"कुंभ एवं अर्धकुंभ मेला, हरिद्वार": अवतरणों में अंतर
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== पौराणिक संदर्भ ==
एक कथा है कि बार-बार सुर असुरो में संघर्ष हुआ जिसमें उन्होने विराट मद्रांचल को मथनी और नागराज वासुकी को रस्सी बनाकर सागर का मन्थन किया। सागर में से एक-एक कर चौदह रत्न निकले, विष, वारूणि, पुष्पक विमान, ऐरावत हाथी, उच्चेःश्रेवा अश्व, लक्ष्मी, रम्भा, चन्द्रमा, कौस्तुभ मणि, कामधेनु गाय, विश्वकर्मा, धन्वन्तरि और अमृत कुम्भ। जब [[धन्वन्तरि]] अमृत का कुम्भ लेकर निकले तो देव और दानव दोनों ही अमृत की प्राप्ति को साकार देखकर उसे प्राप्त करने के लिये उद्यत हो गये लेकिन इसी बीच इन्द्र पुत्र जयन्त ने धन्वन्तरि के हाथों से अमृत कुम्भ छीना और भाग खडा हुआ, अन्य देवगण भी कुम्भ की रक्षा के लिये अविलम्ब सक्रिय हो गये। इससे बौखलाकर दैत्य भी जयन्त का पीछा करने के लिये भागे। जयन्त 12 वर्षो तक कुम्भ के लिये भागता रहा। इस अवधि में उसने 12 स्थानों पर यह कुम्भ रखा। जहां-जहां कुम्भ रखा वहां-वहां अमृत की कुछ बुन्दें छलक कर गिर गई और वे पवित्र स्थान बन गये इसमें से आठ स्थान, देवलोक में तथा चार स्थान भू-लोक अर्थात भारत में है। इन्हीं बारह स्थानों पर कुम्भ पर्व मानने की बात कही जाती है। चूंकि देवलोक के आठ स्थानों की जानकारी हम मुनष्यों को नहीं है अतएव हमारे लिये तो भू-लोक उसमें भी अपने देश के चार स्थानों का महत्व है। यह चार स्थान है [[हरिद्वार]], [[प्रयाग]], [[उज्जैन]] और [[नासिक]]।
== ग्रह योग ==
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