'''प्रकाश काकी वेगचाल''' (Velocityspeed of light) (इसेजिसे प्राय: '''c''' से निरूपित किया जाता है) एक [[भौतिक नियतांक]] है। [[निर्वात]] में इसका सटीक मान ठीक-ठीक 299,792,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है [1][2] जिसे प्राय: 3 लाख किमी/से. कह दिया जाता है। वस्तुत: सभी विद्युतचुम्बकीय तरंगों (जैसे रेडियो तरंगें, गामा किरणे, प्रकाश आदि) समेत, गुरुत्वीय-सूचना का वेग भी इतना ही होता है। चाहे प्रेक्षक का 'फ्रेम ऑफ रिफरेंस' कुछ भी हो या प्रकाश-उत्सर्जक स्रोत किसी भी वेग से किधर भी गति कर रहा हो, हर प्रेक्षक को प्रकाश का यही वेग मिलेगा। कोई भी वस्तु, दिक्-काल में प्रकाश के वेग से अधिक वेग पर गति नहीं कर सकता।सकती।
प्रकाश के वेग का ठीक-ठाक मान निकालना एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि यह चुंबकीय एवं विद्युतीय घटनाओं का एक अभिन्न अंग है। जितने भी ऊर्जा के संचार के कार्य हैं, उनमें इसका उपयोग होता है। प्रकाश के वेग समय यात्रा में सहायक है हम यदि प्रकाश के वेग से तेज दूरी तय करें। तो हम समय यात्रा कर सकते है लेकिन उस समय हमें कुछ दिखाई नहीं देगा क्योंकि हमारे नेत्र किसी वस्तु पर फोकस नहीं कर पाएंगे और एक तथ्य यह भी है कि हमें प्रकाश की गति पाने के लिए हमारा द्रव्यमान शून्य करना होगा जो कि असंभव है।
प्रकाश के वेग का सटीक मान निकालना एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि यह विद्युत्चुं-चुबकीय घटनाओं का एक अभिन्न अंग है। जितने भी ऊर्जा के संचार के कार्य हैं, उनमें इसका उपयोग होता है। प्रकाश के वेग समय यात्रा में सहायक है। आइंस्टीन के सापेक्षता के विशेष सिद्धांत के अनुसार, यदि प्रकाश की गति की तुलनात्मक चाल पर गमन किया जाता है तो (गमन करने वाले पिंड के लिए) समय किसी स्थिर प्रेक्षक की तुलना में भिन्न हो जायेगा|
[[21 अक्टूबर]] [[1983]], से प्रकाश के वेग का मान [[मीटर]] सहित अन्य मापकों को 'कैलिब्रेट' करने के लिये किया जा रहा है। इसका मान [[निर्वात]] के विद्युत नियतांक <math>\varepsilon_0\,\!</math> तथा चुम्बकीय नियतांक (परमिएबिलिटी) (परमिटिविटी) <math>\mu_0\,\!</math> से सम्बन्धित है जो निम्नवत है:
== इतिहास ==
आजसत्राहवीं सदी के लगभगमध्य 300तक वर्ष पहलेधारणा यह गलत धारणा थी कि प्रकाश का वेग अनंत होता है, अर्थात् उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने में कुछ भी समय नहीं लगता। सर्वप्रथमगैलिलियो ने प्रकाश की चाल को मापने का प्रयास किया सितंबरथा, सन्परन्तु 1676उनके प्रयोग में रोमरमानव-प्रतिक्रिया-काल नेसे इसहोने गलतवाली धारणात्रुटी कोकी दूरवजह करसे यहवे प्रकाश की गति मापने में नाकामयाब रहे| सितंबर1676 में रोमर ने बताया कि प्रकाश का वेग बहुत अधिकतीव्र होने के बावजूद 'परिमित' होता है। [[बृहस्पति]] के उपग्रहोंएक उपग्रह, इओ, के ग्रहणों के अंतर काल में पृथ्वी से संबंधित दूरी के बदलने से होनेवालेहोने वाले परिवर्तन का अध्ययन कर, रोमर ने प्रकाश को पृथ्वी की कक्षा के व्यास को पार करने में लगनेवाले काल को निकाला।निकालाने पृथ्वीका कीतरीका कक्षासुझाया| हालांकि, उस तरीके के व्यासआधार कोपर मालूमगणना कर,करने उसनेवाले प्रकाशवेगपहले काव्यक्ति मानक्रिस्चियन मालूमहुय्गेंस कियाथे, जो 2,14,300 किलोमीटर प्रति सेकंड के बराबर ज्ञात हुआ।हुआ, उनफिर दिनोंभी प्रकाश की विज्ञानगति कीनिकालने वाले व्यक्ति के रूप में रोमर को ही श्री मिलता है । उन समय के वैज्ञानिक प्रगतिज्ञान को देखते हुए यह अत्यंत प्रशंसापूर्णप्रशंसनीय कार्य था।था|
== परिचय ==
एकवर्णी तरंग के वेग को कलावेगकला-वेग (Phase velocity) कहते हैं। यथार्थ में श्वेत प्रकाश एकवर्णी न होकर कई प्रकार की तरंगों से बनता है। यह झुंड जिस वेग से चलता है, उसे समूह वेग (Group velocity) कहते हैं। प्रकाश के वेग नापने की प्रत्यक्ष विधियाँ साधारणतया समूहवेग ही नापती हैं।
;प्रकाश की तीव्रता का उसके वेग पर प्रभाव : 1904 ई. में डाउट ने तीव्रता को 1: 3,00,000 के अनुपात में बढ़ाकर बताया कि विभिन्न प्रकाशों के वेग में परिवर्तन 6 मिमी. प्रति सेकंड से भी कम होता है। यह नगण्य है।
;तरंगदैर्घ्य का प्रभाव : निर्वात में भिन्न भिन्न तरंगदैर्ध्यो के लिये प्रभाव ज्ञात नहीं हुआ है। 1925 ई.. में रोज़ा ने सर्वप्रथम इसके प्रति विश्वास बतायाजताया, किंतु अर्वाचीन प्रयोगों ने इस विश्वास को निराधार बताया है।
;सामर्थ्यवान चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव : 1940 ई. में बांवेल एवं फार ने 20,000 गाउसगौस चुंबकीय क्षेत्र में से प्रकाशकिरणें भेजकर उनके वेग में 34 सेंमी. प्रति सेंकंड की वृद्धि पाई, किंतु इस फल की यथार्थता के बारे में शंका है।
;सामर्थ्यंवान विद्युतीय क्षेत्र का प्रभाव : सन् 1952 में स्टार्क ने 1,000 किवा. प्रति सेंमी. विद्युतक्षेत्र से प्रकाशवेग में जरा सी वृद्धि पाई।
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