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{{main|सिक्किम का इतिहास}}
[[चित्र:Gururinpochen.jpg|thumb|240px|[[गुरु रिन्पोचे]], सिक्किम के संरक्षक सन्त की मूर्ति. [[नाम्ची]] की मूर्ति १८८ फीट पर विश्व में उनकी सबसे ऊँची मूर्ति है।]]
बौद्ध भिक्षु [[गुरु रिन्पोचे]] (पद्मसंभव) का ८वीं सदी में सिक्किम दौरा
बौद्ध भिक्षु [[गुरु रिन्पोचे]] (पद्मसंभव) का ८वीं सदी में सिक्किम दौरा यहाँ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन विवरण है। अभिलेखित है कि उन्होंने [[बौद्ध धर्म]] का प्रचार किया, सिक्किम को आशीष दिया तथा कुछ सदियों पश्चात आने वाले राज्य की भविष्यवाणी की। मान्यता के अनुसार १४वीं सदी में [[ख्ये बुम्सा]], पूर्वी [[तिब्बत]] में [[खाम]] के [[मिन्यक]] महल के एक राजकुमार को एक रात दैवीय दृष्टि के अनुसार दक्षिण की ओर जाने का आदेश मिला। इनके ही वंशजों ने सिक्किम में राजतन्त्र की स्थापना की। १६४२ इस्वी में ख्ये के पाँचवें वंशज [[फुन्त्सोंग नामग्याल]] को तीन बौद्ध भिक्षु, जो उत्तर, पूर्व तथा दक्षिण से आये थे, द्वारा [[युक्सोम]] में सिक्किम का प्रथम [[चोग्याल]] (राजा) घोषित किया गया। इस प्रकार सिक्किम में राजतन्त्र का आरम्भ हुआ।
 
फुन्त्सोंग नामग्याल के पुत्र, [[तेन्सुंग नामग्याल]] ने उनके पश्चात १६७० में कार्य-भार संभाला। तेन्सुंग ने राजधानी को [[युक्सोम]] से [[रबदेन्त्से]] स्थानान्तरित कर दिया। सन १७०० में [[भूटान]] में चोग्याल की अर्ध-बहन, जिसे राज-गद्दी से वंचित कर दिया गया था, द्वारा सिक्किम पर आक्रमण हुआ। तिब्बतियों की सहयता से चोग्याल को राज-गद्दी पुनः सौंप दी गयी। १७१७ तथा १७३३ के बीच सिक्किम को नेपाल तथा भूटान के अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा जिसके कारण रबदेन्त्से का अन्तत:पतन हो गया।<ref name="इतिहास"/>