"सूर्य नारायण व्यास": अवतरणों में अंतर

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'''पण्डित सूर्यनारायण व्यास''' (०२ मार्च १९०२ - ) [[हिन्दी]] के व्यंग्यकार, पत्रकार एवं ज्योतिर्विद थे। उन्हें [[साहित्य एवं शिक्षा]] के क्षेत्र में सन [[१९५८]] में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था। पं॰ व्यास ने 1967 में अंग्रेज़ीअंग्रेजी को अनन्त काल तक जारी रखने के विधेयक के विरोध में अपना पद्मभूषण लौटा दिया था।
 
== बहुआयामी व्यक्तित्व ==
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== जीवनी ==
पण्डित सूर्यनारायण व्यास का जन्म [[उज्जयिनी]] के सिंहपुरी में 2 मार्च 1902१९०२ को पण्डित नारायणजी व्यास के घर में हुआ था। पण्डित नारायणजी व्यास, महर्षि सान्दिपनी[[सान्दीपनी]] की परम्परा के वाहक थे। [[खगोलशास्त्र|खगोल]] और [[ज्योतिष]] के अपने समय के इस असाधारण व्यक्तित्व का सम्मान [[लोकमान्य तिलक]] एवं पं॰ [[मदनमोहन मालवीय]] भी करते थे। पं॰ नारायणजी के देश और विदेश में लगभग सात हज़ारहजार से अधिक शिष्य फैले हुए थे जिन्हें वे वस्त्र, भोजन और आवास देकर निःशुल्क विद्या अध्ययन करवाते थे। अनेक इतिहासकारों ने यह भी खोज निकाला है कि पं॰ व्यास के उस [[गुरुकुल]] में स्वतन्त्रता संग्राम के अनेक क्रान्तिकारी वेश बदलकर रहते थे।
 
पं. सूर्यनारायण व्यास अठारह बरस या उससे भी कम आयु में रचबा करने लगे थे। [[सिद्धनाथ माधव आगरकर]] का साहचर्य उन्हें किशोरावस्था में ही मिल गया था, लोकमान्य तिलक की जीवनी का अनुवाद उन्होंने आगरकरजी के साथ किया। सिद्धनाथ माधव आगरकर को बहुत लोग अब भूल गये हैं ! ‘स्वराज्य’ सम्पादक, (‘कर्मवीर’ के पहले सम्पादक भी आगरकर जी ही थे जिसे [[माखनलाल चतुर्वेदी]] ने बाद में सँभाला) का पण्डितजी को अन्तरंग साहचर्य मिला और शायद इसी वजह से वे [[पत्रकारिता]] की ओर प्रवत्त हुए।
 
तिलक की जीवनी का अनुवाद करते-करते वे क्रान्तिकारी बने ; [[वीर सावरकर]] का साहित्य पढ़ा ; सावरकर की कृति '''अण्डमान की गूँज''' (Echo from Andaman) ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। प्रणवीर पुस्तकमाला की अनेक ज़ब्तशुदाजब्तशुदा पुस्तकें वे नौजवानों में गुप्त रूप से वितरित किया करते थे। वर्ष 1920-21 के काल से तो उनकी अनेक क्रान्तिकारी रचनाएँ प्राप्त होती हैं जो- मालव मयूर, वाणी, सुधा, आज, (बनारस) [[सरस्वती]], [[चाँद (पत्रिका)|चाँद]], माधुरी, [[अभ्युदय]] और [[स्वराज्य]] तथा [[कर्मवीर]] में बिखरी पड़ी हैं। वे अनेक ‘छद्म’ नामों से लिखते थे, मसलनजैसे- खग, एक मध्य भारतीय, मालव-सुत, डॉ॰ चक्रधर शरण, डॉ॰ एकान्त बिहारी, व्यासाचार्य, सूर्य-चन्द्र, 'एक मध्य भारतीय आत्मा' जैसे अनेक नामों से वे बराबर लिखते रहते थे। 1930 में [[अजमेर सत्याग्रह]] में पिकेटिंग करने पहुँचे, मालवा के जत्थों का नेतृत्व भी किया, [[सुभाषा चन्द्र बोस|सुभाष बाबू]] के आह्वान पर अजमेर में लॉर्ड मेयो काकी स्टैच्यूप्र्तिमा तोड़ा और बाद के काल में वर्ष 1942१९४२ में ‘भारती-भवन’ से गुप्त रेडियो स्टेशन का संचालन भी किया जिसके कारण वर्ष 1946१९४६ में उन्हें [[इण्डियन डिफ़ेन्स ऐक्ट]] के तहत जेल-यातना का पुरस्कार भी मिला। आज़ादीभारत के स्वतन्त्र होने के बाद पेंशन और पुरस्कार की सूची बनी तो उसमें उन्होंने तनिक भी रुचि नहीं ली।
{{१९५८ पद्म भूषण}}