"वराह मिहिर": अवतरणों में अंतर

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कापित्थक ([[उज्जैन]]) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का [[गुरुकुल]] सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। [[समय]] मापक घट यन्त्र, [[दिल्ली का लौहस्तंभ|इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ]] के निर्माण और [[ईरान]] के शहंशाह [[नौशेरवाँ]] के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर [[वेधशाला]] की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः [[ऋग्वेद]] काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है।
वराह मिहीर ने माया सभ्यता से प्राप्त पांचाल पैचाशी नामक ग्ंथ का अध्ययन करके पंच सिधांतिका की रचना कीया .
पांचाल पैशाची मे विश्वकर्मा के सभी विद्दयाओ का समावेस था जो शुक्राचार्य द्वारा होते हुये मयासुर को प्राप्त हुआ जिसने माया सभ्यता की स्थापना की जो उस समय की सबसे विकसीत सभ्यता थी
 
== जीवनी ==