"सुलतानपुर जिला": अवतरणों में अंतर

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* '''विजेथुवा महावीरन''':- सुल्तानपुर स्थित [[विजेथुवा महावीरन]] भगवान [[हनुमान]] को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ पर पवनपुत्र भगवान [[हनुमान]] ने दशानन रावण के मामा "कालनेमी" नामक दानव का वध किया था। [[लक्ष्मण]] के प्राण बचाने के लिए जब हनुमान [[संजीवनी बूटी]] लेने के लिए गए थे, तो [[रावण]] द्वारा भेजे गए [[कालनेमी दानव]] ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया था। उस समय [[हनुमान]] जी ने कालनेमी दानव का वध इसी स्थान पर किया था। यही से कुछ दूरी पर उमरपुर गाँव में भगवान शिव मंदिर है।
* '''धोपाप''':- सुल्तानपुर जिले में स्थित [[धोपाप]] यहां के प्रमुख स्थलों में से एक है, इसे "धोपाप धाम" के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां पर भगवान श्रीराम ने लंकेश्वर [[रावण]] का वध करने के पश्चात महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार स्नान किया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि जो भी व्यक्ति दशहरे के दिन यहां स्नान करता है, उसके सभी पाप [[गोमती नदी]] में धुल जाते हैं। यहां एक विशाल मंदिर भी है। काफी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा के लिए आते हैं।
* <ref>{{cite web|url=https://hindi.news18.com/news/uttar-pradesh/lucknow/vindhyachal-dham-darshan-incomplete-without-leaned-forehead-to-this-temple-841014.html|title=इस मंदिर में माथा टेके बगैर विंध्याचल धाम का दर्शन अधूरा- hindi.news18.com}}</ref>'''लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर''':- सुल्तानपुर में नवरात्र पर शायद ही कोई मन्दिर हो जहां देवी मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ न उमड़ती हो लेकिन इस जनपद के "लोहरामऊ" में स्थित मां दुर्गा भवानी मंदिर में नवरात्र के समय सूबे के विभिन्न इलाकों से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नगर से लगभग ७ कि.मी. दूर लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग-५६ पर स्थित लोहरामऊ में सैकड़ों वर्षों से स्थापित मां दुर्गा का यह मन्दिर केवल आस-पास के जिलों में ही नही सूबे के कई अन्य जिलों में भी खासा मशहूर है। खास बात ये है कि यहां आ कर लोग न केवल अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं बल्कि "जनेऊ" और "मुंडन" जैसे संस्कार भी पूरे करते हैं। मान्यता तो यहां तक है कि इस धाम पर शीश झुकाए बगैर "विंध्याचल धाम" का दर्शन पूरा नही माना जाता। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर में नारियल और फूल मालाओं समेत पूड़ी, कड़ाही और चूड़ियां चढ़ाने की भी परम्परा रही है। वैसे तो सावन के महीने में यहां दस दिनों तक जबरदस्त मेला लगता है लेकिन नवरात्र में यहां का नजारा कुछ अलग ही रहता है। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित राजेन्द्र प्रसाद मिश्र बताते हैं कि यहां मां दुर्गा भवानी स्वयं साक्षत प्रकट हुई थीं। देवी मां के तीन रूपों का भी यहां दर्शन होता है। मां दुर्गा के दर्शन करने और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए सूबे के तमाम जिलों से पूरे नवरात्र भर श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है। महिलाओं में इसका विशेष महत्व है, उनकी हर छोटी से छोटी मनोकामना यहां पूरी होती है। श्रद्धालु यहां नारियल और फूल मालाओं के साथ पूड़ी, कड़ाही और चूड़ियां चढाते हैं। इतना ही नही लोग यहां मुंडन, जनेऊ और वैवाहिक रस्मो-रिवाज समेत तमाम अन्य धार्मिक संस्कार भी पूरे करते हैं। इस ऐतिहासिक धाम की एक खास महत्ता यह है कि मिर्जापुर में स्थित "विंध्याचल धाम" का दर्शन तभी पूरा माना जाता है जब भक्त यहां का दर्शन कर लेते हैं। यही वजह है कि विंध्याचल जाने और लौटने वाले लोग यहां का दर्शन करना नही भूलते। नवरात्र के अंतिम दिन इस मंदिर पर खासी भीड़ जुटती है। पूरा दिन यहां यज्ञ और हवन होते रहते हैं। यहां आ कर लोग तमाम कर्मकांड कर अपने तन-मन में छुपे रोग, शोक, भय, आशंका और मनो-विकार दूर कर अपने को धन्य मानते हैं।
* '''गढ़ा (केशिपुत्र कलाम)''':- पश्चिमोत्तर दिशा में सुल्तानपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर के फासले पर बौद्धकालीन दस गणराज्यों में से एक ''केशिपुत्र'' के भग्नावशेष आज भी गढ़ा गांव में मौजूद हैं। यहां [[भगवान बुद्ध]] ने छह माह तक प्रवास किया था और यहां के शासक कलाम वंशीय क्षत्रियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। इन खंडहरों में आज भी बुद्ध के संदेश गूंज रहे हैं। ये हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के साक्षी हैं। भगवान बुद्ध के समय में जब बुद्धवाद शिखर पर था तो केशिपुत्र उत्तर भारत के दस बौद्ध गणराज्यों में से एक था। यहां कलामवंशीय क्षत्रियों का शासन था। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अभिलेख, बौद्ध सूत्र व स्थानीय परम्पराएं इसकी पुष्टि करते हैं। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक केशिपुत्र समृद्धिशाली नगर था। बौद्धग्रंथ "अंगुत्तर निकाय" व "कलाम सुत पिटक" के अनुसार भगवान बुद्ध ने यहां छह माह तक प्रवास कर कलामवंशीय क्षत्रियों को उपदेश दिया था। आज ये स्थल वर्तमान ''कुड़वार'' के ''गढ़ा गांव'' में आठ किलोमीटर के क्षेत्र में खंडहर के रूप में विद्यमान है। सन् 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में केंद्रीय सांस्कृतिक सचिव पुपुल जयकर के निर्देश पर ''गढ़ा'' के नाम से विख्यात इस खंडहर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अधिग्रहीत कर लिया। खनन में बौद्धकाल की मूर्तियां, बर्तन आदि प्राप्त हुए जिससे स्थल की ऐतिहासिकता की पुष्टि हुई।
* '''पारिजात वृक्ष''':- [[सुल्तानपुर]] शहर में [[गोमती नदी]] के तट पर उद्योग विभाग के परिसर में यह विशाल वृक्ष उपस्थित है। सुल्तानपुर शहर में गोमती नदी के तट पर उद्योग विभाग के परिसर में उपस्थित विशाल "पारिजात वृक्ष" प्रदेश में अकेला ऐसा वृक्ष है जहाँ लोग पूरी आस्था से मन्नते मांगते हैं और उनकी मनोकामनायें पूरी भी होती हैं। युवा-वर्ग अपने प्रेम को पाने और शादी-शुदा महिलाएँ अपने सुहाग के लिए मन्नते मांगती हैं। श्रद्धा का ये मेला प्रत्येक शुक्रवार और सोमवार को लगता है जहां लोग पूरी श्रद्धा से इस वृक्ष को नमन कर अपनी मनोकामनाये मांगते हैं। सुल्तानुपर के इस पारिजात वृक्ष का सही आंकलन कोई नहीं कर पाया है। जिले के बुज़ुर्ग इस वृक्ष को हजारों साल पुराना बताते हैं।