"चित्रकूट धाम": अवतरणों में अंतर

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'''''               नील गिरि और चित्रकूट'''''
 
नील गिरि अनादिकालीन देवोपम पर्वत है |इसे अलौकिक पर्वत कहा जाता है क्योकि यह भौतिक दृष्टि से सुगम साध्य नहीं है | पद्म पुराण में पाताल खंड में इस पर्वत को जिस पुण्यमय क्षेत्र में स्थिति बताई गई है वह क्षेत्र पयस्वनी नदी पर स्थित च्यवन मुनि के आश्रम से कुछ ही दुरी पर है |निसंदेह यह स्थान चित्रकूट ही है |अश्वमेध यज्ञ के अश्व को लेकर शत्रुघ्न सुमति के साथ ऋषि च्यवन के आश्रम से कुछ ही कदम पर स्थित पयस्वनी नदी के सन्निकट क्षेत्र में विशालकाय नील आभा से सम्पन्न ,सुवर्ण कूट ,राजताभिकूट ,मानिक्यकूट पर्वत को देखकर विस्मित हो गए |
 
     तब उनके मंत्री सुमति ने कहा –'''राजन !हम लोगो के सामने यह नील पर्वत शोभा पा रहा है |इसके चारो ओर फैले हुए बड़े बड़े शिखर स्फटिक आदि मणियो के समूह हैं ,अतएव वे बड़े मनोहर प्रतीत होते हैं |पापी और पर स्त्री लम्पट मनुष्य इस पर्वत को नहीं देख पाते |जो नीच मनुष्य भगवान श्रीविष्णु के गुणों पर विश्वास या आदर नहीं करते ,सत्पुरुषों द्वारा आचरण में लाये हुए श्रौत और स्मार्त धर्मो को नहीं मानते तथा सदा अपने बौद्धिक तर्क के आधार पर ही विचार करते हैं ,उन्हें भी इस पर्वत का दर्शन नहीं होता |******जो श्री रघुनाथ जी के भजन से विमुख होते हैं उन्हें भी इस पर्वत का दर्शन नहीं होता |'''
 
स्पष्ट है की नील पर्वत कोई भौतिक संरचना नहीं अपितु आध्यात्मिक ऊर्जा से व्युत्पन्न आभा मंडल है जिसे केवल आध्यात्मिक चेतना से ही देखा जा सकता है कलुषित चर्म चक्षुओ से नहीं | इस दृष्टि में जिस अनुभूति का वर्णन तत्वदर्शी सुमति जी ने किया है उसी दृष्टि को चित्रकूट के लिए महर्षि वाल्मीकि ने भी संकेत किया है –
 
'''''      '' सुवर्ण कूटम् रजताभि कूटम् माणिक्य कूटम् मणिरत्न कूटम् ||'''
 
'''       अनेक कूटम् वहुवर्ण कूटम् श्री चित्र कूटम् शरणम् प्रपद्दे ||'''
 
'''''                                               ''  (वा.रा./अयोध्या.)'''
 
तात्विक दृष्टि से देखे जाने वाले इस अलौकिक पर्वत में स्वर्ण,रजत ,माणिक्य,मणि रत्नों की तरह विभिन्न वर्णों की आध्यात्मिक चित्रावली का सुखद आभास होता  है |
 
नील वर्ण आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है | तत्वदर्शियो ने, भगवान विष्णु तथा भगवान राम को इसी आभा मंडल से विभूषित किया है |
 
भगवान विष्णु के लिए -
 
'''           नील सरोरुह श्याम तरुण अरुण बारिज नयन ||'''
 
'''           करउ सो मम उर धाम , सदा क्षीर सागर सयन ||'''
 
'''                                                   (रा.च.मा.१/१-ग )'''
 
भगवान राम के लिए -
 
'''           केकीकंठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिन्हं ||'''
 
'''          शोभाढ्यं पीत वस्त्रं सरसिज नयनं सर्वदा सुप्रसन्नं ||'''
 
'''                                  (रा.च.मा. श्लोक उत्तर./१)'''
 
'''          नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम सीता समारोपित वाम भागम ||'''
 
'''          पाणौ महा सायक चारु चापं नमामि रामं रघुवंस नाथं  ||'''
 
'''                                            (रा.च.मा. श्लोक अयोध्या श्लोक /३)'''
 
उक्त अवलोकनों से स्पष्ट है की अनंत ब्रह्माण्ड में व्याप्त दिव्य शक्तियां  प्रकाश की तरंगो के रूप में विभिन्न वर्णों में अतिव्याब्त हैं जिसे साधना के शुक्ष्म दृष्टि से ही देखा जा सकता है |नील वर्ण की आभा भगवान विष्णु एव श्री राम की आध्यात्मिक तरंग का स्वरूप है | इस दृष्टि को जाग्रत करना ही नील पर्वत का दर्शन है |यह साधना हर जगह सुलभ नहीं हो सकती | बिभिन्न पौराणिक प्रसंगों में भगवान विष्णु का दर्शन करने के लिए अनेकानेक तत्वदर्शी साधकों ने नील गिरि की यात्राएं किये हैं |सुमति ने शत्रुघ्न को इसी रहस्य को स्पष्ट करते हुए बताया है की किसी भी पापात्मा को इस पर्वत का दर्शन नहीं हो सकता |इस बात में कहीं भी संदेह नहीं की चित्रकूट के समीप भगवान राम के अभिन्न भक्त एव तत्वदर्शी  शत्रुघ्न की तरह किसी भी धर्म परायण साधक को नील पर्वत का दर्शन अवस्य्मेव अपेक्षित है | जिस पावन पर्वत पर भगवान् श्रीराम कई वर्षों तक आध्यात्मिक साधना द्वारा नील वर्णित आभा को अद्यतन किया हो उसे अपेक्षित दृष्टि से देखा जाएगा तो भौतिक दृष्टि के लिए नील पर्वत की तरह ही दृष्टिगोचर होना अवश्यम्भावी है |
 
{{Infobox Indian Jurisdiction |
| नगर का नाम = चित्रकूट