"ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका": अवतरणों में अंतर

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==उपयोग==
ब्रह्मगुप्त ने उपरोक्त सर्वसमिका का उपयोग वर्ग-प्रकृति (पेल का समिकरण) हल करने के लिए किया।किया, जो निम्नलिखित है- ''x''<sup>2</sup>&nbsp;&minus;&nbsp;''Ny''<sup>2</sup>&nbsp;=&nbsp;1. Using the identity in the form
 
:<math>(x_1^2 - Ny_1^2)(x_2^2 - Ny_2^2) = (x_1x_2 + Ny_1y_2)^2 - N(x_1y_2 + x_2y_1)^2, </math>
 
ब्रह्मगुप्त दो 'त्रिक' (triples) (''x''<sub>1</sub>,&nbsp;''y''<sub>1</sub>,&nbsp;''k''<sub>1</sub>) तथा (''x''<sub>2</sub>,&nbsp;''y''<sub>2</sub>,&nbsp;''k''<sub>2</sub>) निर्मित करते थे जो समीकरण ''x''<sup>2</sup>&nbsp;&minus;&nbsp;''Ny''<sup>2</sup>&nbsp;=&nbsp;''k'', के हल थे। इन दो त्रिकों से वे तीसरा त्रिक निर्मित करते थे-
 
:<math>(x_1x_2 + Ny_1y_2 \,,\, x_1y_2 + x_2y_1 \,,\, k_1k_2).</math>
 
इस प्रकार वे समीकरण ''x''<sup>2</sup>&nbsp;&minus;&nbsp;''Ny''<sup>2</sup>&nbsp;=&nbsp;1 का एक हल से आरम्भ करते हुए अनन्त हल निकाल लेते थे।
 
[[भास्कर द्वितीय]] ने सन ११५० में वर्गप्रकृति (पेल समीकरण) का सामान्य हल बताया था जिसे [[चक्रवाल विधि]] कहते हैं। चक्रवाल विधि भी ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका पर ही आधारित है।<ref name=stillwell>{{citation | year=2002 | title = Mathematics and its history | author1=[[John Stillwell]] | edition=2 | publisher=Springer | isbn=978-0-387-95336-6 | pages=72–76 | url=https://books.google.com/books?id=WNjRrqTm62QC&pg=PA72}}</ref>
 
==सन्दर्भ==