"दारा प्रथम": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
दारा प्रथम (ई.पू. ५२२ से ४८६ ई.पू.) ईसवी पूर्व ५२१ में कांबीसीसकम्बूजिय (Cambyses) के बाद हिस्टास्पीस (Hystaspeas) का लड़का डेरियस (Darius) या दारा परशिया की गद्दी पर बैठा। उसे प्रारंभ में जबरदस्त विद्रोहियों का सामना करना पड़ा। विद्रोहियों में सबसे प्रबल गौमता (Gaumata) नाम का व्यक्ति था, जिसने ईरान के सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। लेकिन दारा के सहायकों ने शीघ्र ही गौमता को मारकर खत्म कर दिया (ई.पू. ५२१)। परशिया के अनेक प्रांतों ने भी दारा के खिलाफ विद्रोह कर स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया।<ref>{{cite book|last=कूक|first=जे॰एम॰ |chapter=The Rise of the Achaemenids and Establishment of their Empire|title=The Median and Achaemenian Periods|series=कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ़ ईरान|volume=2|publisher=कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस |location=लंदन|year=1985|language=अंग्रेज़ी}}</ref> एलाम, बैबीलोनिया, मीडिया, आर्मीनिया, लीडिया, एवं मिस्र तथा परशिया तक में विद्रोह हुए। लेकिन साहसी और प्रतिभाशाली दारा ने समस्त विद्रोहियों को कुचलकर पारसीक साम्राज्य को पुन: सुदृढ़ कर दिया। लगभग तीन वर्ष उसे विद्रोह दबाने में लगे (ई.पू. ५१८); इसके बाद फारस के विस्तृत साम्राज्य में शांति स्थापित हो गई।
 
दारा के साम्राज्य में २० प्रांत थे। प्रांत का शासक सटरैप (Satrap) या क्षत्रप कहलाता था। दारा प्रथम की गणना महान विजेताओं में की जाती है। उसने भारत पर भी चढ़ाई की थी और पंजाब तथा सिंध का बहुत सा भाग अपने अधिकार में कर लिया था (ई.पू. ५१२)। अत: उसके २० प्रांतों में पंजाब और सिंध का क्षेत्र भी शामिल था। भारतीय प्रांत से ईरान को राजस्व के रूप में अमित सोना मिलता रहा। दारा के यूनानी सेनापति स्काईलक्स (Scylax) ने सिंधु से भारतीय समुद्र में उतरकर अरब और मकरान के तटों का पता लगाया था। उसकी मुख्य राजधानियाँ सूसा, पर्सीपौलिस, इकबतना (हमदान) और बैबीलोन थीं। वह ज़रयुस्त्री धर्म का माननेवाला था।