"त्रिशूल (मिसाइल)": अवतरणों में अंतर
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{{Infobox weapon
|नाम = त्रिशूल
'''त्रिशूल (मिसाइल)''' कम दूरी का जमीन से हवा में मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है, जिसकी मारक क्षमता 9 किलोमीटर है। इसका प्रथम परीक्षण 5 जून 1989 को किया गया था। त्रिशूल नौसेना, थल सेना और वायु सेना के लिये प्रयोग होने वाला अस्त्र है। इसका उपयोग नीची उडान भर रहे विमानो को मार गिराने के लिये किया जाता है। त्रिशूल के नौसेनिक संस्करण को 'टारपीडो एम के 2' नाम से जाना जाता है।तीन मीटर लंबी और दो मीटर चौड़ी ये मिसाइल धरती से आसमान में नौ किलोमीटर तक मार कर सकता है.त्रिशूल (मिसाइल) भारत द्वारा विकसित लघु-सीमा वाली सतह से हवा मार करने वाली मिसाइल है। यह समन्वित मार्गदर्शित मिसाइल विकास कार्यक्रम में रक्षा अनुसंधान (DRDO)ओर(BDL)विकास संगठन द्वारा विकसित किया गया था। इसका उपयोग कम उड़ान पर हमला करने वाली मिसाइलों के खिलाफ जहाज से एक विरोधी समुद्र तलवार के रूप में भी किया जा सकता है। ▼
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|प्रकार =[[सतह से हवा मे मार करने वाली मिसाइल]]
|उपयोगकर्ता = [[थल सेना, नौसेना और वायुसेना]]
|निर्माणकर्ता =[[रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन]] (DRDO) <br/> [[भारत डायनामिक्स लिमिटेड]] (BDL)
|लागत = 43 मिलियन अमेरिकी डॉलर
|इंजन =एकल चरण ठोस ईंधनl<ref name="त्रिशूल "/>
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|बजन = 130 किलो
|लंबाई = 3.1 मीटर
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'''त्रिशूल (मिसाइल)''' कम दूरी का जमीन से हवा में मार करने वाला यह समन्वित मार्गदर्शित मिसाइल विकास कार्यक्रम में (DRDO) रक्षा अनुसंधान विकास संगठन ओर(BDL) भारत डायनामिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया था। इसका उपयोग कम उड़ान पर हमला करने वाली मिसाइलों के खिलाफ जहाज से एक विरोधी समुद्र तलवार के रूप में भी किया जा सकता है।
भारत के पूर्वी तट पर भुवनेश्वर से 180 किलोमीटर दूर स्थित चांदीपुर अंतरिम परीक्षण रेंज से इस मिसाइल का परीक्षण एक मोबाइल लॉंचर के ज़रिए किया गया.
मोबाइल मिसाइल लॉंचर से चलाई गई इस मिसाइल से एक माइक्रो-लाइट विमान को निशाना बनाया गया.
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1997 में भारतीय नौसेना ने ब्रह्मपुत्र वर्ग क्षेत्र रक्षा के लिए त्रिशूल मिसाइल के विकास में विलंब होने में अपनी नाराजगी व्यक्त की। 1998 तक मिसाइल 24 उड़ान परीक्षणों से गुजर चुका था 1998 में त्रिशूल मिसाइल प्रक्षेपण प्रणाली में भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1999 में भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना द्वारा मिसाइल को सेवा में शामिल किया गया था। अक्टूबर 2001 में डीआरडीओ (DRDO) द्वारा मिसाइल की समीक्षा की गई। मिसाइल प्रणाली की कमी पाया गया क्योंकि ट्रैकिंग रडार बीम में आंतरिक क विराम टूट रहा था जिसके परिणामस्वरूप मिसाइल को लक्ष्य नहीं मिला था और भारी बीएमपी-द्वितीय चेसिस गतिशीलता के लिए सैन्य गुणात्मक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा था। 2002 में नौसैनिक संस्करण का परीक्षण समुद्र किया गया।2003 में भारत सरकार ने घोषणा की कि मिसाइल एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक होगी और इसे अन्य परियोजनाओं से जोड़ा जाएगा। 2005 में मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था। कार्यक्रम का विकास लागत 2.826 बिलियन (43 मिलियन अमेरिकी डॉलर) था। नौसेना इस मिसाइल का इस्तेमाल समुद्र से आसमान में उड़ान भरते लक्ष्यों को निशाना बनाने के लिए कर चुकी है।
== विशेषता ==
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[[श्रेणी:युद्ध]]
[[श्रेणी:हथियार]]
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