"आदर्शवाद": अवतरणों में अंतर

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===शिक्षा पद्धति तथा आदर्शवाद===
प्राय: लोगों का ऐसा विचार है कि आदर्शवाद शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्यों का निर्धारण करता है, शिक्षण पद्धति का नहीं। परन्तु वास्तविकता यह है कि आदर्शवाद शिक्षा के उद्देश्यों एवं आदर्शों पर अधिक बल देते हुए भी शिक्षा पद्धति की अवहेलना नहीं करता है। आदर्शवादी विचारधारा के अनुसार शिक्षण पद्धति ऐसी होनी चाहिये जिससे बालक के व्यक्तित्व का विकास हो सके। किसी भी शिक्षण पद्धति को उत्तम तभी कहा जा सकता है जबकि वह बालकों को अपनी बुद्धि, योग्यता, रूचि, शक्ति, सामर्थ्य एवं आवश्यकता को दृष्टि में रखते हुए इन्हें ज्ञान प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो सके। आदर्शवाद के अनुसार यदि व्यक्ति एक बार स्पष्ट रूप से शिक्षा का उद्देश्य निश्चित कर लेता है तो फिर यह गौण हो जाता है कि वह किन पद्धतियों के सहारे उन उद्देश्यों को प्राप्त करेगा। अतः जब जो प्रविधि शिक्षक अथवा शिक्षार्थी के लिए उपयुक्त हो, तब उसे अंगीकार कर लेने में कोई हानि नहीं। इसीलिए वह खेल पद्धति को अपनाने में भी संकोच नहीं करता है। फ्रोबेल ने शिक्षण पद्धति को मूलत: ‘आत्म-प्रेरित क्रिया’ माना है। खेल द्वारा शिक्षा भी आत्म क्रिया द्वारा शिक्षा का ही एक भेद है। खेल के विषय में फ्रोबेल ने लिखा है- 'खेल बालक के लिए उसके अन्तर्जगत एवं वाह्य-जगत का दर्पण है। यह जीवन एवं लगन शक्ति को अभिव्यक्ति करने वाली प्रवृत्ति है।'
 
आदर्शवादी प्राचीन साहित्य का आदर करते हैं। वे मानते हैं कि हमारे प्राचीन साहित्य में पूर्वजों द्वारा खोजा हुआ ज्ञान भरा पड़ा है, हमें उससे लाभ उठाना चाहिये। प्राचीन साहित्य के अध्ययन के लिए वे ‘स्वाध्याय विधि’ के पक्षधर हैं। परन्तु इस विधि का प्रयोग शिक्षा के उच्च स्तर पर ही हो सकता है।