"देवनागरी": अवतरणों में अंतर

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[[द्वारिका प्रसाद सक्सेना|डॉ॰ द्वारिका प्रसाद सक्सेना]] के अनुसार सर्वप्रथम देवनागरी लिपि का प्रयोग [[गुजरात]] के नरेश [[जयभट्ट]] (700-800 ई.) के [[शिलालेख]] में मिलता है। आठवीं शताब्दी में चित्रकूट, नवीं में बड़ौदा के ध्रुवराज भी अपने राज्यादेशों में इस लिपि का उपयोग किया करते थे।
 
758 ई का [[राष्ट्रकूट]] राजा [[दन्तिदुर्ग]] का सामगढ़ ताम्रपट मिलता है जिस पर देवनागरी अंकित है। शिलाहारवंश के [[गंण्डरादित्य]] के उत्कीर्ण लेख की [[लिपि]] देवनागरी है। इसका समय ग्यारहवीं शताब्दी हैं इसी समय के चोलराजा [[राजेन्द्र चोल १|राजेन्द्र]] के सिक्के मिले हैं जिन पर देवनागरी लिपि अंकित है। [[राष्ट्रकूट]] राजा इंद्रराज (दसवीं शती) के लेख में भी देवनागरी का व्यवहार किया है। गुर्जर-प्रतीहार राजा [[महेंद्रपाल]] (891-907) का दानपत्र भी देवनागरी लिपि में है।
 
[[कनिंघम]] की पुस्तक में सबसे प्राचीन मुसलमानों सिक्के के रूप में [[महमूद गजनबी]] द्वारा चलाये गए [[चांदी]] के सिक्के का वर्णन है जिस पर देवनागरी लिपि में [[संस्कृत]] अंकित है। मुहम्मद विनसाम (1192-1205) के सिक्कों पर [[लक्ष्मी]] की मूर्ति के साथ देवनागरी लिपि का व्यवहार हुआ है। शमशुद्दीन [[इल्तुतमिश]] (1210-1235) के सिक्कों पर भी देवनागरी अंकित है। सानुद्दीन फिरोजशाह प्रथम, जलालुद्दीन रजिया, बहराम शाह, अलालुद्दीन मरूदशाह, नसीरुद्दीन महमूद, मुईजुद्दीन, [[गयासुद्दीन बलवन]], मुईजुद्दीन कैकूबाद, जलालुद्दीन हीरो सानी, अलाउद्दीन महमद शाह आदि ने अपने सिक्कों पर देवनागरी अक्षर अंकित किये हैं। [[अकबर]] के सिक्कों पर देवनागरी में ‘राम‘ सिया का नाम अंकित है। गयासुद्दीन तुगलक, [[शेरशाह सूरी]], इस्लाम शाह, मुहम्मद आदिलशाह, गयासुद्दीन इब्ज, ग्यासुद्दीन सानी आदि ने भी इसी परम्परा का पालन किया।