"रिपब्लिक (प्लेटो)": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1:
{{आधार}}
'''रिपब्लिक''' (३८०मूल [[यूनानी]] नाम : ''Πολιτεία / पॉलीतिया'' ईसापूर्व) [[प्लेटो]] कीद्वारा रचना३८० ईसापूर्व के आसपास रचित ग्रन्थ है जिसमें [[सुकरात]] केकी विचारवार्ताएँ वर्णित हैं। इन वार्ताओं में [[न्याय]] (δικαιοσύνη), नगर तथा न्यायप्रिय मानव की चर्चा है। यह प्लेटो की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है।
 
प्लेटो ने ‘रिपब्लिक’ में विभिन्न व्यक्तियों के मध्य हुए लम्बे संवादों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि हमारा न्याय से सरोकार होना चाहिए। रिपब्लिक के केन्द्रीय प्रश्न तथा उपशीर्षक न्याय से ही सम्बन्धित हैं, जिनमें वह न्याय की स्थापना हेतु व्यक्तियों के कर्तव्य-पालन पर बल देते हैं। प्लेटो कहते हैं कि मनुष्य की आत्मा के तीन मुख्य तत्त्व हैं – तृष्णा या क्षुधा (Appetite), साहस (Spirit), बुद्धि या ज्ञान (Wisdom)। यदि किसी व्यक्ति की आत्मा में इन सभी तत्वों को समन्वित कर दिया जाए तो वह मनुष्य न्यायी बन जाएगा। ये तीनों गुण कुछेक मात्रा में सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं लेकिन प्रत्येक मनुष्य में इन तीनों गुणों में से किसी एक गुण की प्रधानता रहती है। इसलिए राज्य में इन तीन गुणों के आधार पर तीन वर्ग मिलते हैं। पहला, उत्पादक वर्ग – आर्थिक कार्य (तृष्णा), दूसरा, सैनिक वर्ग – रक्षा कार्य (साहस), तीसरा, शासक वर्ग – दार्शनिक कार्य (ज्ञान/बुद्धि)। प्लेटो के अनुसार जब सभी वर्ग अपना कार्य करेंगे तथा दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और अपना कर्तव्य निभाएंगे तब समाज व राज्य में न्याय की स्थापना होगी। अर्थात् जब प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का निर्वाह करेगा, तब समाज में न्याय स्थापित होगा और बना रहेगा। <ref>[vle.du.ac.in/mod/book/print.php?id=11505&chapterid=21926 न्याय की धारणा का विकास]</ref>
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
== बाहरी कड़ियाँ ==