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'''लुबुमबाशीलुबुम्बाशी''' (पूर्व नाम: {{भाषा|fr|'''Élisabethville'''}} ([[फ़्रान्सीसी भाषा|फ्रेंच]]), [[कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य]] के दक्षिण-पूर्वी हिस्से का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है (सबसे बड़ा शहर [[किन्शासा]] है)। लुबुमबाशी कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य की खनन राजधानी है, जो देश की सबसे बड़ी खनन कंपनियों के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करती है।<ref name="BloombergKavanagh">{{Cite news|last=Michael J. Kavanagh|author=Michael J. Kavanagh|date=23 March 2013|title=Congolese Militia Seizes UN Compound in Katanga's Lubumbashi|url=https://www.bloomberg.com/news/2013-03-23/congolese-militia-seizes-un-compound-in-katanga-s-lubumbashi.html|accessdate=23 March 2013}}</ref>
 
==इतिहास==
===भारत में महत्त्व===
भारत में लुबुम्बाशी को '''कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया''', [[परमवीर चक्र]] के शहीद स्थल के रूप में जाना जाता है।
भारत में लुबुमबाशी को '''कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया''', [[परमवीर चक्र]] के शहीद स्थल के रूप में जाना जाता है। दिसंबर 1961 में कांगो संकट के दौरान [[संयुक्त राष्ट्र तथा शांतिस्थापन|संयुक्त राष्ट्र के शांतिस्थापन मिशन]] के तहत कांगो गणराज्य में तैनात भारतीय सैनिकों में सलारिया भी शामिल थे। 5 दिसंबर को सलारिया की बटालियन को दो बख्तरबंद कारों पर सवार [[कातांगा प्रान्त|पृथकतावादी राज्य कातांगा]] के 150 सशस्त्र पृथकतावादियों द्वारा एलिज़ाबेविले हवाई अड्डे के मार्ग के अवरुद्धीकरण को हटाने का कार्य सौंपा गया। उनकी रॉकेट लांचर टीम ने कातांगा की बख्तरबंद कारों पर हमला किया और नष्ट कर दिया। इस अप्रत्याशित कदम ने सशस्त्र पृथकतावादियों को भ्रमित कर दिया, और सलारिया ने महसूस किया कि इससे पहले कि वे पुनर्गठित हो जाएं, उन पर हमला करना सबसे अच्छा होगा। हालांकि उनकी सेना की स्थिति अच्छी नहीं थी फिर भी उन्होंने पृथकतावादियों पर हमला करवा दिया और 40 लोगों को कुकरियों से हमले में मार गिराया। हमले के दौरान सलारिया को गले में दो बार गोली मार दी और वह वीर गति को प्राप्त हो गए। बाकी बचे पृथकतावादी अपने घायल और मरे हुए साथियों को छोड़ कर भाग खड़े हुए और इस प्रकार मार्ग अवरुद्धीकरण को साफ़ कर दिया गया। अपने कर्तव्य और साहस के लिए और युद्ध के दौरान अपनी सुरक्षा की उपेक्षा करते हुए कर्तव्य करने के कारण सलारिया को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में मरणोपरांत [[परम वीर चक्र]] से सम्मानित किया गया।
 
भारत में लुबुमबाशी को '''कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया''', [[परमवीर चक्र]] के शहीद स्थल के रूप में जाना जाता है। दिसंबर 1961 में कांगो संकट के दौरान [[संयुक्त राष्ट्र तथा शांतिस्थापन|संयुक्त राष्ट्र के शांतिस्थापन मिशन]] के तहत कांगो गणराज्य में तैनात भारतीय सैनिकों में सलारिया भी शामिल थे। 5 दिसंबर को सलारिया की बटालियन को दो बख्तरबंद कारों पर सवार [[कातांगा प्रान्त|पृथकतावादी राज्य कातांगा]] के 150 सशस्त्र पृथकतावादियों द्वारा एलिज़ाबेविले हवाई अड्डे के मार्ग के अवरुद्धीकरण को हटाने का कार्य सौंपा गया। उनकी रॉकेट लांचर टीम ने कातांगा की बख्तरबंद कारों पर हमला किया और नष्ट कर दिया। इस अप्रत्याशित कदम ने सशस्त्र पृथकतावादियों को भ्रमित कर दिया, और सलारिया ने महसूस किया कि इससे पहले कि वे पुनर्गठित हो जाएं, उन पर हमला करना सबसे अच्छा होगा। हालांकि उनकी सेना की स्थिति अच्छी नहीं थी फिर भी उन्होंने पृथकतावादियों पर हमला करवा दिया और 40 लोगों को कुकरियों से हमले में मार गिराया। हमले के दौरान सलारिया को गले में दो बार गोली मार दी और वह वीर गति को प्राप्त हो गए। बाकी बचे पृथकतावादी अपने घायल और मरे हुए साथियों को छोड़ कर भाग खड़े हुए और इस प्रकार मार्ग अवरुद्धीकरण को साफ़ कर दिया गया। अपने कर्तव्य और साहस के लिए और युद्ध के दौरान अपनी सुरक्षा की उपेक्षा करते हुए कर्तव्य करने के कारण सलारिया को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में मरणोपरांत [[परम वीर चक्र]] से सम्मानित किया गया।
 
== संदर्भ ==