"खाँटी किकटिया": अवतरणों में अंतर
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'''खाँटी किकटिया''' हिंदी के चर्चित कहानीकार और उपन्यासकार [[अश्विनी कुमार पंकज]] का उपन्यास है।<ref>https://books.google.co.in/books?id=CIlVDwAAQBAJ&printsec=frontcover&source=gbs_atb#v=onepage&q&f=false</ref> ‘[[माटी माटी अरकाटी]]<ref>http://www.biharkhojkhabar.com/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8/</ref>’ फेम श्री पंकज का यह दूसरा उपन्यास है जो उन्होंने अपनी मातृभाषा [[मगही]] में लिखा हॅै। जनवरी, 2018 में प्रकाशित यह उपन्यास 600 ईसा पूर्व के सुप्रसिद्ध दार्शनिक [[मक्खलि गोशाल| मक्खलि गोसाल]] के जीवन और दर्शन पर आधारित है। आलोचकों के अनुसार ‘खाँटी किकटिया’ मगही साहित्य के उपन्यास लेखन में अपनी तरह का विरल प्रयास है।<ref>"‘खांटी किकटिया’ मगही उपन्यास में अपनी तरह का विरल लेखन", राष्ट्रीय सहारा, पटना संस्करण, 23 अप्रैल 2018</ref>
1928 में छपी
बहुजन साहित्य के विचारक और प्रखर हिंदी आलोचक प्रेमकुमार मणि कहते हैं, ‘मगध के इतिहास की व्याख्या करने वाली यह कृति बहुत ही बहसतलब है और रचनात्मकता से भरी पड़ी है। <ref>दैनिक ‘आज’, पटना संस्करण, 23 अप्रैल 2018</ref> मगही लेखक घमंडी राम की टिप्पणी है, ‘वर्ण व्यवस्था देश में सदियों से अपने बर्बर रूप में विद्यमान रही है। लेखक ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बौद्धकालीन समाज की सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक जीवन की जो तस्वीर इस कृति में खींची है, वह मगही साहित्य में अपनी वैचारिकता के लिए सदैव याद की जाएगी।’ मगही लेखक धनंजय श्रोत्रिय का मानना है कि मगही के इतिहास लेखन में अश्विनी पंकज ने ‘खाँटी किकटिया’ लिखकर एक ऐतिहासिक धरोहर मगध के समाज को सौंपा है। कवि हरीन्द्र विद्यार्थी की सम्मति है, ‘भाषा, शैली, कथन और पात्रों के सृजन की दृष्टि से यह मगही का एक सर्वोत्कृष्ट उपन्यास है। इस शोधपरक कृति ने मगही उपन्यास का मानक तय कर दिया है।’ वहीं, साहित्यकार ध्रुव गुप्त के अनुसार ‘अश्विनी कुमार पंकज ने मक्खलि गोसाल के जीवन, विचार और उनके नेतृत्व में आजीवकों की लड़ाई की जैसी जीवंत तस्वीर खींची है, उससे गुज़रना एक दुर्लभ अनुभव है। उनकी इस कृति में देशज भाषा मगही और उसकी लोकोक्तियों का सौंदर्य अपने पूरे निखार पर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मगही भाषा का यह सर्वथा अलग-सा उपन्यास मगही ही नहीं, तमाम देशज भाषाओं के लिए गर्व का विषय साबित होगा।’<ref>"‘खांटी किकटिया’ मगही उपन्यास में अपनी तरह का विरल लेखन", राष्ट्रीय सहारा, पटना संस्करण, 23 अप्रैल 2018</ref>
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