इस प्रकार सर्वप्रथम ग़यासुद्दीन के समय में ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया। इन राज्यों में सर्वप्रथम वारंगल था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ पूर्णतः साम्राज्यवादी था। इसने अलाउद्दीन ख़िलजी की दक्षिण नीति त्यागकर दक्षिणी राज्यों को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।<ref name=":1">{{cite book|first1=रिचर्ड एम.|last1=ईटन|title=A Social History of the Deccan 1300-1761|trans_title=दक्कन का सामाजिक इतिहास 1300-1761|publisher=कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस|page=21|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
ग़यासुद्दीन जब बंगाल में था, तभी सूचना मिली कि, जूनाज़ौना ख़ाँ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) [[निज़ामुद्दीन औलिया]] का शिष्य बन गया है और वह उसे राजा होने की भविष्यवाणी कर रहा है। निज़ामुद्दीन औलिया को ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने धमकी दी तो, औलिया ने उत्तर दिया कि, "हुनूज दिल्ली दूर अस्त, अर्थात दिल्ली अभी बहुत दूर है।<ref>{{cite web|first1=डेलीहंट|last1=ऐप|title=इस महान सूफी संत का ये वाक्य "हुनूज दिल्ली दूरअस्त" आज भी लोगों के जेहन में है|url=https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/samacharnama-epaper-samacnam/is+mahan+suphi+sant+ka+ye+vaky+hunuj+dilli+duraast+aaj+bhi+logo+ke+jehan+me+hai-newsid-65940672|website=Dailyhunt|accessdate=03 April 2018}}</ref> हिन्दू जनता के प्रति ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की नीति कठोर थी। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ संगीत का घोर विरोधी था। बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ख़िलजी ने शासन स्थापित करने के लिये जहाँ रक्तपात व अत्याचार की नीति अपनाई, वहीं ग़यासुद्दीन ने चार वर्षों में ही उसे बिना किसी कठोरता के संभव बनाया।