"गौरीदत्त": अवतरणों में अंतर

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'''पंडित गौरीदत्त''' (19361836 - 8 फ़रवरी 1906), [[देवनागरी]] के प्रथम प्रचारक व अनन्य भक्त थे। बच्चों को नागरी लिपि सिखाने के अलावा आप गली-गली में घूमकर [[उर्दू]], [[फारसी]] और [[अंग्रेजी]] की जगह [[हिंदी]] और देवनागरी [[लिपि]] के प्रयोग की प्रेरणा दिया करते थे। कुछ दिन बाद आपने [[मेरठ]] में ‘[[नागरी प्रचारिणी सभा]]‘ की स्थापना भी की और सन् 1894 में उसकी ओर से सरकार को इस आशय का एक ज्ञापन दिया कि [[न्यायालय|अदालतों]] में नागरी-लिपि को स्थान मिलना चाहिए। हिंदी भाषा और [[साहित्य]] के विकास में पंडित गौरीदत्त जी ने जो उल्लेखनीय कार्य किया था उससे उनकी ध्येयनिष्ठा और कार्य-कुशलता का परिचय मिलता है।
 
[[नागरी लिपि परिषद्|नागरी लिपि परिषद]] ने उनके सम्मान में उनके नाम पर '[[गौरीदत्त नागरी सेवी सम्मान]]' आरम्भ किया है।