"उपभोक्ता": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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* '''स्वयं सहायता का दायित्व''' : उपभोक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि जहां तक संभव हो वस्तु के सम्बंध में सूचना एवं चुनाव के लिए वह विक्रेता पर निर्भर न रहें। एक उपभोक्ता के नाते, आप से यह अपेक्षित है कि स्वयं को धोखे से बचाने के लिए आपका व्यवहार उत्तदायित्वपूर्ण हो। एक सजग उपभोक्ता दूसरों की अपेक्षा अपने हितों का अधिक ध्यान रख सकता है। शुरू से ही जागरूक हो जाना एवं अपने आपको तैयार कर लेना हानि होने अथवा क्षति पहुंचाने के पश्चात उसका निवारण करने से, सदा श्रेष्ठ होता है।
* '''लेन-देन का प्रमाण''' : उपभोक्ता का दूसरा दायित्व क्रय का प्रमाण एवं स्थायी वस्तुओं के क्रय से सम्बन्धित प्रपत्रों को प्राप्त करना एवं उन्हें सुरक्षित रखना है। उदाहरण के लिए वस्तुओं के क्रय पर रोकड़ पर्ची (कैश मेमो) को प्राप्त करना आवश्यक है। याद रहे कि यदि आप वस्तु में किसी कमी के सम्बन्ध में शिकायत करना चाहते हैं तो क्रय का प्रमाण होने पर आप वस्तु की मरम्मत अथवा उसके प्रतिस्थापन का दावा कर सकते हैं। इसी प्रकार टी.वी., रेफरीजरेटर आदि स्थायी वस्तुओं के क्रय पर विक्रेता आश्वासन/गारंटी कार्ड देते हैं। यह कार्ड आपको क्रय के पश्चात मरम्मत अथवा नुकसान के प्रतिस्थापन की सेवा
* '''उचित दावा''' : उपभोक्ता का एक और दायित्व, जो उसे मस्तिष्क में रखना चाहिए, है कि शिकायत करते समय एवं हानि अथवा क्षति होने पर उसकी पूर्ति का दावा करते समय अनुचित रूप से बड़ा दावा नहीं करना चाहिए। कभी-कभी उपभोक्ता अपने निवारण के अधिकार का उपयोग न्यायालय में करता है। ऐसे भी मामले सामने आये हैं जिनमें उपभोक्ता ने बिना किसी उचित कारण के क्षतिपूर्ति की बड़ी राशि का दावा किया है। यह एक अनुचित कार्य है, जिससे बचना चाहिए।
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