"भारतेन्दु हरिश्चंद्र": अवतरणों में अंतर

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: ''यदि हिन्दी अदालती भाषा हो जाए, तो सम्मन पढ़वाने, के लिए दो-चार आने कौन देगा, और साधारण-सी अर्जी लिखवाने के लिए कोई रुपया-आठ आने क्यों देगा। तब पढ़ने वालों को यह अवसर कहाँ मिलेगा कि गवाही के सम्मन को गिरफ्तारी का वारंट बता दें। सभी सभ्य देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग किया जाता है। यही (भारत) ऐसा देश है जहाँ अदालती भाषा न तो शासकों की मातृभाषा है और न प्रजा की। यदि आप दो सार्वजनिक नोटिस, एक उर्दू में, तथा एक हिंदी में, लिखकर भेज दें तो आपको आसानी से मालूम हो जाएगा कि प्रत्येक नोटिस को समझने वाले लोगों का अनुपात क्या है। जो सम्मन जिलाधीशों द्वारा जारी किये जाते हैं उनमें हिंदी का प्रयोग होने से रैयत और जमींदार को हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त हुई है। साहूकार और व्यापारी अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखते हैं। स्त्रियाँ हिंदी लिपि का प्रयोग करती हैं। पटवारी के कागजात हिंदी में लिखे जाते हैं और ग्रामों के अधिकतर स्कूल हिंदी में शिक्षा देते हैं।''<ref>[https://samalochan.blogspot.in/2017/10/blog-post_30.html भारतेंदु और भाषा की जड़ें]</ref>
 
इसी सन्दर्भ में १८६८ ई में 'उर्दू का स्यापा' नाअम से उन्होने एक व्यंग्य कविता लिखी-
अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण भारतेंदु हिंदी साहित्याकाश के एक दैदीप्यमान नक्षत्र बन गए और उनका युग भारतेंदु युग के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हरिश्चंद्र चंद्रिका, कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र मैग्जीन, स्त्री बाला बोधिनी जैसे प्रकाशन उनके विचारशील और प्रगतिशील संपादकीय दृष्टिकोण का परिचय देते हैं।
:है है उर्दू हाय हाय । कहाँ सिधारी हाय हाय ।
:मेरी प्यारी हाय हाय । मुंशी मुल्ला हाय हाय ।
:बल्ला बिल्ला हाय हाय । रोये पीटें हाय हाय ।
:टाँग घसीटैं हाय हाय । सब छिन सोचैं हाय हाय ।
:डाढ़ी नोचैं हाय हाय । दुनिया उल्टी हाय हाय ।
:रोजी बिल्टी हाय हाय । सब मुखतारी हाय हाय ।
:किसने मारी हाय हाय । खबर नवीसी हाय हाय ।
:दाँत पीसी हाय हाय । एडिटर पोसी हाय हाय ।
:बात फरोशी हाय हाय । वह लस्सानी हाय हाय ।
:चरब-जुबानी हाय हाय । शोख बयानि हाय हाय ।
:फिर नहीं आनी हाय हाय ।
 
अपनी इन्हीं विशेषताओंकार्यों के कारण भारतेंदुभारतेन्दु हिंदीहिन्दी साहित्याकाश के एक दैदीप्यमान नक्षत्र बन गए और उनका युग भारतेंदु[[भारतेन्दु युग]] के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हरिश्चंद्र चंद्रिका, कविवचन सुधा, हरिश्चंद्रहरिश्चन्द्र मैग्जीन, स्त्री बाला बोधिनी जैसे प्रकाशन उनके विचारशील और प्रगतिशील संपादकीयसम्पादकीय दृष्टिकोण का परिचय देते हैं।
 
== इन्हें भी देखें ==