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'''मिथिला''' प्राचीन [[भारत]] में एक राज्य था। माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी [[बिहार]] और [[नेपाल]] की तराई का इलाका है जिसे '''मिथिला''' के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा [[मैथिली]] है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत [[शतपथ ब्राह्मण]] में तथा स्पष्ट उल्लेख [[वाल्मीकि रामायण|वाल्मीकीय रामायण]] में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है।
 
== नामकरण : प्राचीन उल्लेखों के सन्दर्भ में ==
=== प्राचीन उल्लेख ===
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार इस क्षेत्र का सर्वाधिक प्राचीन नाम मिथिला ही प्राप्त होता है; साथ ही विदेह नाम से भी इसे संबोधित किया गया है। तीरभुक्ति ([[तिरहुत]]) नाम प्राप्त उल्लेखों के अनुसार अपेक्षाकृत काफी बाद का सिद्ध होता है।
 
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विदेह और मिथिला नामकरण का सर्वाधिक प्राचीन संबंध शतपथ ब्राह्मण में उल्लिखित विदेघ माथव से जुड़ता है। मिथिला के बसने के आरंभिक समय का संकेत उक्त कथा में प्राप्त होता है। विदेघ माथव तथा उसके पुरोहित गोतम राहूगण [[सरस्वती नदी]] के तीर से पूर्व की ओर चले थे। उनके आगे-आगे अग्नि वैश्वानर नदियों का जल सुखाते हुए चल रहे थे। सदानीरा ([[गण्डकी]]) नदी को अग्नि सुखा नहीं सके<ref>शतपथ ब्राह्मण (प्रथम भाग) - सं. स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती, अनुवादक- पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय; विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली; संस्करण-2010 ई. पृ०-69(1.4.1.14)</ref> और विदेघ माथव द्वारा यह पूछे जाने पर कि अब मेरा निवास कहाँ हो, अग्नि ने उत्तर दिया कि इस नदी के पूर्व की ओर तुम्हारा निवास हो।<ref name="अ">शतपथ ब्राह्मण (प्रथम भाग), पूर्ववत्-1.4.1.17, पृ०-71.</ref> शतपथ ब्राह्मण में स्पष्ट रूपेण उल्लिखित है कि पहले ब्राह्मण लोग इस नदी को पार नहीं करते थे तथा यहाँ की भूमि उपजाऊ नहीं थी। उसमें दलदल बहुत था क्योंकि अग्नि वैश्वानर ने उसका आस्वादन नहीं किया था। परंतु अब यह बहुत उपजाऊ है क्योंकि ब्राह्मणों ने यज्ञ करके उसका आस्वादन अग्नि को करा दिया है।<ref>शतपथ ब्राह्मण (प्रथम भाग), पूर्ववत्-1.4.1.15-16, पृ०-70-71.</ref> गण्डकी नदी के बारे में यह भी उल्लेख है कि गर्मी के बाद के दिनों में भी, अर्थात् काफी गर्मी के दिनों में भी, यह नदी खूब बहती है। इस विदेघ शब्द से विदेह का तथा माथव शब्द से मिथिला का संबंध प्रतीत होता है।<ref>मिथिलाक इतिहास, डाॅ० उपेन्द्र ठाकुर, मैथिली अकादमी पटना, द्वितीय संस्करण-1992ई०, पृ०-1,2.</ref><ref>मिथिला का इतिहास, डाॅ० रामप्रकाश शर्मा, कामेश्वर सिंह संस्कृत वि.वि.दरभंगा, तृतीय संस्करण-2016, पृ०-9.</ref> शतपथ में ही गंडकी नदी के बारे में उल्लेख करते हुए स्पष्ट रूप से विदेह शब्द का भी उल्लेख हुआ है। वहाँ कहा गया है कि अब तक यह नदी कोसल और विदह देशों के बीच की सीमा है; तथा इस भूमि को माथव की संतान (माथवाः) कहा गया है।<ref name="अ" />
 
[[वाल्मीकीय रामायण]] तथा विभिन्न पुराणों में मिथिला नाम का संबंध राजा निमि के पुत्र मिथि से जोड़ा गया है। न्यूनाधिक अंतरों के साथ इन ग्रंथों में एक कथा सर्वत्र प्राप्त है कि निमि के मृत शरीर के मंथन से मिथि का जन्म हुआ था। वाल्मीकीय रामायण में मिथि के वंशज के मैथिल कहलाने का उल्लेख हुआ है<ref name="क">वाल्मीकीय रामायण, गीताप्रेस गोरखपुर, द्वितीय खण्ड, संस्करण-1995ई०, उत्तरकाण्ड-57.19-20 (पृ०-739)।</ref> जबकि पौराणिक ग्रंथों में मिथि के द्वारा ही मिथिला के बसाये जाने की बात स्पष्ट रूप से कही गयी है।<ref name="ख">श्रीमद्भागवतमहापुराण (सटीक), द्वितीय खण्ड, 9.13.13, गीता प्रेस गोरखपुर, संस्करण-2001ई०, पृष्ठ-54.</ref> शब्दान्तरों से यह बात अनेक ग्रंथों में कही गयी है कि स्वतः जन्म लेने के कारण उनका नाम जनक हुआ, विदेह (देह-रहित) पिता से उत्पन्न होने के कारण वे वैदेह कहलाये तथा मंथन से उत्पन्न होने के कारण उनका नाम मिथि हुआ।<ref name="क" /><ref name="ख" /><ref>श्रीविष्णुपुराण (सटीक)- 4.5.22,23, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-2001ई०, पृष्ठ-253.</ref> इस प्रकार उन्हीं के नाम से उनके द्वारा शासित प्रदेश का नाम विदेह तथा मिथिला माना गया है। [[महाभारत]] में प्रदेश का नाम 'मिथिला' तथा इसके शासकों को 'विदेहवंशीय' (विदेहाः) कहा गया है।<ref name="म">महाभारत (सटीक), प्रथम खण्ड, आदिपर्व-112.28, गीताप्रेस गोरखपुर, संस्करण-1996ई०, पृष्ठ-339.</ref>
 
=== तीरभुक्ति (तिरहुत) ===