"भक्ति काल": अवतरणों में अंतर
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{{अनेक समस्याएँ|अस्पष्ट=जनवरी 2017|काल्पनिक परिप्रेक्ष्य=जनवरी 2017|निबंध=जनवरी 2017|लहजा=जनवरी 2017|स्रोतहीन=जनवरी 2017}}
{{वैश्वीकरण|date=जनवरी 2017}}
[[हिंदी साहित्य]]
दक्षिण में [[आलवार बंधु]] नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें [[रामानुजाचार्य]] प्रमुख थे।
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:''जाति-पांति पूछे नहिं कोई।''
:''हरि को भजै सो हरि का
:रामानंद ने विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल दिया। रामानंद ने और उनकी शिष्य-मंडली ने दक्षिण की भक्तिगंगा का उत्तर में प्रवाह किया। समस्त उत्तर-भारत इस पुण्य-प्रवाह में बहने लगा। भारत भर में उस समय पहुंचे हुए संत और महात्मा भक्तों का आविर्भाव हुआ।▼
▲रामानंद ने विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल दिया। रामानंद ने और उनकी शिष्य-मंडली ने दक्षिण की भक्तिगंगा का उत्तर में प्रवाह किया। समस्त उत्तर-भारत इस पुण्य-प्रवाह में बहने लगा। भारत भर में उस समय पहुंचे हुए संत और महात्मा भक्तों का आविर्भाव हुआ।
महाप्रभु [[वल्लभाचार्य]] ने पुष्टि-मार्ग की स्थापना की और विष्णु के कृष्णावतार की उपासना करने का प्रचार किया। उनके द्वारा जिस लीला-गान का उपदेश हुआ उसने देशभर को प्रभावित किया। अष्टछाप के सुप्रसिध्द कवियों ने उनके उपदेशों को मधुर कविता में प्रतिबिंबित किया।
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