शरीर (anatomy) की दृष्टि में मूल के तीन भाग है: अधिचर्म (epidermis), वल्कुट (cortex) तथा रंभ। इन तीनों भागों में शीर्ष विभज्योतक द्वारा नई कोशिकाएँ जुड़ती हैं। विभज्योतक की बाह्य सतह मूल-गोप (root cap) बनाती है। जब मूल मृदा में बलपूर्वक प्रवेश करता है, तब मूल-गोप आघात से उसकी रक्षा करता है। मूल की संपूर्ण मोटाई में शीर्ष विभज्योतक व्याप्त रहता है, अत: नई कोशिकाएँ दीर्घीकरण के बाद व्यवस्थित कोशिकाओं की तरह पंक्तियों में विकसित होती हैं। कोशिकाओं का विभाजन, दीर्घीकरण तथा परिपक्वन वर्धमान प्रक्रम है, जो मूल के ऊर्ध्वाधर स्तरविन्यास में मूल गोप, शीर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में मूल गोप, शिर्ष विभज्योतक, दीर्घीकरण क्षेत्र तथा परिपक्वन क्षेत्र में होता है। अधिचर्म, वल्कुट और रंभ क्षेत्र में ऊतकों के अंतर की उत्तरोत्तर अवस्थाएँ सुस्पष्ट रहती हैं। दीर्घीकरण क्षेत्र के ठीक ऊपर अधिचर्म कोशिकाएँ लंबी बेलनाकार उद्वर्ध (0utgrowth) उत्पन्न करती हैं, जिन्हें मूलरोम (root hair) श्कहतेकहश्ते हैं। ये रोम मूल का अवशोषण क्षेत्र बढ़ा देते हैं।
अधिचर्म के ठीक नीचे ऊतकों का जो क्षेत्र रहता है, उसे वल्कुट कहते हैं। इस क्षेत्र का अधिकांश मृदूतक (parenchyma) का धना होता है। इसमें तंतु बिखरी हुई कोशिकाओं के रूप में रहते हैं। रंभा या अविच्छिन्न बेलन भी वल्कुट में हो सकता है। कोशिकाओं के बीच में सुस्पष्ट अवकाश होता हैं।
रंभ प्राथमिक दारू (xylem) दलयक तथा प्राथमिक फ्लोएम (phloem) का बना होता है। दारू वलयक त्रिज्यात: चौरस होते हैं और मूल की एक ही परिधि में ये और फ्लोएम एकांतर होते हैं जड़ में प्राय: मज्जा नहीं होती, किंतु द्वितीजपत्री पौधों की जड़ों की अपेक्षा एकबीजपत्री पौधों की जड़ों में प्राय: मिलती हैं। रंभ की सतह पर पार्श्वीय जड़े विभज्योतकी (mesistematis) कोशिकाओं से निकलकर वल्कुट से बाहर निकलने का मार्ग बलपूर्वक बनाती हैं। मोटाई में सुस्पष्ट वृद्धि करने वाली जड़े, प्राथमिक दारू के ठीक बाहर प्राणालित बेलन के रूप में तथा प्राथमिक फ्लोएम के अंदर, संवहनी (vadcular) एधा (cambioum) विकसित करती है। एधा की बाहृा सतह से द्वितीयक फ्लोएम तथा आंतरिक सतह से द्वितीयक दारू विकसित होता है। जब जड़ों की अत्यधिक मोटाई वल्कुट को विदीर्ण कर देती है, तब वल्कुट की आंतरिक सतह परिरंभ (pericycle) या द्वितीयक फ्लाएम में कार्क (cork) बनती है। जो जड़ पहले बनती है और सीधे तने से वृद्धि करती, वह प्राथमिक जड़ कहलाती है। प्राथमिक जड़ की शाखाएँ द्वितीयक तथा द्वितीयक की शाखाएँ तृतीयक जड़े कहलाती हैं।