"चाणक्य": अवतरणों में अंतर

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=== राज्य के तत्त्व : सप्तांग सिद्धांत ===
कौटिल्य ने पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तकों द्वारा प्रतिपादित राज्य के चार आवश्यक तत्त्वों - भूमि, जनसंख्या, सरकार व सम्प्रभुता का विवरण न देकर राज्य के सात तत्त्वों का विवेचन किया है। इस सम्बन्ध में वह राज्य की परिभाषा नहीं देता किन्तु पहले से चले आ रहे साप्तांग सिद्धांत का समर्थन करता है। कौटिल्य ने राज्य की तुलना मानव-शरीर से की है तथा उसके सावयव रूप को स्वीकार किया है। राज्य के सभी तत्त्व मानव शरीर के अंगो के समान परस्पर सम्बन्धित, अन्तनिर्भर तथा मिल-जुलकर कार्य करते हैं-
:: '' स्वाम्यमात्यजनपददुर्गकोशदण्डमित्राणि प्रकृतयः'' ॥अर्थशास्त्र ०६.१.०१॥
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स्वाम्यमात्यजनपददुर्गकोशदण्डमित्राणि प्रकृतयः'' ॥अर्थशास्त्र ०६.१.०१॥
 
*''' (1) स्वामी (राजा)''' शीर्ष के तुल्य है। वह कुलीन, बुद्धिमान, साहसी, धैर्यवान, संयमी, दूरदर्शी तथा युद्ध-कला में निपुण होना चाहिए।