"सांख्य दर्शन": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: आंशिक वर्तनी सुधार।
hfghhhgj
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
भारतीय [[दर्शन]] के छः प्रकारों में से '''सांख्य''' भी एक है जो प्राचीनकाल में अत्यंत लोकप्रिय तथा प्रथित हुआ था। यह [[अद्वैत]] [[वेदान्त]] से सर्वथा विपरीत मान्यताएँ रखने वाला [[दर्शन]] है। इसकी स्थापना करने वाले मूल व्यक्ति [[कपिल]] कहे जाते हैं। 'सांख्य' का शाब्दिक अर्थ है - 'संख्या सम्बंधी' या विश्लेषण। इसकी सबसे प्रमुख धारणा सृष्टि के प्रकृति-पुरुष से बनी होने की है, यहाँ [[प्रकृति]] (यानि [[पंचमहाभूत|पंचमहाभूतों]] से बनी) जड़ है और [[पुरुष]] (यानि जीवात्मा) चेतन। [[योग]] शास्त्रों के ऊर्जा स्रोत ([[ईडा]]-[[पिंगला]]), [[शाक्त|शाक्तों]] के स्क्क्[[शिव-शक्ति]] के सिद्धांत इसके समानान्तर दीखते हैं।
 
[[भारतीय संस्कृति]] में किसी समय सांख्य दर्शन का अत्यंत ऊँचा स्थान था। देश के उदात्त मस्तिष्क सांख्य की विचार पद्धति से सोचते थे। [[वेद व्यास|महाभारतकार]] ने यहाँ तक कहा है कि '''ज्ञानं च लोके यदिहास्ति किंचित् सांख्यागतं तच्च महन्महात्मन्''' (शांति पर्व 301.109)। वस्तुत: [[महाभारत]] में दार्शनिक विचारों की जो पृष्ठभूमि है, उसमें सांख्यशास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। [[शान्ति पर्व]] के कई स्थलों पर सांख्य दर्शन के विचारों का बड़े काव्यमय और रोचक ढंग से उल्लेख किया गया है। सांख्य दर्शन का प्रभाव [[गीता]] में प्रतिपादित दार्शनिक पृष्ठभूमि पर पर्याप्त रूप से विद्यमान है।