"जीवाश्मविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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अब तक जितने भी जीवाश्मीय प्रमाण हमें प्राप्त हो चुके हैं, उनके आधार पर जीवों के क्रमिक विकास पर अच्छा खासा प्रकाश पड़ता है। जीवाश्मों के अध्ययन से हमें उन जीवों का पता चलता है जो अब या तो लुप्त (extinct) हो गए हैं, या उनका वर्तमान स्वरूप पर्याप्त परिवर्तित हो गया है। जीवाश्म प्राचीन जीवों के वे अवशेष हैं, जो शिलाखंडों या अन्य स्थानों पर पत्थर जैसे हो गए हैं। जीवों के कुछ ऐसे भी अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो प्रस्तीरभूत (stratified) न होकर अपने मूल रूप में ही हैं। हिमसागरीय क्षेत्रों में प्राप्त मैमथों तथा अन्य जंतुओं के मृत शरीर रूस तथा इंग्लैंड और अमरीका के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं।
 
== जीवाश्मों के अभिलक्षण ==rahul yadav romio
जीवाश्म भी, आधुनिक जीवों की आकृति से, न्यूनाधिक रूप में, मिलते-जुलते हैं। जीवाश्म केवल अवसादी शिलाखंडों में ही (कुछ अपवादों को छोड़कर) मिला करते हैं। अनेक प्रकार के जीवजंतुओं की अनेक परिस्थितियों में मृत्यु के उपरांत उनके शवों पर जो अवसाद (Sediment) जमा हाते हते हैं, कालांतर में वे ही जीवाश्म बन जाया करते हैं। कुछ जीवाश्म तो इतने पूर्ण हैं कि उनकी आण्वीक्षिकीय परीक्षा (microscopic examination) करने पर जीवों की कोशिका तक की रचनाएँ स्पष्ट दीख पड़ती हैं। जीवों के अश्मीभूत प्रमाण (fossilized specimens) अपने (जीवों के) जीवित शरीर के रूप में ही मिल जाएँ, यह आवश्यक नहीं है। उनके शवों में सड़ाँध, आक्सीकरण (oxidation), हिंसक जीवों द्वारा विकृत कर देने, शीत, वर्षा, धूप आदि के कारण विकार उत्पन्न हो जाता है। कुछ जंतु, जिनके शरीर कैल्सियम कार्बोनेट, सिलिका आदि जैसे अकार्बनिक पदार्थों द्वारा बने होते हैं, उनपर विकार का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ता है। ऐसे जीवों के जीवाश्म बहुत कम संख्या में उपलब्ध हैं। जो उपलब्ध हैं भी वे आधुनिक जीवित जीवों से तुलना करने के लिए अपूर्ण हैं।