकरी की तलाश में अपनी शक्ति एवं संसाधन खर्च कर देंगे किंतु अपना कारोबार प्रारंभ नहीं करेंगे। यहां तक एक कृषि स्नातक भी खेतों में कार्य नहीं करेगा बल्कि कृषि संस्थानों या सरकारी नौकरी में उपयुक्त पद के लिए प्रतीक्षा करेगा। वास्तव में हमारे नवयुवकों का भी दोष नहीं। अपने कारोबार में विनियोग करने के लिए उनके पास पर्याप्त साधन एवं पूंजी नहीं है। वे अप्रशिक्षित भी होते हैं और उनकी प्रशिक्षण और परामर्श सुविधाओं तक पहुंच नहीं है। इन कठिनाइयों के कारण उनकी जोखिम उठाने की क्षमता कमजोर पड़ती है और स्वतंत्र कारोबार प्रारंभ करने की इच्छा कुंठित हो जाती है। हमारे देश में बेरोजगारी का एक अन्य कारण है दूषित नियोजन। हमारे नियोजक मानव शक्ति के नियोजन की ओर उचित ध्यान देने में असफल रहे हैं। वे अपना सारा ध्यान संसाधनों के नियोजन की ओर लगाते रहे हैं यही कारण है कि नियोजन के फलस्वरुप काफी मात्रा में सृजित पूंजियों और उससे उत्पन्न हुए कुल सुख में भारी अंतर है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन के संदर्भ में देश कितना ही संपन्न क्यों ना हो जाए नागरिकों का सुख सुनिश्चित नहीं किया जा सकता यदि उपयुक्त और सही रोजगार के अवसर प्रदान नहीं किया जाते किंतु बेरोजगारी की समस्या के लिए केवल सरकार को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता। भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं जो कार्य की प्रतिष्ठा को नहीं समझते हैं और ऐसी नौकरियों की प्रतीक्षा करते रहते हैं जिनमें काम तो कम करना पड़े और प्राप्ति अधिक हो। उनकी सुस्ती और कठिन कार्य में लगन की अनिच्छा उनको बेरोजगार रखती है।
 
बेरोजगारी की समस्या का शीघ्र से शीघ्र हल निकालना होगा। सबसे बड़ी आवश्यकता मानव शक्ति का नियोजन है। हमें अपने नवयुवक और नवयुवतियों को रोजगारपरक और व्यवसायिक शिक्षा प्रदान करनी होगी। त्वरित औद्योगीकरण और कुटीर उद्योगों के लिए उचित प्रोत्साहन की आवश्यकता है। काफी संख्या में प्रत्येक गांव कस्बा और शहर में लघु स्तर के एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना से रोजगार के असंख्य अवसर खिलेंगे। हमारे नवयुवकों में जोखिम उठाने की भावना का संचार करना पड़ेगा और धंधा प्रारंभ करने के लिए उन्हें पथ-प्रदर्शन देना पड़ेगा। आसान शर्तों पर विनियोग हेतु उनको पूंजी उपलब्ध करानी होगी। अंत में हमें जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगानी होगी। संतोष का विषय है कि हमारे नियोजक इसी दिशा में कार्य कर रहे हैं। रोजगार की कई योजनाएं चलाई गई हैं जिनमें से मुख्य हैं- स्किल इंडिया¸ मेक इन इंडिया¸ जवाहर रोजगार योजना¸ ट्राईसेम (ट्रेनिंग ऑफ रूरल युद्ध सेल्फ एंप्लॉयमेंट) देश का औद्योगीकरण तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। सरकार ने कुछ संस्थानों में स्वयं उद्यम चलाने से संबंधित पाठ्यक्रम का प्रचलन किया है जिससे कि गतिशील नवयुवकों को अपने स्वयं के उद्यम स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके। कुछ राज्य सरकारों ने हाईस्कूल और माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा के पोस्ट का प्रचलन किया है और चुनी हुई संस्थाओं में विभिन्न ट्रेडों की स्थापना के लिए धन जुटाया है। योजना कार्यक्रम का विस्तार करके सभी संस्थाओं में व्यावसायिक शिक्षा के कोर्स प्रारंभ करने की है। इस व्यवस्था से पिछले समय में बहुत अच्छे नतीजे निकले हैं। आर्थिक उदारीकरण कार्यक्रम से रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। परिश्रमी और उत्साही नवयुवक स्वयं के उद्यम स्थापित करने हेतु आकर्षित हो रहे हैं। इस प्रकार व्यक्तिगत क्षेत्र में रोजगार की क्षमता बढ़ी है। आगे और भी अधिक उदारीकरण से हमारी साहसी और प्रतिभाशाली युवकों के लिए रोजगार के आकर्षक अवसर खुलेंगे। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जिनमें लोगों ने बिल्कुल शुरुआत से प्रारंभ किया और थोड़े से समय के कमरकस श्रम के बल पर लाखों रुपए कमाए और अपने को ही नहीं दूसरों को भी रोजगार प्रदान किया। भारत के पंजाब¸ हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे कुछ क्षेत्रों में आर्थिक क्रिया अपनी चरम सीमा पर है यहां बेरोजगारी अन्य दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले कम है। हमें अपने आलस्य को त्याग मैदान में कूदना है जिसको परिश्रमी और साहसी युवकों की प्रतीक्षा है।
 
आज आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमारा देश भारत कई प्रकार की समस्याओं से उभर नहीं पाया है। इन समस्याओं में एक सबसे बड़ी समस्या है – बेरोजगारी की समस्या। बेरोजगारी का अर्थ होता है – किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता और ज्ञान के अनुसार सही काम या नौकरी ना मिल पाना। भारत में बेरोजगारी लोगों के जीवन में दो प्रकार से आक्रमण कर रही है।
 
इनमें दो वर्ग स्पष्ट एवं प्रमुख हैं। पहले वर्ग में वह शिक्षित लाखों लोग आते हैं जो नौकरी और रोजी-रोटी की तलाश में दर-बदर भटक रहे हैं।  ऐसे लोगों के पास  ना ही कोई काम है और ना ही कोई पैसे कमाने का अन्य ज़रिया, जिससे कि वह एक स्वतंत्र जीवन जी सकें। दूसरे वर्ग में वह लोग आते हैं जो नौकरी तो कर रहे हैं परंतु उससे वह इतना कम पैसा कमाते हैं कि अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी भी सही तरीके से नहीं जुटा पा रहे हैं। क्या यह बेकारी की समस्या देश के लिए बड़ी समस्या हीं है?
 
वैसे तो भारत में बेकारी और बेरोजगारी की समस्या ब्रिटिश सरकार के कारण उत्पन्न हुई परंतु ऐसे कई देश हैं जो पूरी तरीके से ध्वंस होने पर भी आज भारत से कई गुना विकसित है। किसी पर भी दोष देकर इसका कोई लाभ नहीं क्योंकि किसी ना किसी जगह गलती हमारी भी होती है। आज दुनिया में पैसे के मुकाबले समय का मूल्य बहुत ज्यादा है इसलिए ज्यादातर कंपनियों ने लोगों की तादाद को कम करके मशीनों से काम करना शुरु कर दिया है जिसके कारण लोगों के लिए नौकरी के अवसर कम हो गए हैं।
 
हम भारतीयों को स्वयं को ज्ञान और नए आविष्कारों के माध्यम से इतना सक्षम बनाना होगा जिससे विश्व भर के बड़ी कंपनियों को हमारी ताकत का पता चल सके और वह भारत में निवेश करें तथा अपनी कंपनियां शुरू करें। इससे हमारे देश के लोगों को करियर के नए अवसर प्राप्त होंगे और हमारे देश को विकसित होने में मदद मिलेगी। हाल ही में सरकार ने भी भारत के नौजवानों को आगे ले जाने के लिए कई प्रकार के योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, मुद्रा लोन योजना, आवास योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान, सुकन्या समृद्धि योजना शुरू किया है।
 
हमारे समाज की एक और सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर युवा अपनी शिक्षा के बाद नौकरी करने के विषय में बहुत सोचते हैं। जबकि हमारे युवाओं को सोचना चाहिए कि वह अपनी शिक्षा के बाद अपने ज्ञान की मदद से कोई  लघु उद्योग शुरू करें जिससे  उन्हें नौकरी की जरूरत ना पड़े। उद्योग शुरू करने का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह स्वयं तो सफल बनेंगे साथ ही उनके उद्योग के माध्यम से और भी नौजवानों और देश के नागरिकों को नौकरी के नए अवसर प्राप्त होंगे। चाहे गांव हो या शहर आप हर जगह एक छोटे से व्यापार को शुरू कर सकते हैं और अगर आपके पास शुरू करने के लिए पूंजी नहीं है तो आप बैंक से लोन लेकर भी शुरू कर सकते हैं।
 
हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए जनसंख्या वृद्धि को रोकना होगा। आज विश्व भर में जितने भी विकसित देश हैं उनकी जनसंख्या बहुत ही कम है जिसके कारण उन देशों में नौकरी के अवसर बहुत ज्यादा है और लोग ज्यादा सफल हैं। आज देश में लोगों की बढ़ती तादाद के कारण जनसँख्या के मुकाबले रोज़गार कम पड़ जा रहे हैं और बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ते चले जा रही हैं।
 
आज के इस आधुनिक युग में यातायात की सेवाओं में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। आज हमारे देश में सड़कें, रेलें, हवाई जहाज़, भवन निर्माण, स्कूल, कॉलेज, पर्यटन तथा अस्पताल आदि कुछ ऐसी सेवाएं हैं जिनके प्रसार की बहुत ज्यादा मांग है। इन सभी सेवाओं के विकास के लिए सरकार हर दिन नए-नए योजनाएं शुरू कर रहे हैं। आज भारत सरकार ने शिक्षित, अल्प शिक्षित और अनपढ़ लोगों के लिए भी रोजगार के नए रास्ते खुले हैं। प्रधानमंत्री जनधन योजना बैंक अकाउंट के माध्यम से सरकार करोड़ों गरीब किसानों और गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को कई प्रकार के आर्थिक सुविधाएं भी प्रदान कर रही है।
 
लोगों को सरकार की इन योजनाओं से जुड़ना चाहिए और इन योजनाओं के माध्यम से अपने आने वाली पीढ़ी को शिक्षित बनाना चाहिए जिससे वह हमारे देश भारत का भविष्य बन सकें। गांव से लेकर शहर तक हर एक व्यक्ति चाहे महिला हो या पुरुष को यह प्रण लेना चाहिए कि वह जीवन में कुछ ना कुछ कार्य करते रहेंगे और देश से गरीबी को मिटाकर खुशहाली लाएंगे।
 
बेरोजगारी किसी भी देश के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। भारत में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधी समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं जो बेरोज़गारी का कारण बनती हैं। इस समस्या को खत्म करने के लिए भारत सरकार को प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत है।
 
विकासशील देशों के सामने आने वाली मुख्य समस्याओं में से एक बेरोजगारी है। यह केवल देश के आर्थिक विकास में खड़ी प्रमुख बाधाओं में से ही एक नहीं बल्कि व्यक्तिगत और पूरे समाज पर भी एक साथ कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालती है। हमारे देश में बेरोजगारी के मुद्दे पर यहाँ विभिन्न लंबाई के कुछ निबंध उपलब्ध करवाए गये हैं।
 
जो लोग काम करना चाहते हैं और ईमानदारी से नौकरी की तलाश कर रहे हैं लेकिन किसी कारणवश उन्हें नौकरी नहीं मिल पा रही है उन्हें बेरोजगार कहा जाता है। इसमें उन लोगों को शामिल नहीं किया जाता है जो स्वेच्छा से बेरोजगार हैं और जो कुछ शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य समस्या के कारण नौकरी करने में असमर्थ हैं।
 
ऐसे कई कारक हैं जो देश में बेरोजगारी की समस्या का कारण बनते हैं। इसमें मुख्य है:
* मंदा औद्योगिक विकास
* जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
* सैद्धांतिक शिक्षा पर केंद्रित रहना
* कुटीर उद्योग में गिरावट
* कृषि मजदूरों के लिए वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की कमी
* तकनीकी उन्नति न होना
बेरोजगारी केवल व्यक्तियों को ही प्रभावित नहीं करती बल्कि देश के विकास की दर को भी प्रभावित करती है। इसका देश के सामाजिक और आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी के कुछ परिणाम यहां दिए गए हैं:
* अपराध दर में वृद्धि
* रहन-सहन का खराब मानक
* कौशल और हुनर का नुकसान
* राजनैतिक अस्थिरता
* मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे
* धीमा आर्थिक विकास
हैरानी की बात यह है कि समाज में नकारात्मक नतीजों के बावजूद बेरोजगारी भारत में सबसे ज्यादा अनदेखी समस्याओं में से एक है। सरकार ने समस्या को नियंत्रित करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं; हालांकि ये कदम पर्याप्त प्रभावी नहीं हैं। सरकार के लिए इस समस्या को नियंत्रित करने हेतु कार्यक्रमों को शुरू करना ही काफी नहीं है बल्कि उनकी प्रभावशीलता पर भी ध्यान देना ज़रूरी है और यदि आवश्यकता पड़े तो उन्हें संशोधित करने का कदम भी उठाना चाहिए।
 
बेरोजगारी समाज के लिए एक अभिशाप है। इससे न केवल व्यक्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है बल्कि बेरोजगारी पूरे समाज को भी प्रभावित करती है। कई कारक हैं जो बेरोजगारी का कारण बनते हैं। यहां इन कारकों की विस्तार से व्याख्या की गई और इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए संभावित समाधान बताये गये हैं।
 
'''भारत में बेरोजगारी को बढ़ाने वाले कारक'''
 
1.    '''जनसंख्या में वृद्धि'''
 
देश की जनसंख्या में तेजी से होती वृद्धि बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है।
 
2.    '''मंदा आर्थिक विकास'''
 
देश के धीमे आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप लोगों को रोजगार के कम अवसर प्राप्त होते हैं जिससे बेरोजगारी बढ़ती है।
 
3.    '''मौसमी व्यवसाय'''
 
देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में जुड़ा हुआ है। मौसमी व्यवसाय होने के कारण यह केवल वर्ष के एक निश्चित समय के लिए काम का अवसर प्रदान करता है।
 
4.    '''औद्योगिक क्षेत्र की धीमी वृद्धि'''
 
देश में औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि बहुत धीमी है। इस प्रकार इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं।
 
5.    '''कुटीर उद्योग में गिरावट'''
 
कुटीर उद्योग में उत्पादन काफी गिर गया है और इस वजह से कई कारीगर बेरोजगार हो गये हैं।
 
'''बेरोजगारी खत्म करने के संभव समाधान'''
 
1.    '''जनसंख्या पर नियंत्रण'''
 
यह सही समय है जब भारत सरकार देश की आबादी को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए।
 
2.    '''शिक्षा व्यवस्था'''
 
भारत में शिक्षा प्रणाली कौशल विकास की बजाय सैद्धांतिक पहलुओं पर केंद्रित है। कुशल श्रमशक्ति उत्पन्न करने के लिए प्रणाली को सुधारना होगा।
 
3.    '''औद्योगिकीकरण'''
 
लोगों के लिए रोज़गार के अधिक अवसर बनाने के लिए सरकार को औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए।
 
4.    '''विदेशी कंपनियां'''
 
सरकार को रोजगार की अधिक संभावनाएं पैदा करने के लिए विदेशी कंपनियों को अपनी इकाइयों को देश में खोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
 
5.    '''रोजगार के अवसर'''
 
एक निश्चित समय में काम करके बाकि समय बेरोजगार रहने वाले लोगों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
 
देश में बेरोजगारी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। हालाँकि सरकार ने रोजगार सृजन के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं पर अभी तक वांछनीय प्रगति हासिल नहीं हो पाई है। नीति निर्माताओं और नागरिकों को अधिक नौकरियों के निर्माण के साथ ही रोजगार के लिए सही कौशल प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।
 
. भारत में बेरोजगारी प्रच्छन्न बेरोजगारी, खुले बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी, चक्रीय बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, तकनीकी बेरोजगारी, संरचनात्मक बेरोजगारी, दीर्घकालिक बेरोजगारी, घर्षण बेरोज़गारी और आकस्मिक बेरोजगारी सहित कई श्रेणियों में विभाजित की जा सकती है। इन सभी प्रकार की बेरोजगारियों के बारे में विस्तार से पढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि वास्तव में किसे बेरोजगार कहा जाता है? मूल रूप से बेरोजगार ऐसा व्यक्ति होता है जो काम करने के लिए तैयार है और एक रोजगार के अवसर की तलाश कर रहा है पर रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ है। जो लोग स्वेच्छा से बेरोजगार रहते हैं या कुछ शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण काम करने में असमर्थ होते हैं वे बेरोजगार नहीं गिने जाते हैं।
 
यहां बेरोजगारी के विभिन्न प्रकारों पर एक विस्तृत नज़र डाली गई है:
 
'''प्रच्छन्न बेरोजगारी'''
 
जब ज़रूरी संख्या से ज्यादा लोगों को एक जगह पर नौकरी दी जाती है तो इसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहा जाता है। इन लोगों को हटाने से उत्पादकता प्रभावित नहीं होती है।
 
'''मौसमी बेरोजगारी'''
 
जैसा कि शब्द से ही स्पष्ट है यह उस तरह की बेरोजगारी का प्रकार है जिसमें वर्ष के कुछ समय में ही काम मिलता है। मुख्य रूप से मौसमी बेरोजगारी से प्रभावित उद्योगों में कृषि उद्योग, रिसॉर्ट्स और बर्फ कारखानें आदि शामिल हैं।
 
'''खुली बेरोजगारी'''
 
खुली बेरोजगारी से तात्पर्य है कि जब एक बड़ी संख्या में मजदूर नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं जो उन्हें नियमित आय प्रदान कर सके। यह समस्या तब होती है क्योंकि श्रम बल अर्थव्यवस्था की विकास दर की तुलना में बहुत अधिक दर से बढ़ जाती है।
 
'''तकनीकी बेरोजगारी'''
 
तकनीकी उपकरणों के इस्तेमाल से मानवी श्रम की आवश्यकता कम होने से भी बेरोजगारी बढ़ी है।
 
'''संरचनात्मक बेरोजगारी'''
 
इस प्रकार की बेरोज़गारी देश की आर्थिक संरचना में एक बड़ा बदलाव की वजह से होती है। यह तकनीकी उन्नति और आर्थिक विकास का नतीजा है।
 
'''चक्रीय बेरोजगारी'''
 
व्यावसायिक गतिविधियों के समग्र स्तर में कमी से चक्रीय बेरोज़गारी होती है। हालांकि यह घटना थोड़े समय के ही लिए है।
 
'''शिक्षित बेरोजगारी'''
 
उपयुक्त नौकरी खोजने में असमर्थता, रोजगार योग्य कौशल की कमी और दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली जैसे कुछ कारण हैं जिससे शिक्षित बेरोजगार रहता है।
 
'''ठेका बेरोज़गारी'''
 
इस तरह के बेरोजगारी में लोग या तो अंशकालिक आधार पर नौकरी करते हैं या उस तरह के काम करते हैं जिसके लिए वे अधिक योग्य हैं।
 
'''प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी'''
 
यह तब होता है जब श्रम बल की मांग और इसकी आपूर्ति उचित रूप से समन्वयित नहीं होती है।
 
'''दीर्घकालिक बेरोजगारी'''
 
दीर्घकालिक बेरोजगारी वह होती है जो जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और आर्थिक विकास के निम्न स्तर के कारण देश में जारी है।
 
'''आकस्मिक बेरोजगारी'''
 
मांग में अचानक गिरावट, अल्पकालिक अनुबंध या कच्चे माल की कमी के कारण ऐसी बेरोजगारी होती है।
 
'''निष्कर्ष'''
 
हालांकि सरकार ने हर तरह की बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं परन्तु अभी तक परिणाम संतोषजनक नहीं मिले हैं। सरकार को रोजगार सृजन करने के लिए और अधिक प्रभावी रणनीति तैयार करने की जरूरत है।
 
बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। कई कारक हैं जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। इनमें से कुछ में उचित शिक्षा की कमी, अच्छे कौशल और हुनर की कमी, प्रदर्शन करने में असमर्थता, अच्छे रोजगार के अवसरों की कमी और तेजी से बढ़ती आबादी शामिल है। आगे देश में बेरोजगारी स्थिरता, बेरोजगारी के परिणाम और सरकार द्वारा इसे नियंत्रित करने के लिए किए गए उपायों पर एक नज़र डाली गई है।
 
'''भारत में बेरोजगारी से संबंधित आकंडे'''
 
भारत में श्रम और रोजगार मंत्रालय देश में बेरोजगारी के रिकॉर्ड रखता है। बेरोजगारी के आंकड़ों की गणना उन लोगों की संख्या के आधार पर की जाती है जिनके आंकड़ों के मिलान की तारीख से पहले 365 दिनों के दौरान पर्याप्त समय के लिए कोई काम नहीं था और अभी भी रोजगार की मांग कर रहे हैं।
 
वर्ष 1983 से 2013 तक भारत में बेरोजगारी की दर औसत 7.32 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक 9.40% थी और 2013 में यह रिकॉर्ड 4.90% थी। वर्ष 2015-16 में बेरोजगारी की दर महिलाओं के लिए 8.7% हुई और पुरुषों के लिए 4.3 प्रतिशत हुई।
 
'''बेरोजगारी के परिणाम'''
 
बेरोजगारी की वजह से गंभीर सामाजिक-आर्थिक मुद्दे होते है। इससे न केवल एक व्यक्ति बल्कि पूरा समाज प्रभावित होता है। नीचे बेरोजगारी के कुछ प्रमुख परिणामों की व्याख्या की गई हैं:
* '''गरीबी में वृद्धि'''
यह कथन बिल्कुल सत्य है कि बेरोजगारी दर में वृद्धि से देश में गरीबी की दर में वृद्धि हुई है। देश के आर्थिक विकास को बाधित करने के लिए बेरोजगारी मुख्यतः जिम्मेदार है।
* '''अपराध दर में वृद्धि'''
एक उपयुक्त नौकरी खोजने में असमर्थ बेरोजगार आमतौर पर अपराध का रास्ता लेता है क्योंकि यह पैसा बनाने का एक आसान तरीका है। चोरी, डकैती और अन्य भयंकर अपराधों के तेजी से बढ़ते मामलों के मुख्य कारणों में से एक बेरोजगारी है।
* '''श्रम का शोषण'''
कर्मचारी आम तौर पर कम वेतन की पेशकश कर बाजार में नौकरियों की कमी का लाभ उठाते हैं। अपने कौशल से जुड़ी नौकरी खोजने में असमर्थ लोग आमतौर पर कम वेतन वाले नौकरी के लिए व्यवस्थित होते हैं। कर्मचारियों को प्रत्येक दिन निर्धारित संख्या के घंटे के लिए भी काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
* '''राजनैतिक अस्थिरता'''
रोजगार के अवसरों की कमी के परिणामस्वरूप सरकार में विश्वास की कमी होती है और यह स्थिति अक्सर राजनीतिक अस्थिरता की ओर जाती है।
* '''मानसिक स्वास्थ्य'''
बेरोजगार लोगों में असंतोष का स्तर बढ़ता है जिससे यह धीरे-धीरे चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में बदलने लगती है।
* '''कौशल का नुकसान'''
लंबे समय के लिए नौकरी से बाहर रहने से जिंदगी नीरस और कौशल का नुकसान होता है। यह एक व्यक्ति के आत्मविश्वास काफी हद तक कम कर देता है।
 
'''बेरोजगारी को कम करने के लिए सरकारी पहल'''
 
भारत सरकार ने बेरोजगारी की समस्या को कम करने के साथ-साथ देश में बेरोजगारों की मदद के लिए कई तरह के कार्यक्रम शुरू किए है। इनमें से कुछ में इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IRDP), जवाहर रोज़गार योजना, सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP), स्व-रोजगार के लिए प्रशिक्षण, नेहरू रोज़गार योजना (NRY), रोजगार आश्वासन योजना, प्रधान मंत्री की समन्वित शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (PMIUPEP), रोजगार कार्यालयों, विदेशी देशों में रोजगार, लघु और कुटीर उद्योग, रोजगार गारंटी योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का विकास आदि शामिल हैं।
 
इन कार्यक्रमों के जरिए रोजगार के अवसर प्रदान करने के अलावा सरकार शिक्षा के महत्व को भी संवेदित कर रही है और बेरोजगार लोगों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
 
'''निष्कर्ष'''
 
बेरोजगारी समाज में विभिन्न समस्याओं का मूल कारण है। हालांकि सरकार ने इस समस्या को कम करने के लिए पहल की है लेकिन उठाये गये उपाय पर्याप्त प्रभावी नहीं हैं। इस समस्या के कारण विभिन्न कारकों को प्रभावी और एकीकृत समाधान देखने के लिए अच्छी तरह से अध्ययन किया जाना चाहिए। यह समय है कि सरकार को इस मामले की संवेदनशीलता को पहचानना चाहिए और इसे कम करने के लिए कुछ गंभीर कदम उठाने चाहिए।
 
'''नई दिल्ली। केंद्र सरकार की गांवों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रमुख महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी में इजाफा हुआ है।'''
 
इसके चलते 2013-14 में देश में बेरोजगारी की दर 1 साल पहले के 4.7 प्रतिशत से बढ़कर 4.9 प्रतिशत हो गई। यह खुलासा श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट से हुआ है।> > ब्यूरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2012-13 में अखिल भारतीय स्तर पर बेरोजगारी दर 4.7 प्रतिशत थी, जो समाप्त वित्त वर्ष में बढ़कर 4.9 प्रतिशत हो गई।
 
ब्यूरो के अनुसार राहत की बात यह रही कि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर में गिरावट आई और यह 5.7 प्रतिशत से गिरकर साढ़े 5 प्रतिशत रह गई।
 
मनरेगा की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के 93 प्रतिशत परिवार इससे लाभान्वित तो जरूर हुए किंतु इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 1 साल पहले के 4.4 प्रतिशत के मुकाबले बढ़कर 4.7 प्रतिशत पर पहुंच गई।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013-14 में गुजरात में बेरोजगारी की दर सबसे कम 1.2 प्रतिशत रही जबकि सिक्किम में यह सर्वाधिक थी। ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष बेरोजगारी की दर भी 1 साल पहले के 4 प्रतिशत से बढ़कर 4.1 प्रतिशत हो गई।
 
महिलाओं में बेरोजगारी दर इस दौरान 7.2 प्रतिशत की तुलना में आधा प्रतिशत बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गई। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की बेरोजगारी दर में इस दौरान गिरावट देखी गई। यह 12.8 प्रतिशत की तुलना में 12.4 प्रतिशत रही।
 
रिपोर्ट के मुताबिक 49.5 प्रतिशत लोग स्वरोजगार थे। दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 30.9 प्रतिशत जबकि 3 प्रतिशत अनुबंध पर काम करने वाले थे। वेतन-पगार पर काम करने वालों की संख्या 16.5 प्रतिशत है।
 
ब्यूरो के सर्वेक्षण में 1 लाख 36 हजार 395 घरों से बातचीत की गई। इसमें से 53,010 शहरी और 83,385 ग्रामीण क्षेत्रों से थे।
 
''खाली कन्धे हैं इन पर कुछ भार चाहिए''
 
''बेरोज़गार हूँ साहब मुझे रोज़गार चाहिए''
 
''जेब में पैसा नही डिग्री लिए फिरता हूँ''
 
''दिनो दिन अपनी ही नजरो में गिरता हूँ''
 
''कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए''
 
''बेरोज़गार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।''
 
''दिन रात एक करके मेहनत बहुत करता हूँ''
 
''सूखी रोटी खाकर ही चैन से पेट भरता हूँ''
 
''फिर भी न जाने क्यों ठुकरा दिया ज़माने ने''
 
''भरोसा नही किया मेरा टैलेंट आजमाने में''
 
''भ्रष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे हैं''
 
''रिश्वत की कमाई खूब मजे से खा रहे हैं''
 
''नौकरी पाने ले लिए यहाँ जुगाड़ चाहिए''
 
''बेरोज़गार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।''
 
''टैलेंन्ट की कमी नही भारत की सड़को पर''
 
''दुनियाँ बदल देगे भरोसा करो इन लड़कों पर''
 
''लिखते-लिखते मेरी कलम तक घिस गयी''
 
''नौकरी कैसे मिले जब नौकरी ही बिक गयी?''
 
''नौकरी की प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए''
 
''बेरोज़गार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए।''
 
नोटबन्दी का फैसला आये हुए पूरा साल बीतने को आया है। आये दिन नई नई बातें सुनने को मिलती है। कहीं लोग घँटों एटीएम और बैंको में लाइन लगाकर खड़े है, कही इसी वजह से आपस में फुट हो गयी, तो कही कुछ तो कहीं कुछ। अब खबर आयी है, की नोटबन्दी के कारन कई गरीब मजदुर बेरोजगार हो रहे है, जिसकी वजह से उन्हें नसबन्दी करानी पड़ रही है।
 
भारत की गरीबी का एक मुख्य कारण देश में फैली बेरोजगारी है । यह देश की एक बड़ी समस्या है, जो शहरो और गांवो में समान रूप से व्याप्त है । यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है, जो आधुनिक युग की देन है । हमारे देश में इसने बड़ा गम्भीर रूप धारण कर लिया है । इसके कारण देश में शान्ति और व्यवस्था को खतरा पैदा हो गया है । अत: इस समस्या के तत्काल निदान की आवश्यकता है ।
 
==== भारत में बेरोजगारी के कारण: ====
इस गम्भीर समस्या के अनेक कारण हैं । बड़े पैमाने पर मशीनों का अंधाधुंध प्रयोग बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है । इनके कारण मनुष्य के श्रम की आवश्यकता बहुत कम हो गई है । इसके अलावा हमारी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है । जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात से उत्पादन के कामी तथा रोजगार के अवसरों में कम वृद्धि होती है । इसलिए बेरोजगारी लगातार बढती ही जाती है ।
 
भारत में व्याप्त अशिक्षा भी बेरोजगारी का मुख्य कारण है । आज के मशीनी युग में शिक्षित और कुशल तथा प्रशिक्षित व्यक्तियो की आवश्यकता पडती है । इसके अलावा, हमारी शिक्षा प्रणाली भी दोषपूर्ण है । हम अपनी शिक्षा व्यवस्था में साक्षरता को ही विशेष महत्त्व देते हैं । व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा की अवहेलना होती है । तकनीकी शिक्षा का जो भी प्रबन्ध है, उसमे सैद्धांतिक पहलू पर अधिक जोर दिया जाता है और व्यावहारिक पहलू पर ध्यान नहीं दिया जाता ।
 
यही कारण है कि हमारे इंजीनियर तक मशीनो पर काम करने से कतराते हैं । साधारण रूप से उच्च शिक्षा प्राप्त करके हम केवल नौकरी करने लायक बन पाते हैं । शिक्षा में श्रम को कोई महत्त्व नही दिया जाता । अत: शिक्षित व्यक्ति शारीरिक मेहनत के काम करने से कतराते हैं ।
 
सभी व्यक्ति सफेदपोशी की नौकरियो के पीछे भागते हैं । ऐसा काम इतने अधिक नहीं होते । जिनमें सभी शिक्षित व्यक्ति लग सके । इसीलिए क्लर्को की छोटी नौकरी तक के लिए भारी प्रतियोगिता होती है । रोजगार कार्यालयों में शिक्षित बेरोजगारों की लम्बी-लम्बी कतारे देखी जा सकती हैं । इनके रजिस्टरों में परजीकृत बेरोजगारी की सज्जा निरन्तर बढ़ती जा रही है ।
 
==== बेरोजगारी दूर करने के उपाय: ====
बेरोजगारी दूर करने के दीर्घगामी उपाय के रूप में हमें जनसख्या वृद्धि पर अकुश लगाना पड़ेगा । तात्कालिक उपाय के रूप में लोगों को निजी व्यवसायो में लगने के प्रशिक्षण की व्यवस्था करके उन्हे धन उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि नौकरियो की तलाश कम हो सके ।
 
गांवो में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए कुटीर उद्योग-धंधों को बढ़ावा देना चाहिए । इसके लिए पर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाओ की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा समय पर कच्चा माल उपलका कराया जाना चाहिए ।
 
सरकार को उचित मूल्य पर तैयार माल खरीदने की गांरटी देनी चाहिए । यह काम सहकारी सस्थाओं के द्वारा आसानी से कराया जा सकता है । बेरोजगारी दूर करने के दीर्घगामी उपाय के रूप में हमे अपनी शिक्षा-व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करना पड़ेगा । हमें तकनीशियनों और हाथ का काम करने वालों की आवश्यकता है न कि क्लर्को की ।
 
अत: हाई स्कूल तक सामान्य साक्षरता के बाद हमें व्यावसायिक शिक्षा का व्यापक प्रबन्ध करना चाहिए । व्यावसायिक शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि शिक्षा पूरी करने कै बात नवयुवक झ पने हाथ से कॉम करने का आत्म -विश्वास संजो सकें पस्‌पैर नौकरियों रही तलाश कें धकाए अपन छोटा-मोटा काम शुरू कर राके सकें ।
 
==== उपसंहार: ====
हमें निराश नहीं होना चाहिए । हमारी शिक्षा-व्यवस्था सुधार किए जा रहै है । अपने कामम-धंधो को शुरू करने के औत्नेए रियाटाती व्याप्ने दरों पर धन उपलब्ध कराया जा रहा है । इन सब उपायों का परिणाम कुछ वर्षा में सामने आ जायेंगे । आवश्यकता इस बात की है कि हम आत्मविश्वाद्‌न और दृढ़ता के साथ सहयोग करें और मिल-जुल कर इस समस्या को हल करे ।
 
==== प्रस्तावना: ====
आज बेरोजगारी की समस्या विकसित एवं अल्पविकसित दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं की प्रमुख समस्या बनती जा रही है । भारत जैसी अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में तो यह विस्फोटक रूप धारण किये हुये है । भारत में इसका प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि, पूँजी की कमी आदि है । यह समस्या आधुनिक समय में युवावर्ग के लिये घोर निराशा का कारण बनी हुई है ।
 
==== चिन्तनात्मक विकास: ====
अर्थव्यवस्था विकसित हे। या अल्पविकसित, बेरोजगारी का होना सामान्य बात है । साधारण बोलचाल में बेरोजगारी का अर्थ होता है कि वे सभी व्यक्ति जो उत्पादक कार्यो में लगे हुये नहीं होते । भारत में बेरोजगारी एक गम्भीर समस्या है ।
 
भारत में दो प्रकार की बेरोजगारी है प्रथम, ग्रामीण बेरोजगारी, द्वितीय, शहरी बेरोजगारी । बेरोजगारी के अनेक कारण हैं जैसे जनसंख्या वृद्धि, पूंजी की कमी, विकास की धीमी गति, अनुपयुक्त तकनीकों का प्रयोग, अनुपयुक्त शिक्षा प्रणाली आदि ।
 
यद्यपि शहरी एवं ग्रामीण बेरोजगारी का समाधान करने के लिये समन्वित रूप से सरकार द्वारा अनेक कारगर उपाय किये गये हैं तथापि इस समस्या से तभी उबरा जा सकता है जबकि जनसंख्या को नियन्त्रित किया जाये और देश के आर्थिक विकास की ओर ढांचागत योजनायें लागू की जाएं । इस ओर सरकार गम्भीर रूप से प्रयास भी कर रही है ।
 
==== उपसंहार: ====
बेरोजगारी की समस्या जटिल अवश्य है किन्तु इसका हल किया जा सकता है क्योंकि कुछ समस्यायें ऐसी होती हैं जो स्वयं मनुष्यों द्वारा उत्पन्न की जाती हैं और जिन्हें दूर भी मनुष्य ही कर सकता है । देश में योजनाओं को ठीक से लागू किया जाये ।
 
आर्थिक विकास हेतु उपलय संसाधनों का समुचित उपयोग किया जाये । तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा को शिक्षा का आधार बनाया जाए आवश्यकता इस बात की है कि इस समस्या को दूर करने के लिये हम सभी सरकार का सहयोग दें ।
 
'''निष्कर्ष'''
 
बेरोजगारी समाज में विभिन्न समस्याओं का मूल कारण है। हालांकि सरकार ने इस समस्या को कम करने के लिए पहल की है लेकिन उठाये गये उपाय पर्याप्त प्रभावी नहीं हैं। इस समस्या के कारण विभिन्न कारकों को प्रभावी और एकीकृत समाधान देखने के लिए अच्छी तरह से अध्ययन किया जाना चाहिए। यह समय है कि सरकार को इस मामले की संवेदनशीलता को पहचानना चाहिए और इसे कम करने के लिए कुछ गंभीर कदम उठाने चाहिए।
 
[[श्रेणी:सामाजिक कुप्रथा]]