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दिक्-काल या स्पेस-टाइम (spacetime) की सोच कोसंकल्पना, [[अल्बर्ट आइंस्टीन]] नेद्वारा अपनाउनके सापेक्षिकतासापेक्षता के का सिद्धांत विकसितमें करतेदी हुएगई प्रकाशितथी| किया। इसकेउनके अनुसार समय या काल दिक् के तीन आयामोंदिशाओं की तरह, समय भी एक और आयाम है और भौतिकी में इन्हें एक साथ चार आयामों के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा केकि वास्तव में ब्रह्माण्ड की सारीसभी चीज़ें इस चार-आयामी दिक्-काल में रहती हैं। उन्होंने ने यह भी कहा केकि कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं केजब अलग-अलगभिन्न वस्तुओं को इन चार सभी-आयामों का अनुभव अलग-अलग प्रतीत होता है।हो।
 
[[दिक्]] (space) और काल (time) का संबध हमारे नित्य व्यवहार में इतना अधिक आता है कि इनके विषय में कुछ अधूरी सी किंतु दृढ़ धारणाएँ हमारे मन में बचपन से ही होना स्वाभाविक है। [[कवि|कवियों]] ने दिक्‌ और काल की गंभीर, विशाल तथा सुंदर कल्पनाओं का वर्णन किया है। [[दर्शन]] में और [[पाश्चात्य मनोविज्ञान]] में भी इनके विषय में पुरातन काल से सोच विचार होता आ रहा है। [[कणाद]] (३०० ई. पू.) के [[वैशेषिक दर्शन]] में आकाश, दिक्‌ और काल की धारणाएँ सुस्पष्ट दी गई हैं और इनके गुणों का भी वर्णन किया गया है। इंद्रियजन्य अनुभवों से जो ज्ञान मिलता है उसमें दिक्‌ और काल का संबंध अवश्य ही होता है। इस ज्ञान की यदि वास्तविकता समझा जाए तो दिक्‌ और काल वस्तविकता से अलग नहीं हो सकते। प्रत्येक दार्शनिक संप्रदाय ने वस्तविकता, दिक्‌ और काल, इनके परस्पर संबंधों की अपनी अपनी धारणाएँ दी हैं, जिनमें ऐकमत्य नहीं है। [[गणित]] में भी दिक्‌ और काल का अप्रत्यक्ष रीति से संबंध आता है। अत: [[प्रतिष्ठित भौतिकी]] (क्लासिकल फिजिक्स) का विकास इन्हीं धारणाओं पर निर्भर रहा। [[भौतिकी]] के कुछ प्रायोगिक फल जब इन धारणाओं से विसंगत दिखाई देने लगे, तब ये धारणाएँ विचलित होने लगीं एवं आपेक्षितावाद ने दिक्‌ और काल का नया स्वरूप स्थापित किया, जो अनेक प्रयोगों द्वारा प्रमाणित और फलत: अब सर्वसम्मत हो चुका है। दिक्‌ तथा काल का यह नया स्वरूप केवल भिन्न ही नहीं वरन्‌ (हमारी इनके विषय की व्यावहारिक कल्पनाओं के कारण) समझने में भी अत्यंत कठिन है, क्योंकि इसके प्रतिपादन में विशिष्ट गणित का उपयोग आवश्यक होता है। अत: जहाँ-जहाँ दिक्‌ तथा काल संबंध आता है उसका स्पष्टीकरण पहले स्थूल दृष्टि से, तत्पश्चात्‌ सूक्ष्म दृष्टि से और अंत में भौतिकी की दृष्टि से करना अधिक सरल होगा।