"असमिया भाषा": अवतरणों में अंतर

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असमीया की पारंपरिक कविता उच्चवर्ग तक ही सीमित थी। [[भट्टदेव]] (१५५८-१६३८) ने असमिया गद्य साहित्य को सुगठित रूप प्रदान किया। [[दामोदरदेव]] ने प्रमुख जीवनियाँ लिखीं। [[पुरुषोत्तम ठाकुर]] ने [[व्याकरण]] पर काम किया। अठारहवी शती के तीन दशक तक साहित्य में विशेष परिवर्तन दिखाई नहीं दिए। उसके बाद चालीस वर्षों तक असमिया साहित्य पर [[बांग्ला]] का वर्चस्व बना रहा। असमिया को जीवन प्रदान करने में [[चन्द्र कुमार अग्रवाल]] (१८५८-१९३८), [[लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा]] (१८६७-१८३८), व [[हेमचन्द्र गोस्वामी]] (१८७२-१९२८) का योगदान रहा। असमीया में छायावादी आंदोलन छेड़ने वाली मासिक पत्रिका [[जोनाकी]] का प्रारंभ इन्हीं लोगों ने किया था। उन्नीसवीं शताब्दी के उपन्यासकार [[पद्मनाभ गोहाञिबरुवा]] और [[रजनीकान्त बरदलै]] ने ऐतिहासिक उपन्यास लिखे। सामाजिक उपन्यास के क्षेत्र में [[देवाचन्द्र तालुकदार]] व [[बीना बरुवा]] का नाम प्रमुखता से आता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद [[बीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य]] को [[मृत्युंजय (उपन्यास)|मृत्यंजय]] उपन्यास के लिए [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया। इस भाषा में क्षेत्रीय व जीवनी रूप में भी बहुत से उपन्यास लिखे गए हैं। ४०वे व ५०वें दशक की कविताएँ व गद्य मार्क्सवादी विचारधारा से भी प्रभावित दिखाई देती है।
 
==सन्दर्भ==
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== इन्हें भी देखें ==