"गौतम बुद्ध": अवतरणों में अंतर

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[[Image:Departure of Siddhartha.jpg|left|thumb|200px|सिद्धार्थ का महाभिनिष्क्रमण ([[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] द्वारा चित्रित)]]
राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहाँ पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। पर ये सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बाँधकर नहीं रख सकीं। वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था। दूसरी बार कुमार जब बगीचे की सैर को निकला, तो उसकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी साँस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया। उन्होंने सोचा कि ‘धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ्य को, जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी सौम्य? चौथी बार कुमार बगीचे की सैर को निकला, तो उसे एक संन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया। " बुद्धा और उनका धम्म " इस बाबासाहेब आंबेडकर कि किताब के आधार से
 
महाभिनिष्क्रमण :-
 
" रोहिणी नदी के विवाद से सिद्धार्थ को महाभिनिष्क्रमण करणा पाडा . कपिल वस्तू नागरी उस समय एक गणराज्य था ! इसी वाजहसे वहा एक संघ था ! संघ में २० साल का कोहीभी युवक को संघ में सामील किया जाता था ! गौतम जब २० साल के हुये तब संघ का सदस्य हुये ! संघ के नियमोका पालन करणा साभिको अनिवार्य था ! कपिलवस्तू के शाक्य और कोलीये एन दोनो में
 
=== महाभिनिष्क्रमण ===
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=== ज्ञान की प्राप्ति ===
[[चित्र:Astasahasrika Prajnaparamita Victory Over Mara.jpeg|thumb|right|असुरों के बीच घिरे ध्यान मुद्रा में महात्मा बुद्ध]]
वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। समीपवर्ती गाँव की एक स्त्री [[सुजाता]] को पुत्र हुआ। उसने बेटे के लिए एक वटवृक्ष की मनौती मानी थी। वह मनौती पूरी करने के लिए सोने के थाल में चावलगाय के दूध की खीर भरकर पहुँची। सिद्धार्थ वहाँ बैठा ध्यान कर रहा था। उसे लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धरकर बैठे हैं। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।’
उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उसे सच्चा बोध हुआ। तभी से सिद्धार्थ 'बुद्ध' कहलाए। जिस [[पीपल]] वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह [[बोधिवृक्ष]] कहलाया और [[गया]] का समीपवर्ती वह स्थान [[बोधगया]]।
 
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बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है -
 
* महात्मा बुद्ध ने सनातन धरम के कुछ संकल्पनाओं का प्रचार किया, जैसे [[अग्निहोत्र]] तथा [[गायत्री मन्त्र]]
* [[ध्यान]] तथा अन्तर्दृष्टि
* [[मध्यमार्ग]] का अनुसरण