"रूमा पाल": अवतरणों में अंतर
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== करियर ==
न्यायमूर्ति पाल अगस्त 1990 में [[कोलकाता उच्च न्यायालय]] में [[न्यायाधीश]] बनी और जनवरी 2000 में उन्हें [[भारत का उच्चतम न्यायालय|सुप्रीम कोर्ट]] में पदोन्नत किया गया। वर्ष 2000 में [[भारत का उच्चतम न्यायालय|सुप्रीम कोर्ट]] में नये जजों की नियुक्ति को लेकर [[न्यायपालिका]] और तत्कालीन राष्ट्रपति [[के आर नारायणन]] के बीच ठन गयी। राष्ट्रपति नारायणन इस सूची के साथ न्यायमूर्ति [[केजी बालाकृष्णन]] का नाम भी जोड़ना चाहते थे, लेकिन [[भारत का उच्चतम न्यायालय|सुप्रीम कोर्ट]] इसके लिए तैयार नहीं था, इस गतिरोध के चलते न्यायमूर्ति रूमा पाल, [[दोराई स्वामी राजू]] और [[योगेश कुमार सभरवाल]] की नियुक्ति को [[राष्ट्रपति]] की मंजूरी मिलने में एक-दो माह का विलंब हुआ। [[भारत का उच्चतम न्यायालय|सुप्रीम कोर्ट]] की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में 28 जनवरी 2000 को उन्हें नियुक्त किया गया। 3 जून 2006 को पाल सेवानिवृत्त हो गयीं, लेकिन वे अभी भी सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं। वर्ष 2011 के वीएम तारकुंडे स्मृति व्याख्यान में उन्होंने उच्च [[न्यायपालिका]] के चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाये और उच्च [[न्यायपालिका]] के सात गुनाहों की सूची
== सन्दर्भ ==
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